स्कूल चले हम, स्कूल चले हम – नेता बनने!!!

विवेक

जो भी इस ख़बर को पढ़ रहा हो उनके लिए चौंकने की कोई जरूरत नहीं है। जब एम.बी.ए., एम.सी.ए. और मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई हो सकती है तो नेता बनने की क्यों नहीं? नेताओं का काम सबसे महत्व का होता है! पूरे देश की जिम्मेदारी होती है! जिसे नेताओं ने आजादी के बाद से बार-बार साबित किया है। पहले नेता अनुभव से, धीरे-धीरे, हौले-हौले सब सीखते थे। लेकिन भई, अब तो नेता बनने की पढ़ाई की भी जरूरत है! इसलिए अभी हाल ही में पूर्व कांग्रेस नेता राज रंजन ने झारखंड की राजधानी राँची में नेतागीरी विद्यालय खोला है जहाँ नेता बनने के सब गुण सिखाये जाते हैं।

indian-politiciansहमने भी सोचा भई धन्धा तो बड़ा सही है। लोकसभा चुनाव की तारीख भी तय हो गयी है इसलिए नेताओं को शिक्षित तो जरूर करना चाहिये। और ये सोचकर हम भी नेताओं का एक स्कूल खोल रहे हैं। इसमें प्रधानाचार्य रखने में तो कठिनाई हो रही है क्योंकि सबके सब अपने क्षेत्र में धुरंधर हैं और अपने को देश का अगला प्रधानमंत्री बता रहे हैं। इसलिए शिक्षकों की ही एक टीम तैयार की है जिसमें तमाम विशेषज्ञ शिक्षक होंगे। पहले शिक्षक मोदी पढ़ायेंगे कि कैसे एक प्रायोजित कत्लेआम को ‘‘क्रिया की प्रतिक्रिया’’ का रूप दिया जाता है। यहाँ पढ़ाई सिर्फ़ थ्योरेटिकल ही नहीं होगी। प्रैक्टिकल के रूप में केरल, मुम्बई, मध्यप्रदेश दिखाया जायेगा। दूसरे बड़े शिक्षक होंगे मनमोहन सिंह, इस देश के बड़े अर्थशास्त्री, जो बतायेंगे कि उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को लागू करने के लिए “ट्रिकल डाउन थियोरी” जैसे चमत्कारी सिद्धान्तों का जामा कैसे पहनाया जाय जो कहता है कि जब समाज के शिखरों पर समृद्धि आयेगी तो वह रिसकर नीचे ग़रीब तबके तक पहुँच जायेगी! अब यह तो विश्व भर की मेहनतकश जनता अपने पिछले 30 साल के भूमण्डीकरण के अनुभव से बता सकती है कि आज की व्यवस्था में समृद्धि तो ‘ट्रिकल डाउन’ करती नहीं है लेकिन संकट ‘ट्रिकल डाउन’ ज़रूर करता है। साथ ही मनमोहन जी मन मोह लेते हुए बताएँगे कि पूँजीपतियों को अपनी अय्याशी इस तरह खुले में पेश नहीं करनी चाहिये कि देश की मेहनतकश जनता में रोष पैदा हो। मतलब की एक अच्छा नेता वही नहीं होता जो सरकार और पार्टी जैसी चीज़ों के बारे में सोचे बल्कि अच्छा नेता वह होता है जो ये सोचे कि कैसे ये सड़ी पूँजीवादी व्यवस्था बची रहे।

इसके साथ ही, बात-बात पर कैसे सरकार से रूठने का नाटक किया जाये और नपुंसक विरोध प्रदर्शन किया जाये और यह सब करते हुए भी चकित कर देने वाली जादूगरी के साथ किस तरह मज़दूरों का नाम जपते हुए नन्दीग्राम, सिंगूर किया जाये इसके लिए विशेष तौर पर संसदीय वामपंथियों की पूरी टीम स्कूल में अपनी सेवा देने को तैयार है। चन्दा उगाहने का हुनर और सोशल इंजीनियरिंग के बारे में बताने के लिए मायावती आयेंगी। और फ़िल्मी सितारों को पार्टी में भर्ती करने(खरीदने) का हुनर श्रीमान अमर सिंह जी बतायेंगे।

बाकी कैसे बड़े-बड़े घोटाले किया जायें इसके लिए तमाम मेहमान शिक्षकों को बुलाया जायेगा। पर्सनेलिटी डेवलपमेंट का कोर्स फ्री होगा। इसके शिक्षक लालू यादव होंगे जो बतायेंगे कि कैसे ऐसा भाषण दिया जाये जिसमें लोग अपनी दुर्दशा पर ही हँसे। पर्सनेलिटी डेवलपमेंट के लिए कुछ बाहुबली नेताओं को भी बुलाया जायेगा कि कैसे अपनी पर्सनेलिटी अर्थात साख (खौफ़) के दम पर चुनाव जीता जाता है। स्पेशल कोर्स में चुनावी मुद्दों और झूठे वायदों की लिस्ट फ्री दी जायेगी जिसमें क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म के नाम पर, साम्प्रदायिकता के नाम पर, आतंकवाद के नाम और विकासवाद पर वोट माँगने कि ट्रेनिंग होगी कि चुनाव के समय कैसे उन लोगों के भी पैर छुए जाते हैं जिनको दूर से भी देखने का मन नहीं करता। और जीतने के बाद कैसे जनता से पेश आना चाहिये।

यहाँ सिर्फ़ भारतीय स्तर के ही नेता नहीं होंगे बल्कि कभी-कभी अन्तरराष्ट्रीय स्तर के सबसे मक्कार नेताओं को भी बुलाया जायेगा। उदाहरण के लिए अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति बुश मेहमान अध्यापक होंगे जो बतायेंगे कि कैसे झूठा ज़ाहिर होने पर भी मुस्कराया जाता है और अगर कोई भीड़ में से जूते मार दे तो किस गति और किस कोण से बचा जाना चाहिये! इसलिए देर न करें! इस आर्थिक मन्दी के दौर में नेतागिरी ही सबसे सुरक्षित धन्धा है जिसमें कम समय में तिजोरी भरने की पक्की गारण्टी है।

दाखिले के लिए योग्यताः करोड़पति, बाहुबली या फ़िल्मी स्टार। या किसी नामी राजनीतिक परिवार से सम्बन्ध हो। पूँजीपति वर्ग की सेवा में उनके तलवे चाटने के लिए मध्य वर्ग के जो तथाकथित नौजवान अपनी नैतिकता, ईमानदारी, न्यायप्रियता, बहादुरी और तरक्कीपसन्दगी को बेच खाने का तैयार हों उनके लिए आधी सीटें आरक्षित हैं।

एडमिशन फ़ीसः  दस लाख (10,00,000 रु.) होगी क्योंकि नेता बनने की औकात किसी छोटे-मोटे आदमी की तो हो नहीं सकती।

सीटें सीमित! जल्दी करें!!!

 

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अप्रैल-जून 2009

 

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