हरियाणा में प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव के लिए छात्रों का आन्दोलन और सरकार की तानाशाही
मंजीत
हरियाणा मे 22 साल बाद छात्र संघ चुनाव हुए। 1996 मे बंसीलाल सरकार ने गुण्डागर्दी का बहाना बनाकर छात्र संघ चुनावों को बन्द कर दिया था। उसके बाद से ही प्रदेश के छात्रों की यह माँग लगातार उठती रही है कि छात्र संघ चुनाव बहाल किये जायें ताकि प्रदेश के छात्र अपने हकों की आवाज़ उचित मंच के माध्यम से उठा सकें। पिछले लम्बे समय से हरियाणा में चाहे किसी भी पार्टी कि सरकार रही हो, छात्रों को उनके इस लोकतान्त्रिक अधिकार से वंचित रख रही है। सरकारी पक्ष का कहना है कि इससे गुण्डागर्दी बढ़ जायेगी। अगर ऐसा है तो फिर एमपी, एमएलए से लेकर सरपंच तक के चुनाव भी बन्द कर दिये जाने चाहिए क्योंकि उन चुनावों मे गुण्डागर्दी, बाहुबल और धनबल के के सिवाय और तो कुछ होने की सम्भावना ही नगण्य है। ये सरकारों की चाल है कि छात्र आबादी का अराजनीतिकरण कर दिया जाये ताकि वे सही और गलत में फर्क न कर सकें और चन्द लोगों की वोट की दुकान चलती रहे। हरियाणा में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के समय यह वायदा किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे आते ही छात्र संघ के चुनाव करवायेंगे। अब 4 साल गुजरने के बाद बीजेपी सरकार ने अपने चुनावी वायदे को निभाने की नौटंकी करते हुए, अप्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव करवाये।
छात्र संघ चुनाव टंकेश्वर कमेटी की सिफ़ारिशों के अनुसार करवाये गये। टंकेश्वर कमेटी के दिशा निर्देश जानबूझकर ऐसे रखे गये, जिससे कि छात्र हितों के लिए संघर्ष कर रहे छात्र चुनावों मे भाग ही न ले सकें। एबीवीपी को छोड़कर प्रदेश के सभी छात्र संगठनों ने अप्रत्यक्ष चुनाव का विरोध किया। दिशा छात्र संगठन ने शुरू से ही अप्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव का विरोध किया और प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव के समर्थन मे पर्चे निकाले और 10 अगस्त को पंचकुला मे प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव करवाने के लिए हुए प्रदर्शन में भी शामिल रहा। इस प्रदर्शन के ऊपर पुलिस प्रशासन ने पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया। इसके बाद दिशा छात्र संगठन ने कक्षावार अभियान चलाया। जिसमें छात्र संघ चुनावों के महत्व से छात्रों को अवगत करवाते हुए बताया कि सरकार सेमेस्टर सिस्टम, एफवाईयूपी, सीबीसीएस, एसएफ़एस जैसी छात्र विरोधी नीतियाँ लगातार लागू कर रही है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था को अमेरिकी ढंग के अनुसार ढाला जा रहा है ताकि अमेरिकी पूँजीपति शिक्षा के क्षेत्र में निवेश कर सकें, भारतीय शिक्षण संस्थानों को सीधे तौर पर निगल सकें तथा उनके भारतीय लग्गू-भग्गू भी शिक्षा को बिकाऊ माल बनाकर बेतहाशा मुनाफा कमा सकें। सरकार ने रूसा (राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान) का बजट 1,300 करोड़ से घटाकर 200 करोड़ कर दिया है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों मे प्रोफेसरो को आउटसोर्सिंग के तहत रखा जा रहा है। देखा जाये तो इस समय केन्द्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में 70,000 के आस-पास पद रिक्त पड़े हैं। यदि खुद पढ़ाने वाला विभाग प्रमुख के रहमोकरम पर हो, उस पर छँटनी की तलवार लगातार लटकती रहे तो वह रचनात्मक तरीके से नहीं पढ़ा सकता। ये सब राजनीति तय करती है इसलिए हमे राजनीतिक सरगरमियों में भागीदारी करनी चाहिए।
छात्र संघ चुनाव और छात्र राजनीति का मतलब किसी चुनावबाज पार्टी के पिछलग्गू संगठन की जय-जयकार करना नहीं होता, बल्कि इसका मतलब यह होता है कि छात्र अपनी स्वतन्त्र आवाज सरकारों के कानों तक पहुँचा सकें, ऐसे नेतृत्व का चुनाव किया जा सके जो छात्रों के मुद्दों को विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने उठा सके और छात्रों के हितों के लिए लड़ सके। परन्तु अप्रत्यक्ष चुनावों के जरिये सरकार अपनी कठपुतली चुनना चाहती है ताकि जब सरकार छात्र विरोधी शिक्षानीति लागू करे तो छात्र विरोध ना करें। अप्रत्यक्ष चुनावों में हर कक्षा से एक कक्षा प्रतिनिधि चुना जाना तय था। फिर ये सभी कक्षा प्रतिनिधि छात्र काउंसिल को चुनते तथा इन्हीं के बीच से चार पदाधिकारी भी चुने जाते। जबकि प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव में कोई भी छात्र किसी भी पद पर चुनाव लड़ सकता है। इस प्रक्रिया में सभी छात्र मतदान के जरिये अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। छात्रों को अपने प्रतिनिधियों का एजेण्डा पहले ही पता होता है। परन्तु अप्रत्यक्ष चुनावों मे ऐसा नहीं होता। इसके अलावा इन चुनावों मे यह भी प्रावधान था कि यदि किसी पद के लिए आवेदन ना आये तो, उस कक्षा से सबसे अंक पाये विद्यार्थी को कक्षा प्रतिनिधि बना दिया जायेगा। चाहे उस छात्र कि दिलचस्पी हो या ना हो। जिसके चलते चुनावों में छात्रों के ऊपर प्रोफेसरों और विभाग अध्यक्ष का दबाव भी रहेगा। टंकेश्वर कमेटी की गाइडलाइन में निम्नलिखित खामियाँ हैं। (1) एमफ़िल, पीएचडी, अन्तराल वर्ष, स्ववित्तपोषित कौर्सों के छात्रों को चुनाव प्रणाली से बाहर रखा गया है। (2) पदाधिकारी चुनने का आम विद्यार्थियों को कोई अधिकार नहीं है तथा कक्षा प्रतिनिधि पूरे शिक्षण संस्थान की समस्याओं को नहीं समझ सकते। (3) टॉपर विद्यार्थियों को जबर्दस्ती चुनाव में घसीटा जाता है। (4) दलित, पिछड़े छात्रों और छात्राओ को इस चुनाव मे उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। (5) अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में प्रतिनिधियों को हथियाने में पैसे, गुण्डागर्दी, अपहरण जैसी वारदातों को बढ़ावा मिलेगा और आम छात्रों में फूट बढ़ेगी।
इन सब कारणों की वजह से हरियाणा भर के तमाम छात्र अप्रत्यक्ष छात्र संघ चुनावों का विरोध कर रहे थे और प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनावों की माँग कर रहे थे। चुनाव के दौरान का घटनाक्रम यह रहा कि 12 अक्टूबर को पूरे हरियाणा में अप्रत्यक्ष चुनावों के विरोध मे अलग-अलग जगह प्रदर्शन हुए। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में छात्रों के ऊपर पुलिस ने बर्बरतापूर्ण तरीके से लाठी चार्ज किया और आँसू गैस के गोले दागे और सैकड़ों छात्रों पर झूठे केस दर्ज किये गये। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में पुलिस ने कैम्पस के अन्दर घुसकर छात्रों पर बलप्रयोग किया। इसके बाद विश्वविद्यालय कैम्पस को छावनी मे तब्दील कर दिया गया। ज़्यादातर छात्र डर के मारे अपने घर चले गये, छात्रावास लगभग खाली हो गये थे। प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव संघर्ष समिति ने इसके बाद हर रोज सरकार और प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किये और बचे हुए विद्यार्थियों के बीच सघन अभियान चलाये तथा सरकार व उसके पिछलग्गू छात्र संगठन एबीवीपी का भण्डाफोड़ किया। विश्वविद्यालय प्रशासन लगातार नियमों में बदलाव करता रहा। सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के इतना ज़ोर लगाने के बावजूद भी चुनावों मे छात्रों की भागीदारी नगण्य रही। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के 222 कक्षा प्रतिनिधियों मे सिर्फ 11 (4.95%) पदों पर ही मतदान के जरिये कक्षा प्रतिनिधि चुने गये। बाकी बचे पदों मे से 131 पर या तो नामांकन भरा ही नहीं गया या वापिस ले लिया गया। 80 पद सर्वसम्मति से चुन लिये गये। रोहतक के ही जाट कॉलेज में करीब 8,000 की आबादी में से सिर्फ दो नामांकन आये और बाद में वे भी वापस ले लिये गये। ऐसा ही हाल कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का रहा। वहाँ 224 कक्षा प्रतिनिधियों मे से सिर्फ 41 (18.30%) पदों को ही मतदान के जरिये चुना गया। बाकी बचे 183 पदों मे से 102 पद सर्वसम्मति से चुने गये और 81 पदों पर सबसे अधिक अंक पाये छात्र को चुना गया। यही हाल लगभग हर विश्वविद्यालय और कॉलेज का रहा। आँकड़े स्पष्ट बता रहे हैं कि प्रदेश के छात्र समुदाय ने चुनावों का सफल बहिष्कार किया है। एबीवीपी ने अकेले ही चुनावों में भागीदारी की इसके बावजूद भी बहुत से कॉलेजों में वो प्रधान का पद ही नहीं जीत पाये। बीजेपी सरकार इन चुनावों के जरिये अपने दोहरे हित साधना चाहती थी पहला अपने छात्र संगठन एबीवीपी को हरियाणा मे स्थापित करना ताकि अपनी वोट बैंक की राजनीति सुरक्षित की जा सके, दूसरा अपने चुनावी वायदे को पूरा करने की नौटंकी की जा सके। पर सरकार की हर चाल उल्टी पड़ गयी। हरियाणा के इस छात्र संघ चुनाव के दौरान एबीवीपी का दोगला चरित्र नंगा हो गया और छात्रों के ऊपर जिस बर्बर तरीके से लाठी चार्ज किया गया और छात्रों के ही ऊपर केस दर्ज किए गये, इससे छात्र समुदाय में सरकार की भी पोल खुल गयी। कहने की कुल बात यह है कि हरियाणा में छात्र संघ चुनाव के नाम पर इलेक्शन नहीं बल्कि सेलेक्शन की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। हरियाणा में प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव की माँग छात्रों के व्यापक हितों के साथ जुड़ती है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-दिसम्बर 2018
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