धीमी मौत
मार्था मेदेइरोस (धीमी मौत कविता काफी प्रचलित है और इण्टरनेट पर अक्सर पाब्लो नेरूदा के नाम से शेयर होने वाली ये कविता असल में ब्राज़ीलियन कवयित्री मार्था मेदेइरोस की है।)
जो बन जाते हैं आदत के गुलाम,
चलते रहे हैं हर रोज़ उन्हीं राहों पर,
बदलती नहीं जिनकी कभी रफ्तार,
जो अपने कपड़ों के रंग बदलने का जोखिम नहीं उठाते,
और बात नहीं करते अनजान लोगों से,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो रहते हैं दूर आवेगों से,
भाती है जिन्हें सियाही उजाले से ज़्यादा,
जिनका ‘मैं’ बेदखल कर देता है उन भावनाओं को,
जो चमक भरती हैं तुम्हारी आँखों में,
उबासियों को मुस्कान में बदल देती हैं,
ग़लतियों और दुःखों से उबारती हैं हृदय को,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो उलट-पुलट नहीं देते सबकुछ
जब काम हो जाये बोझिल और उबाऊ,
किसी सपने के पीछे भागने की ख़ातिर
चल नहीं पड़ते अनजान राहों पर,
जो जिन्दगी में कभी एक बार भी,
समझदारी भरी सलाह से बचकर भागते नहीं,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो निकलते नहीं यात्राओं पर,
जो पढ़ते नहीं,
नहीं सुनते संगीत,
ढूँढ़ नहीं पाते अपने भीतर की लय,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो ख़त्म कर डालते हैं ख़ुद अपने प्रेम को,
थामते नहीं मदद के लिए बढ़े हाथ,
जिनके दिन बीतते हैं
अपनी बदकिस्मती या
कभी न रुकने वाली बारिश की शिकायतों में,
वे मरते हैं धीमी मौत।
जो कोई परियोजना शुरू करने से पहले ही छोड़ जाते हैं,
अपरिचित विषयों के बारे में पूछते नहीं सवाल,
और चुप रहते हैं उन चीज़ों के बारे में पूछने पर
जिन्हें वे जानते हैं,
वे मरते हैं धीमी मौत।
किश्तों में मरते चले जाने से बचना है
तो याद रखना होगा हमेशा
कि जिन्दा रहने के लिए काफ़ी नहीं बस साँस लेते रहना,
कि एक प्रज्ज्वल धैर्य ही ले जायेगा हमें
एक जाज्वल्यमान सुख की ओर।
You start dying slowly
Martha Medeiros (‘Dying slowly’ poem is quite popular but this poem is mostly attributed to Pablo Neruda although it is written by Brazilian poet Martha Medeiros)
He who becomes the slave of habit,
who follows the same routines every day,
who never changes brand,
who does not risk and change the color of his clothes,
who does not talk to people he doesn’t know
dies slowly.
He who makes television his guru
dies slowly.
He or she who shuns passion,
who prefers black on white,
and the dots on the “i” to a whirlpool of emotions,
precisely those that recover the gleam of the eyes,
smiles from the yawns,
hearts from the stumbling and feelings
dies slowly.
He or she who does not turn things topsy-turvy,
who is unhappy at work,
who does not risk certainty for uncertainty,
to thus follow a dream,
those who do not forego sound advice at least once in their lives,
die slowly.
He who does not travel,
who does not read,
who can not hear music,
who does not find grace in himself,
dies slowly.
He who slowly destroys his self love,
who does not allow himself to be helped,
who spends days on end complaining about his own bad luck,
about the rain that never stops,
dies slowly.
He or she who abandon a project before starting it,
who fail to ask questions on subjects he doesn’t know,
he or she who don’t reply when they are asked something they do know,
die slowly.
Let’s avoid death in small doses,
reminding oneself that being alive requires an effort far greater than the simple fact of breathing.
Only a burning patience will lead
to the attainment of a splendid happiness.
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!