मैगसेसे पुरस्कार की काली पृष्ठभूमि

सुजय

हममें से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने मैगसेसे पुरस्कार का नाम न सुना हो। कई लोग यह भी जानते होंगे कि मैगसेसे पुरस्कारों को एशियाई नोबेल के नाम से भी जाना जाता है। यह पुरस्कार फ़िलिपींस के राष्ट्रपति रह चुके रेमोन मैगसेसे के नाम पर दिया जाता है। यह भी बहुत से लोग जानते होंगे। लेकिन रेमोन मैगसेसे कौन थे और उनका क्या इतिहास है, इससे कम ही लोग वाकिफ़ होंगे। आइये रेमोन मैगसेसे के राजनीतिक इतिहास पर एक निगाह डालें।

medallion_2012रेमोन मैगसेसे 31 अगस्त 1907 को फ़िलिपींस में पैदा हुए। उस समय फ़िलिपींस अमेरिकी प्रभुत्व के अधीन था। अमेरिका के ख़िलाफ़ कई बड़े विद्रोह हो चुके थे। लेकिन उन सभी को दबाया जा चुका था। आखिरी दमनात्मक कार्रवाई ने अमेरिकी सेना ने फ़िलिपींस-वासियों का ज़बर्दस्त नरसंहार किया। मैगसेसे सौभाग्य से इस नरसंहार के निशाने पर नहीं आये। उन्होंने एक यातायात कम्पनी में मैकेनिक रूप में काम शुरू किया। 1941 में वह अमेरिकी सेना में भर्ती हुए। 1945 में उन्हें उनके जन्म-स्थान जेमबालेस प्रान्‍त का सैनिक गवर्नर नियुक्त किया गया। 1941 के बाद ही मैगसेसे ने जापानियों के ख़िलाफ़ गुरिल्ला युद्ध में अमेरिकी सेना की कमान सम्भाली थी। 1946 में फ़िलिपींस को आज़ादी हासिल हुई। मैगसेसे ने राजनीति में पदार्पण किया और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में वे विजयी रहे। उसी वर्ष वह लिबरल पार्टी में शामिल हो गये। यहीं से अमेरिका के एक प्रशंसक और पिछलग्गू के रूप में मैगसेसे का राजनीतिक कैरियर शुरू हुआ और इस करियर को मैगसेसे ने तमाम नरसंहारों को अंजाम देकर चार–चाँद लगा दिया।

1949 में हुक नामक एक किसान गुरिल्ला ग्रुप ने विद्रोह की शुरुआत की। हुक किसानों के लम्बे असन्तोष को अभिव्यक्ति दे रहा था जो भयंकर शोषण का शिकार थे। मैगसेसे ने दो वर्षों के भीतर अमेरिकी सेना सलाहकार एडवर्ड लेंड्सडेल की सहायता से हुकों के विद्रोह को बर्बरता के साथ कुचल दिया। मैगसेसे ने 1951 में खुलकर कहा था कि इस सप्ताह को हम संहार का सप्ताह बनाएँगे, जिसे उस वर्ष की टाइम पत्रिका ने उद्धृत भी किया था। करीब 1500 विद्रोहियों को मैगसेसे ने बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया, 487 पकड़े गये और करीब 3000 को समर्पण करने को मजबूर कर दिया।

नवम्बर 1953 में अपनी ऐसी ही सेवाओं के बदले मैगसेसे राष्ट्रपति बने और मार्च 1957 में एक विमान दुर्घटना में मारे जाने के समय तक वे इस पद पर बने रहे। अमेरिकी साम्राज्यवाद के ज़बर्दस्त समर्थक और प्रशंसक मैगसेसे इस तथ्य से नावाकिफ़ नहीं थे कि अमेरिकी साम्राज्यवाद के तहत करीब 10 लाख फ़िलिपींसवासियों का नरसंहार किया गया था। यानी कि पूरी आबादी का 10 से 15 प्रतिशत हिस्सा।

1898 तक फ़िलिपींस स्पेन का उपनिवेश था। लेकिन स्पेन और अमेरिका के बीच युद्ध के बाद पेरिस संधि के तहत फ़िलिपींस स्पेन के हाथ से अमेरिका के हाथ में चला गया। अमेरिकी उपनिवेशवादियों ने भी स्पेनी उपनिवेशवादियों की ही तरह बर्बरता से फ़िलिपींस की जनता के प्रतिरोध का दमन किया। मैगसेसे 1941 के बाद से अमेरिकी सेना में थे और इन कृत्यों में उनकी भी भागीदारी थी। 1946 में अमेरिका ने फ़िलिपींस को आज़ादी दी। लेकिन तमाम सैन्य व आर्थिक संधियों के अन्तर्गत फ़िलिपींस लम्बे समय तक अमेरिका का एक नवउपनिवेश बना रहा। मैगसेसे ने अमेरिकी साम्राज्यवाद की एक कठपुतली की तरह आचरण किया और फ़िलिपींस के राष्ट्रपति के रूप में अमेरिकी हितों के प्रति वफ़ादार बने रहे। फ़िलिपींस में लोकतंत्र का ढोंग रचाकर जो तथाकथित जनप्रतिनिधि चुने गये उनकी असलियत से आज सारी दुनिया वाकिफ़ है, चाहे वह क्वीरीनो हों, या मैगसेसे, कार्लोस डि ग्रेसिये, फ़र्दिनांद ई मार्कोस, या फ़िर ग्लोरिया मेकापगाल एरोया। ये सभी अमेरिकी हितों के रक्षक बने रहे और फ़िलिपींस की जनता पर कहर बरपा करते रहे। चाहे वह 1930 के दशक के किसान विद्रोह रहे हों, 1940 के दशक में हुकों का विद्रोह, 1960 के दशक में न्यू पीपुल्स आर्मी की बग़ावत, या फ़िर 1970 के बाद से मोरो जनता का दमन हो-हर बार यही बात साबित हुई है।

मैगसेसे के नाम पर पुरस्कार की स्थापना पूँजीवादी विश्व द्वारा अपने एक चौकस पहरेदार को दी जाने वाली मान्यता है। मैगसेसे पुरस्कार की वेबसाइट पर लिखा है कि “दुनिया समृद्ध और बेहतर हैं क्योंकि रेमोन मैगसेसे पैदा हुए थे।” शायद यहाँ दुनिया से मतलब अमेरिकी और साम्राज्यवादी दुनिया से है! यह महज़ इत्तफ़ाक नहीं है कि मैगसेसे पुरस्कार की स्थापना अमेरिकी दैत्य कारपोरेशन रॉकफ़ेलर फ़ाउण्डेशन ने की। मैगसेसे को पालने-पोसने का काम अमेरिकी साम्राज्यवाद ने ही किया था और उसका फ़ल मैगसेसे ने बखूबी चुकाया। मैगसेसे के नाम पर पुरस्कार की स्थापना का अर्थ था एक अमेरिकी पिछलग्गू के नाम को अमर कर देना, उसके आचरण को आदर्श आचरण बताना और अमेरिकी शैली से दुनिया भर “जनतंत्र” और “शान्ति” लाने के रास्ते को आदर्श बताना। यह मैगसेसे जैसे लोगों की राजनीति को आदर्श बनाने की कोशिश करना था।

1957 में इस पुरस्कार के जन्म से लेकर अब तक करीब 268 एशियाई लोगों को यह पुरस्कार मिल चुका है। इसमें से सबसे अधिक भारतीयों को मिले हैं-45। इसकी श्रृंखला 1958 में विनोबा भावे से शुरू हुई। बाद में इस “सम्मानित” सूची में पी. साईनाथ, प्रकाश व मंदाकिनी आमटे, अरविंद केजरीवाल, राजेन्द्र सिंह, संदीप पाण्डे (जिन्होंने फ़ोर्ड का पैसा लगने के कारण पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया, हालाँकि फ़ोर्ड और रॉकफ़ेलर के पैसे में फ़र्क बताने का काम तो संदीप पाण्डे ही कर सकते हैं), किरण बेदी, टी.एन. शेषन, वर्गीस कूरियन, ईला भट्ट, अरुण शौरी, आदि। इस सूची को देखकर जागरूक पाठक समझ गये होंगे कि ये पुरस्कार किन लोगों को दिये गये हैं। इनमें से अधिकांश लोग ऐसे हैं जो जाने या अनजाने व्यवस्था की सेवा में लगे हुए हैं। वे कई बार जनपक्षधर रुख प्रदर्शित करते नज़र आते हैं। लेकिन उनकी गतिविधियाँ आम तौर पर जनता के असन्तोष को सुधार के पिंजरे में कैद करने का काम करती हैं और समाज में तीखे होते अन्तरविरोधों को यथास्थिति बनाए रखने के लिए मन्द करने का काम करती हैं। कइयों ने जन पहलकदमी में अच्छे प्रयास भी किये हैं। लेकिन ये प्रयास अलग से कटे हुए प्रयोग हैं जो यह कहीं नहीं बताते कि पानी हो या बिजली, या फ़िर सूचना का अधिकार, या कोई भी और जन अधिकार या आवश्यकता-ये मुहैया कराने का काम सरकार का होता है। जनता की निगाह से सरकार और व्यवस्था को हटा दिया जाता है और शिक्षा दी जाती है कि हर चीज़ के लिए सरकार का मुँह मत देखो! लेकिन यह नहीं बताया जाता कि सरकार है किस लिए? वह कर क्यों वसूलती है? अगर स्कूल, पानी, बिजली आदि की आवश्यकताएँ जनता खुद पूरी करती है तो उसके लिए ऐसी सरकार का क्या औचित्य है जिसका काम सिर्फ़ पूँजीपतियों को मुनाफ़े की बेहतर स्थितियाँ मुहैया कराना है?

ज़ाहिर है कि कोई भी राजनीतिक चेतना-सम्पन्न व्यक्ति समझ सकता है कि इन शख्सियतों को मैगसेसे पुरस्कार क्यों मिला है। मैगसेसे ने अपनी तरह से साम्राज्यवाद की सेवा की थी। आज वैसी सेवा का स्कोप ख़त्म होता जा रहा है। आज साम्राज्यवाद ने अपनी सेवा के लिए सैन्य जनरलों की बजाय एन.जी.ओ. और कथित मानवतावादी सुधारवादियों को रखा है। जो उनके इस काम को बखूबी अंजाम देता है उसे मैगसेसे पुरस्कार से नवाज़ा जाता है। लेकिन फ़िर भी इन “मानवतावादी” हस्तियों से यह पूछने को दिल करता है कि क्या उन्हें नहीं पता है कि रेमोन मैगसेसे कौन था? क्या उन्हें नहीं पता है कि मैगसेसे भी पिनोशे, इदी अमीन, थेन शू जैसे अमेरिका-परस्त तानाशाहों में से एक था? क्या वे पिनोशे या इदी अमीन जैसे किसी शासन की याद में स्थापित पुरस्कार से नवाजा जाना पसन्द करेंगे? लेकिन फ़िर विवेक बताता है कि इन लोगों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाना स्वाभाविक ही है। आख़िर यह पुरस्कार बनाया भी तो ऐसे ही लोगों के लिए गया है जो मानवतावादी मुखौटे के साथ साम्राज्यवाद की सेवा करें और यथास्थिति को बरकरार रखने में अपना योगदान दें!

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2009

 

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।