‘‘यदि हम विज्ञान की आलोचनात्मक पद्धति के बारे में बताये बिना, सिर्फ़ विज्ञान की खोजों और उत्पादों के बारे में शिक्षा देंगे, तो एक औसत आदमी के लिए विज्ञान और छद्म-विज्ञान के बीच फ़र्क कर पाना भला कैसे सम्भव होगा? विज्ञान की पद्धति विज्ञान की खोजों की अपेक्षा बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है।’’

-कार्ल सागान

‘‘राष्ट्र की एकता मंचों पर लम्बे-लम्बे भाषण से नहीं होगी। इसके लिए हमें ठोस काम करना होगा। वह ठोस काम यही है कि देश के भीतर धर्म और जाति-भेद ने जितनी दीवारें खड़ी की हैं, उन्हें गिरा देना। हाँ, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई या लामज़हब होने से हमारे खान-पान, शादी-ब्याह में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर हमें इसके लिए मज़हब से भी लोहा लेने के लिए तैयार रहना चाहिए।’’

-राहुल सांकृत्यायन

मानवीय यातना के प्रति उदासीन विद्वता अनैतिक है।

-रिचर्ड लेविन्स

‘‘मैं चाहता हूँ
पानी, आग, हवा, चावल, मिट्टी ,किताबें
सभी मनुष्यों के लिए’’

-पाब्लो नेरुदा

‘दुनिया हमारी सोच से ज़्यादा अनोखी है और विज्ञान में आश्चर्यचकित होना अपरिहार्य है। जैसे हमने पाया कि कीटनाशक कीटों को बढ़ाते है, जीवाणुनाशक (एण्टीबायोटिक) रोग जनकों को पैदा कर सकते है, खेती का विकास भुखमरी उत्पन्न कर सकता है, बाढ़ नियंत्रण बाढ़ पैदा कर सकता है। मगर इनमें से कुछ आश्चर्यचकित करने वाली बातों को टाला जा सकता था अगर पूर्ण के सन्दर्भ में सभी समाधानों को समायोजित करने वाली समस्याओं के बारे में सोचा जाता।’’

-रिचर्ड लेविन्स

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मार्च-अप्रैल 2016

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