हरियाणा पुलिस का दलित विरोधी चेहरा एक बार फिर बेनकाब
हरियाणा में दलित उत्पीड़न के बर्बर मामले लगातार ही सामने आते रहते हैं। ज़्यादातर मामलों में दोषियों पर कोई आँच नहीं आती और कई बार तो दलित उत्पीड़न का अभिकर्ता ही स्वयं राज्य मशीनरी और पुलित प्रशासन होते हैं। गत 24 दिसम्बर सुबह 4 बजे, पुलिस प्रताड़ना से परेशान होकर एक निर्दोष युवक आत्महत्या का शिकार हो गया। हरियाणा के जिला कैथल के गाँव भाणा के ऋषिपाल को पुलिस द्वारा गैरकानूनी तरीके से उठा लिया गया था, एक लड़के व लड़की के प्रेम-प्रसंग के चलते घर से “भागने” के मामले को लेकर उसे बेवजह शारीरिक और मानसिक तौर पर परेशान किया गया उसे धामकियाँ दी गयीं, जाति-सूचक गालियाँ दी गयीं और कहा गया कि तुम्हें सीआईए स्टाफ को सौंप दिया जायेगा! (सीआईए स्टाफ हरियाणा पुलिस का ही अंग है जो “अपराधियों” पर कठोर कार्रवाई करने के लिए कुख्यात है।) लेकिन ऋषिपाल का उक्त मसले से कोई भी सम्बन्ध नहीं था। ऋषिपाल पास के शहर पूण्डरी में मेहनत-मज़दूरी का काम करता था। जब घर वालों के द्वारा युवक को छोड़ देने की बात की गयी तो छोड़ने की एवज में पुलिस वालों के द्वारा युवक के घर वालों से 15,000 रुपयों की माँग की गयी। हालाँकि गाँव वालों के दबाव में आकर युवक को थाने से छोड़ दिया गया था लेकिन उत्पीड़न का क्रम यहीं पर नहीं रुका। रात को पुनः पुलिस वाले घर आकर फ़िर से युवक को धमकाकर गये। बेवजह परेशान किये जाने और शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना के शिकार ऋषिपाल ने सुबह 4 बजे आत्महत्या करके अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर ली। यह घटना बेहद निन्दनीय है तथा इससे हरियाणा पुलिस का दलित और ग़रीब विरोधी चेहरा एक बार फिर से बेनकाब होता है।
दलित और ग़रीब विरोधी यह पहली घटना नहीं है। अभी पुगथला, जिला सोनीपत, गोहाना और सुनपेड़ काण्ड को हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। विदित हो इन मामलों में भी पुलिस-प्रशासन की कार्यशैली पर गम्भीर सवाल उठे थे तथा आरोप लगे थे। दलित उत्पीड़न की यदि बात की जाये तो भगाणा, डांगावास, खैरलांजी, जवखेड़, गोहाना, दुलीना, मिर्चपुर, दानकौर, भठिण्डा आदि जगहों पर भयंकर दलित विरोधी घटनाओं को अंजाम दिया गया। उत्तार भारत के तीन राज्य पंजाब, हरियाणा और राजस्थान दलित उत्पीड़न की घटनाओं के लिए खासे कुख्यात हैं। दलित उत्पीड़न के मामले एक तरफ तो शासन-प्रशासन व सरकारों की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हैं वहीं दूसरी और हमारे समाज में दलित और ग़रीब विरोधी मानसिकता भी इनसे प्रदर्शित होती है। पुलिस विभाग के लोग भी बड़ी संख्या में बुरी तरह से दलित और गरीब विरोधी पूर्वाग्रहों का शिकार होते हैं। दलित-गरीब और समाज के कमजोर तबके प्रताड़ित करने वालों का आसान शिकार बन जाते हैं। भयंकर हत्याकाण्डों को अंजाम देकर बड़ी ही आसानी से दबा दिया जाता है। समाज की ग़रीब आबादी उत्पीड़न को अपनी नियति मान लेती है और उत्पीड़कों के खि़लाफ़ उसके गुस्से को कोई दिशा नहीं मिल पाती।
ऋषिपाल की आत्महत्या के मामले को दबाने के भी पूरे प्रयास शासन-प्रशासन के द्वारा किये गये थे। उन्होंने आत्महत्या के लिए नयी ही कहानी गढ़ी कि ऋषिपाल किन्हीं कारणों से मानसिक रूप से परेशान था और उसकी आत्महत्या में पुलिस की कोई भूमिका नहीं है आदि-आदि। अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच ने उक्त मामले को तुरन्त संज्ञान में लिया और नौजवान भारत सभा के सहयोग से पुलिस व शासन-प्रशासन के रवैये का सख्त विरोध किया। लोगों को संगठित करके विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया तथा अस्पताल का भी घेराव किया, पुलिस की करतूत लोगों के सामने लाने के लिए व्यापक परचा भी बाँटा गया। लोगों से न्याय के संघर्ष में साथ आने की अपील की गयी और कहा गया कि ज़्यादती किसी के साथ भी हो सकती है हमारा एक-दूसरे का साथ ही तमाम तरह के उत्पीड़न का मुकाबला कर सकता है और लोग साथ में आये भी। इसके बाद प्रशासन की नींद टूटी और तुरन्त प्रभाव से थाना प्रभारी को निलम्बित कर दिया गया और अन्य दोषियों के खि़लाफ़ भी नामजद मामला दर्ज किया गया। अनुसूचित जाति आयोग ने भी मामले को अपने संज्ञान में लिया और ईश्वर सिंह ने गाँव में अपनी हाज़िरी लगायी तथा दोषियों को सज़ा देने और ऋषिपाल के परिजनों को मुआवज़ा देने का आश्वासन दिया।
अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच के अजय ने बताया कि दलित उत्पीड़न के मामलों का समाज के सभी जातियों के इंसाफ़पसन्द लोगों को एकजुट होकर संगठित विरोध करना चाहिए। अन्य जातियों की ग़रीब आबादी को यह बात समझनी होगी की ग़रीब मेहनतकश दलितों, गरीब किसानों, खेतिहर मज़दूरों और समाज के तमाम ग़रीब तबके की एकजुटता के बल पर ही तमाम तरह के अन्याय की मुख़ालफ़त की जा सकती है। उन्होंने अपनी बात में कहा सवर्ण और मंझोली जातियों की गरीब-मेहनतकश आबादी को श्ह बात समझनी होगी कि यदि हम समाज के एक तबके को दबाकर रखेंगे, उसका उत्पीड़न करेंगे तो स्वयं भी व्यवस्था द्वारा दबाये जाने और उत्पीड़न किये जाने के लिए अभिशप्त होंगे। साथ ही दलित जातियों की गरीब-मेहनतकश आबादी को भी यह बात समझनी होगी कि तमाम तरह की पहचान की राजनीति, दलितवादी राजनीति से हम दलित उत्पीड़न का मुकाबला नहीं कर सकते। दलितों का वोट की राजनीति में एक मोहरे के सामान इस्तेमाल करने वाले लोग केवल रस्मी तौर पर ही मुद्दों को उछालते हैं और उन मुद्दों का वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल करते हैं। इनके लिए कार्टून महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है किन्तु दलित उत्पीड़न के भयंकर मसलों के समय ये बस बयान देकर अपने-अपने बिलों में दुबक जाते हैं। कुर्सी मिलने के बाद तो दलितों के इन तारणहारों की ज़बान को लकवा ही मार जाता है। मायावती, गीता भुक्कल, शैलजा कुमारी, रामदास आठवले, थिरुमावलवन, रामविलास पासवान, जीतनराम मांझी और उदितराज इसके कुछ ही उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि अपनी एकजुटता के बल पर ही हम सत्ता-व्यवस्था के दमन-उत्पीड़न का मुकाबला कर सकते हैं। साथ ही हमें ग़ैर-दलित जातियों के मेहनतकशों-मज़दूरों व ग़रीब आबादी में मौज़ूद जातिगत भेदभावों व पूर्वाग्रहों के विरुद्ध संघर्ष भी चलाना होगा। दलित और ग़रीब उत्पीड़न की तमाम घटनाओं के खि़लाफ़ हर इंसाफ़पसन्द इंसान को अपनी आवाज़ उठानी चाहिए भले ही वह किसी भी जाति या धर्म से क्यों न जुड़ा हो।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्बर 2015-फरवरी 2016
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