लुधियाना बलात्कार व क़त्ल काण्ड की पीड़िता और बहादुरी से बलात्कारियों-कातिलों के ख़िलाफ़ जूझने वाली शहनाज़़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए विशाल लामबन्दी और जुझारू संघर्ष

लखविन्दर

2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-7लुधियाना में बलात्कार व क़त्ल काण्ड की पीड़िता और लुधियाना के ढण्डारी इलाक़े में रहने वाले एक साधारण परिवार की 16 वर्षीय बेटी और बारहवीं कक्षा की छात्रा शहनाज़़ को एक राजनीतिक शह प्राप्त गुण्डों द्वारा अगवा किये जाने, सामूहिक बलात्कार करने, मुक़दमा वापिस लेने के लिए डराने-धमकाने, मारपीट करने और आख़िर घर में घुसकर दिन-दिहाड़े मिट्टी का तेल डालकर जलाए जाने के घटनाक्रम के ख़िलाफ़ पिछले दिनों लोगों, ख़ासकर औद्योगिक मज़दूरों का आक्रोश फूट पड़ा। इंसाफ़पसन्द संगठनों के नेतृत्व में लामबन्द होकर लोगों ने ज़बरदस्त जुझारू आन्दोलन लड़ा है और दोषी गुण्डों को सज़ायें दिलाने के लिए संघर्ष जारी है। शहनाज़़ और उसके परिवार के साथ बीता यह दिल दहला देने वाला घटनाक्रम समाज में स्त्रियों और आम लोगों की बदतर हालत का एक प्रतिनिधि उदाहरण है। बिगुल मज़दूर दस्ता व अन्य जुझारू संगठनों के नेतृत्व में हज़ारों लोगों ने सड़कों पर जुझारू आन्दोलन लड़े, इस आन्दोलन से कई अहम उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं।

अगवा, बलात्कार व क़त्ल का दिल दहला देने वाला घटनाक्रम

2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-24एक राजनीतिक शह प्राप्त गुण्डा गिरोह ने शहनाज़ को 25 अक्टूबर को स्कूल जाते समय अगवा किया था। शहनाज़़ और उसका परिवार पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज करवाने गये तो उन्हें पुलिस के बेहद अमानवीय रवैये का सामना करना पड़ा। पुलि‍स वालों ने कहा कि रिपोर्ट दर्ज करवाकर क्यों बदनामी बटोरते हो, लड़की किसी के साथ भाग गयी होगी, अपने आप वापिस आ जायेगी। दो दिन बाद गुण्डों ने शहनाज़़ को छोड़ दिया। सामूहिक बलात्कार का शिकार, शारीरक और मानसिक तौर पर बहुत बुरी हालत में शहनाज़़ 27 अक्टूबर की रात बारह बजे घर लौटी। अगले दिन माता-पिता शहनाज़़ को लेकर पुलिस के पास गये तो फिर वही टालमटोल की गयी। एक चौकी इंचार्ज ने तो उनसे पचास हज़ार रुपए रिश्वत तक माँग ली। उन्हें एक चौकी से दूसरी चौकी दौड़ाया गया। बहुत भागदौड़ के बाद एफ़आईआर लिखी भी गयी तो बलात्कार की धारा नहीं लगाई गयी। शहनाज़़ और उसके माता-पिता ने पुलिस से बहुत कहा कि उसका मेडीकल करवाया जाये। लेकिन पुलिस वाले आज-कल करते-करते टालते रहे और एक हफ्ता निकाल दिया। एक हफ्ते के बाद हुए मेडीकल में बलात्कार होने की पुष्टी होने की बहुत कम सम्भावनाएँ रह जाती हैं। उनका वकील भी ख़रीद लिया गया। बहुत चालाकी के साथ जज के सामने शहनाज़ का बयान करवा दिया गया कि उसके साथ बलात्कार की कोशिश हुई है। वह यह नहीं समझ सकी कि “कोशिश” कहने से उसके बयान के अर्थ ही बदल जायेंगे। चार गुण्डों पर एफ़आईआर दर्ज हुई थी। तीर गिरफ्तार हुए। गुण्डा गिरोह के बाक़ी गुण्डों ने शहनाज़़ और उसके परिवार को केस वापिस लेने के लिए डराया धमकाया। शहनाज़़ जब 31 अक्टूबर को घर में अकेली थी तो गुण्डों ने घर में घुसकर उसके हाथ-पैर बाँधकर, मुँह में कपड़ा ठूँसकर पीटा। अठारह दिन जेल में रहने के बाद बलात्कार व अगवा के तीन दोषी भी जमानत पर रिहा कर दिये गये। शहनाज़़ और उसके परिवार को जान से मारने की धमकियाँ दी जा रहीं थी। लेकिन उन्होंने केस वापिस नहीं लिया। वे पुलिस प्रशासन के पास सुरक्षा माँगने गये। प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मदद माँगी। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से मदद माँगी। लेकिन कहीं से मदद नहीं मिली। चार दिसम्बर को माता-पिता इस मसले के सम्बन्ध में कचहरी गये थे। इसी समय के दौरान गुण्डों ने शहनाज़़ को मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी।

2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-18चार दिसम्बर को शहनाज़ को जलाए जाने की घटना के बाद भी पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई दोषियों का साथ देती रही। जलाए जाने की घटना के बाद शहनाज़़ के माता-पिता उसे बाईक पर बिठाकर फोकल प्वाइण्ट थाने ले गये। वहाँ पुलिस वालों ने उनकी कोई बात सुनने और मदद करने से इनकार कर दिया। माता-पिता को शहनाज़़ को बाईक पर बिठाकर ही सरकारी अस्पताल पहुँचाना पड़ा। शहनाज़़ ने अस्पताल में जज को दिये बयान में जलाए जाने के सम्बन्ध में सात लड़कों (अगवा-बलात्कार केस सहित कुल आठ दोषी हैं) का नाम लिया। चारों तरफ़ से थू-थू होने के बाद चार गुण्डों का पकड़ा गया। बाक़ी आज़ाद घूमते रहे। इलाज के लिए पुलिस-प्रशासन या सरकार ने ज़रा भी मदद नहीं की। 90 प्रतिशत जल चुकी शहनाज़़ को लुधियाना के पटियाला के रिज़न्दरा अस्पताल रैफर कर दिया गया। वहाँ से चण्डीगढ़ के 32 सेक्टर अस्पताल में रैफर कर दिया गया। शहनाज़ को लुधियाना से सीधे पीजीआई, 32 सेक्टर या अन्य किसी अच्छे अस्पताल पहुँचाने और इलाज करवाने में परिवार की मदद करने में पुलिस-प्रशासन ने आवश्यक भूमिका निभाई होती तो शायद शहनाज़़ बच जाती। चार दिन तक शहनाज़़ मौत से जूझती रही। आठ दिसम्बर की रात तकरीबन 1 बजे उसकी मौत हो गयी। मौत से कुछ देर पहले उसने माता-पिता को कहा था – मुझे इंसाफ़ चाहिए।

शहनाज़़- स्त्रियों पर अत्याचारों के ख़िलाफ़ संघर्ष का एक प्रतीक

2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-4शहनाज़ स्त्रियों पर जुल्मों के ख़िलाफ़ संघर्ष का एक प्रतीक है। वह सभी स्त्रियों के सामने एक मिसाल कायम करके गयी है। अधिकतर स्त्रियाँ और उनके परिवार बलात्कार, अगवा, छेड़छाड़ आदि घटनाओं को सामाजिक बदनामी, मारपीट, जानलेवा हमले के डर, न्याय मिलने की नाउम्मीद आदि कारणों से छिपा जाते हैं। लेकिन हिम्मती ग़रीब परिवार और उनकी बहादुर बेटी शहनाज़़ ने ऐेसा नहीं किया। वह डटी रही, लड़ती रही, हार कर चुप नहीं बैठी। लड़ते-लड़ते उसने मौत को गले लगा लिया। सोलह वर्ष की वह बहादुर लड़की सभी स्त्रियों, उत्पीड़ितों, ग़रीबों, आम लोगों के सामने एक मिसाल है। शहनाज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए गुण्डा-पुलि‍स-राजनीतिक गुण्डा गठजोड़ के ख़िलाफ़ जुझारू संघर्ष लड़कर इंसाफ़पसन्द लोगों ने उसे एक सच्ची श्रद्धांजलि दी है।

गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक नापाक़ गठजोड़ के ख़िलाफ़ जुझारू संघर्ष, विशाल लामबन्दी

2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-8आठ दिसम्बर को कारख़ाना मज़दूर यूनियन, पंजाब ने प्रेम नगर, ढण्डारी ख़ुर्द में लोगों की बड़ी मीटिंग बुलाई और पीड़ित परिवार को इंसाफ़ दिलाने की लड़ाई का ऐलान किया। इस मीटिंग में लगभग एक हज़ार कारख़ाना मज़दूर, दुकानदार, रेहड़ी लगाने वाले आदि लोग शामिल थे। कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेताओं और मोहल्ले के कुछ लोगों को शामिल करके ‘ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्षकमेटी’ बनाई गयी। यह तय किया गया कि अगले दिन पुलिस कमिश्नर के कार्यालय पर बड़ा धरना-प्रदर्शन किया जाये और माँग की जाये कि सभी दोषियों को तुरन्त गिरफ्तार किया जाये, जल्द से जल्द चलान पेश करके केस फास्ट ट्रेक कार्ट में चलाया जाये। दोषियों को मौत की सज़ा हो। गुण्डा गिरोह की मदद करने के दोषी पुलिस अफसरों को जेल में ठूँसा जाये और आपराधिक केस चलाकर सख्त से सख्त सजा दी जाये। पीड़ित परिवार को अधिक से अधिक मुआवजा दिया जाये। आम लोगों ख़ासकर स्त्रियों की सुरक्षा की गारण्टी की जाये। गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक नापाक गठबन्धन को तोड़ा जाये।

2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-7इसी रात लगभग 1 बजे शहनाज़ की मौत हो गयी। अगले दिन पुलिस कमिश्नर के कार्यालय पर प्रदर्शन नहीं हो पाया लेकिन शहनाज़ के घर पर ही हज़ारों लोगों को इकठ्ठा किया गया। कारख़ाना मज़दूर यूनियन के साथ बिगुल मज़दूर दस्ता, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, नौजवान भारत सभा और पंजाब स्टूडेंटस यूनियन (ललकार) भी संघर्ष में आ गये। इलाक़े के लोगों को अपील की गयी कि मज़दूर कामों पर न जायें, दुकानदार दुकानें बन्द रखें और इंसाफ़ के इस संघर्ष में शामिल हों। हज़ारों लोग प्रदर्शन में शामिल हुए। प्रशासन ने इलाक़े को पुलिस छावनी में बदल दिया। लोगों को प्रदर्शन बन्द करने के लिए कहा गया, लेकिन लोग डटे रहे। गली-गली मे नाके लगाए खड़ी पुलिस ने बहुत बड़ी संख्या मज़दूरों को प्रदर्शन स्थल पर पहुँचने नहीं दिया। लेकिन बहुत मज़दूर, जिनमें स्त्रियाँ भी शामिल थीं, पुलिस से झगड़कर प्रदर्शन स्थल पर पहुँचे। दहशत के जरिए प्रदर्शन को बिखराने में नाकाम रहने के बाद पुलिस ने चुनावी पार्टियों के दलाल नेताओं और दलाल धार्मिक नेताओं का सहारा लिया। दलालों का एक बड़ा झुण्ड प्रदर्शन खत्म करवाने की कोशिश में लगा रहा। इनका पूर ज़ोर था कि लाश आने से पहले प्रदर्शन बन्द हो जाये। शहनाज़़ की माँ और भाई चण्डीगढ़ से पहले आ गये और दलालों ने शहनाज़़ की माँ को भरमाने की कोशिश की। कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता ने तो इसे अपनी कौम का मसला बताकर शहनाज़ की माँ को प्रदर्शन बन्द करवाने के लिए कहा लेकिन शहनाज़ की माँ ने उसे जबाव दिया कि कि प्रदर्शन बन्द नहीं होगा। दलालों ने मज़दूर नेताओं को ग़ैर-सामाजिक तत्व, आतंकवादी आदि कहकर बदनाम करने की कोशिश की। शहनाज़़ की मौत के लिए पीड़ित परिवार को ही दोषी ठहराने की कोशिशें हुईं। बाद में इन दलालों ने अखबारों में भी बिना नाम छपवाए यह झूठी बयानबाजी की परन्तु इन दल्लों को मुँह तोड़ जवाब देते हुए लोग संघर्ष में डटे रहे। पुलिस चुनावी नेताओं की मदद से लाश को प्रदर्शन से दूर रखने में कामयाब रहा। एक धार्मिक नेता द्वारा धार्मिक रीति रिवाजों का बहुत अधिक, बार-बार वास्ता देने के कारण परिवार को रात 10:30 बजे शहनाज़़ की लाश दफ़नाने पर मज़बूर होना पड़ा।

2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-9लेकिन पुलिस जनता का आक्रोश और संघर्ष कमेटी का सख्त रवैया देख चुकी थी। 9 दिसम्बर के इस प्रदर्शन के बाद अन्य गुण्डे भी पकड़ लिए गये। लेकिन सरकार और पुलिस की दोषियों को बचाने की साजिशें बन्द नहीं हुईं। पंजाब के उपमुख्यमन्त्री और गृह मन्त्री सुखबीर बादल ने 12 दिसम्बर को मीडिया में बयान दिया कि “मामले की सच्चाई कुछ और है”। इस बयान का अर्थ है कि नब्बे प्रतिशत जल चुकी, ज़िन्दगी मौत की लड़ाई लड़ रही शहनाज़़ का जज के सामने दिया बयान झूठा है। डेढ़ महीने से सुरक्षा और इंसाफ़ के लिए जूझ रहे पीड़ित परिवार के जख्मों पर सुखबीर बादल के बयान ने नमक छिड़क दिया। स्पष्ट हो चुका था कि भ्रष्ट पंजाब सरकार मामले को गलत रंगत देकर, कातिल-बलात्कारी गुण्डा गिरोह और उसकी पीठ थपथपाने वाले नेताओं को बचाना चाहती है। जालिम-भ्रष्ट हाकिम घिनौनी चालें चल रहे थे। सुखबीर बादल के बयान के ख़िलाफ़ 14 दिसम्बर को लुधियाना के तीन हज़ार से अधिक लोगों ने, जिनमें मुख्य तौर पर मज़दूर शामिल थे, ने ‘संघष र्कमेटी’ और मज़दूर-नौजवान-छात्र संगठनों के नेतृत्व में नेश्नल हाइवे-1 (जीटी रोड) ढाई घण्टे तक पूरी तरह जाम कर दिया। ढण्डारी इलाक़ा पुलिस छावनी में बदल दिया गया। राइफलों, डण्डों आदि हथियारों से लैस पुलिस दस्ते प्रदर्शन के सामने तैनात कर दिये गये। पुलिस दहशत के जरिए प्रदर्शन के बिखराना चाहती थी। लेकिन लोग हिले नहीं। प्रशासन द्वारा इंसाफ़ की गारण्टी करने के बाद ही नेश्नल हाइवे ख़ाली किया गया। यह सरकार, पुलिस-प्रशासन को एक चेतावनी थी कि अगर दोषियों को बचाने की कोशिश हुई तो लोग हुक्मरानों की इँट से इँट बजा देंगे। इसके बाद सरकार द्वारा यह सफेद झूठा फैलाया गया कि सुखबीर बादल का बयान किसी अन्य मामले के बारे में था। इसके बाद आज़ाद घूम रहा एक और दोषी भी गिरफ्तार कर लिया गया। अब बिन्दर, अनवर, अमरजीत, न्याज, बल्ली, शहजाद, बब्बू, और विक्की जेल में हैं। उपरोक्त के अलावा दो और व्यक्ति भी गिरफ्तार किये गये हैं। पुलिस अब कह रही है कि इनमें से सुल्तान नाम का एक लड़़का यह कह रहा है कि 25 से 27 अक्टूबर तक लड़की उसके साथ थी न कि अगवा हुई थी। इस तरह गुण्डा-पुलिस-सियासी गठजोड़ अब झूठे गवाह खड़े कर रहा है। मसले को फिर से गलत रंगत देने की साजिशें जारी हैं। जाँच-पड़ताल दोषियों को बचाने की दिशा में चलाई जा रही है न कि दोषियों को सजा करवाने के लिए। सरकार अपहरण, बलात्कार व क़त्ल को घोर अमानवीय घटनाक्रम के प्रति लोगों का रोष रम करने के लिए इसे प्रेम कहानी बनाने की कोशिश कर रही है।

2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-3संघर्ष की ज़रूरतों को देखते हुए ‘संघर्ष कमेटी’ को पुनगर्ठित किया गया। कारख़ाना मज़दूर यूनियन, पंजाब ने टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन, बिगुल मज़दूर दस्ता, पंजाब स्टूडेण्टस यूनियन (ललकार) और नौजवान भारत सभा के साथ मिलकर ‘ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी’ का पुनःगठन किया। 28 दिसम्बर को शहनाज़़ को समर्पित विशाल श्रद्धांजलि समागम करने का ऐलान किया गया। लुधियाना सहित पंजाब के अन्य जिलों के शहरों-गाँवों में सघन मुहिम चलाकर लोगों को लामबन्द किया गया। लगभग दस हज़ार लोग श्रद्धांजलि समागम में पहुँचे। इस दिन सरकार ने ढण्डारी इलाक़े को पहले से भी कहीं अधिक पुलिस लगाकर दहशत का माहौल खड़ा किया। दहशत के इस माहौल और कड़ाके की ठण्ड के बावजूद विशाल जनसमूह इकट्ठा हुआ।

माकपा-सीटू के दलाल नेताओं की काली करतूतें

2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-1माकपा और इसके मज़दूर फ्रण्ट सीटू के दलाल नेता यहाँ भी जनता की पीठ में छुरा खोंपने की करतूतों से बाज़ नहीं आये। मामले की जाँच-पड़ताल करने के बहाने से ये दलाल नेता शहनाज़़ के माता-पिता से मिलने गये। वहाँ इनका एक नेता संघर्ष कमेटी के खिलाफ़ बोलता हुआ कहता है कि छोटी-मोटी कमेटियों से न्याय नहीं मिलेगा, कि वे लोग “बड़ी कमेटी” बनाकर न्याय दिलाएँगे। उसने कहा कि वो लोग उन्हें वकील भी देंगे। इस पर परिवार ने उसे कहा कि आपको जो भी सहयोग करना है उसके बारे में बिगुल मज़दूर दस्ता के लखविन्दर से बात कर लें। इन दलालों की दाल नहीं गली तो वे दुबारा कभी वहाँ नज़र नहीं आये। लेकिन उन्होंने संघर्ष का नुक़सान करने की, तोड़फोड़ करने की घटिया कोशिशें नहीं छोड़ीं। इन्होंने कई जगह यह अफवाह उड़ाई कि बिगुल वाले दंगा-फसाद करवाना चाहते हैं। इन्होंने लोगों को डराया कि 28 दिसम्बर को दंगा-फसाद होगा, गोली चलेगी, कि 2010 वाला ढण्डारी काण्ड फिर से होगा। फोकल प्वाइण्ट में स्थित राजीव गाँधी कालोनी में इन दलालों ने यह अफवाह पूरा ज़ोर लगाकर उड़ाई। 28 दिसम्बर को श्रद्धांजलि समागम में बजाज संस कारख़ाने से बड़ी संख्या में मज़दूरों ने शामिल होना था। रविवार को इस कारख़ाने में छुट्टी रहती है। सीटू के दलाल नेताओं ने इस कारख़ाने की मैनेज़मेण्ट से कहकर 28 को कारख़ाना चलवा दिया। इसके बावजूद भी काफ़ी लोग यहाँ से समागम में शामिल हुए। लेकिन इनकी झूठी अफवाहों और तोड़फोड़ की अन्य कार्रवाइयों ने काफ़ी नुक़सान भी किया। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जनता के सामने माकपा-सीटू का जनविरोधी दलाल-गन्दा चेहरा और भी नंगा हो गया।

संघर्ष की अहम उपलब्धियाँ

2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-7आज समाज में स्त्रियों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। बलात्कार, क़त्ल, छेड़छाड़, मारपीट, तेजाब फेंकने, अगवा, आदि के कारण खौफनाक हालात पैदा हो चुके हैं। स्त्री विरोधी वहशी मर्द मानसिकता हर क़दम पर स्त्रियों को शिकार बना रही है। विशेष तौर पर सियासी सरपरस्ती में पलने वाले बेखौफ गुण्डा गिरोह स्त्रियों को अपनी हवस का शिकार बना रहे हैं। गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले में, स्कूलों-कालेजों के गेटों पर, यह गुण्डा गिरोह दहशत फैला रहे हैं। ऐसे समय में स्त्रियों सहित सभी आम लोगों को अपनी रक्षा के लिए ख़ुद आगे आना होगा। एकजुट होकर हमें दमनकारी, जालिम हुक्मरानों और उनके पाले हुए गुण्डा गिरोहों को ललकारना होगा। संगठित और जुझारू लड़ाई लड़नी होगी। इन हालातों में यह संघर्ष काफ़ी महत्व रखता है। नाइंसाफ़ी की बुनियाद पर टिकी इस लुटेरी पूँजीवादी व्यवस्था से लड़कर लोग शहनाज़़ और उसके परिवार को किस हद तक इंसाफ़ दिला पाने में कामयाब होंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इस संघर्ष ने अब तक कई अहम प्राप्तियाँ की हैं।

2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-5इस संघर्ष ने शहनाज़़ के सभी बलात्कारियों-कातिलों को जेल में बन्द करवाने में कामयाबी हासिल की है। पुलिस व सरकार को अपराधियों की खुलेआम मदद करने से पैर पीछे खींचने पर मज़बूर होना पड़ा है। अगर यह संघर्ष न छेड़ा गया होता तो गिरफ्तार गुण्डे जल्द ही जमानतों पर रिहा होकर बाहर आ जाते, पीड़ित परिवार पर फिर से कहर बरपाते। इस बात की पूरी सम्भावना थी कि पीड़ित परिवार को ही झूठे दोष लगाकर जेल में डाल दिया जाता। जनता के संघर्ष ने ऐसा नहीं होने दिया।

अगर यह संघर्ष न हुआ होता तो शहनाज़़ और उसके परिवार के साथ जो भयंकर अन्याय हुआ है वह दबकर रह जाता। इस संघर्ष ने इस घटनाक्रम की तरफ़ व्यापक जनता का ध्यान खींचा है। इस संघर्ष ने स्त्रियों पर होने वाले जुल्मों के मुद्दे को व्यापक स्तर पर उभारा है, गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ को जनता में नंगा किया है और इस ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ने की जररूत को लोगों के मनों में स्थापित किया है।

2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-11इस संघर्ष की एक बेहद अहम प्राप्ति लम्बे समय के दौरान लोगों में पैदा हुई पुलिस और गुण्डों की दहशत को तोड़ा जाना है। जनता के दुश्मनों में जनता की एकता की दहशत पैदा हुई है। वैसे तो पूरे समाज में ही गुण्डों और पुलिस की दहशत है लेकिन ओद्योगिक मज़दूर आबादी वाले ढण्डारी इलाक़े में पुलिस और गुण्डों की बहुत ज़्यादा दहशत बनी हुई थी। दिसम्बर 2010 में घटित ढण्डारी काण्ड के दौरान लोगों को गुण्डों और पुलिस के बर्बर दमन का सामना करना पड़ा था। लूट-पाट, छीना-झपटी, छुरेबाज़ी, मार-पीट, का शिकार और अन्य आम जनता जब सड़कों पर उतरी तो पुलिस ने गुण्डों को साथ लेकर लोगों को गोलियों से भूना था, बर्बर लाठीचार्ज किया था। लाठियों-तलवारों से लैस गुण्डों ने मज़दूरों से मारपीट की थी। मज़दूरों के घर जला दिये गये थे। बड़ी संख्या में मज़दूरों को जेल में बन्द कर दिया गया था। ढण्डारी काण्ड-2010 के जख्म अभी भरे नहीं थे। पुलिस और गुण्डों की दहशत अभी गयी नहीं थी। ऐसे हालातों में शहनाज़़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए गुण्डा-पुलिस-सियासी गठजोड़ के ख़िलाफ़ संघर्ष की शुरुआत हुई और लोगों की विशाल लामबन्दी करने में कामयाबी मिली। संघर्ष का यह पहलू बहुत महत्व रखता है।

इस संघर्ष के दौरान विभिन्न चुनावी पार्टियों के दलाल नेताओं सहित संघर्ष में तोड़फ़ोड़ करने की कोशिश करने वाली कई रंगों की ताक़तों की जनविरोधी साजिशों को नाकाम करने में कामयाबी मिली है। एकजुट संघर्ष की यह प्राप्तियाँ बताती हैं कि जनता जब एकजुट होकर इमानदार, जुझारू और समझदार नेतृत्व में योजनाबद्ध ढंग से लड़ती है तो बड़े से बड़े जन-शत्रुओं को धूल चटा सकते हैं। लोगों को शहनाज़़ के बलात्कार व क़त्ल के दोषियों को सजा करवाने के लिए तो जुझारू एकता कायम रखनी ही होगी बल्कि स्त्रियों सहित तमाम जनता पर कायम गुण्डा राज से रक्षा और मुक्ति की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए एकता को और विशाल व मज़बूत बनाना होगा।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-अप्रैल 2015

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