संघी फासीवादियों का अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर नया हमला

प्रतीक्षा

गत 6 नवम्बर को दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास में एक नया काला अध्याय जुड़ा। 6 नवम्बर के दिन यूनीवर्सिटी कम्युनिटी नामक एक शिक्षकों और छात्रों के समूह ने “साम्प्रदायिकता, फ़ासीवाद और जनवादः जुमले और असलियत” विषय पर एक सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में कई नामचीन विश्लेषकों और अध्यापकों को बुलाया गया जिसमें एस.ए.आर. गिलानी भी शामिल थे। हम याद दिलाना चाहेंगे कि गिलानी ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में पढ़ाने वाले उर्दू के वही शिक्षक हैं जिनपर संसद पर हमले में शामिल होने का मुकदमा चला था और बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें आरोप-मुक्त कर दिया था। ज्ञात हो कि संघ गिरोह गिलानी के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने वाले अभियान लगातार चलाता रहा है जिसमें उन्हें एक कश्मीरी आतंकवादी और राष्ट्र-विरोधी के रूप में चित्रित किया जाता है। गिलानी पर पहले भी संघ गिरोह के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के गुण्डे हमले का प्रयास कर चुके हैं। लेकिन 6 नवम्बर को हुई घटना ने हर संवेदनशील, जनवादी और न्यायप्रिय छात्र, शिक्षक और किसी भी नागरिक को अन्दर तक हिलाकर रख दिया।

geelani-gurram6 नवम्बर को आयोजित इस बैठक में जब गिलानी के बोलने की बारी आई तो आगे बैठे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के एक गुण्डे ने उठकर गिलानी के मुँह पर थूक दिया और देशद्रोही और ग़द्दार की संज्ञा देकर दोबारा उनपर थूका। इसके बाद वहाँ बैठे छात्रों ने उठकर उसे दूर खदेड़ दिया। लेकिन इतने में ही संघी गुण्डों का एक झुण्ड मौजूदा दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्षा नुपूर शर्मा, जो कि परिषद से है, की अगुवाई में आर्ट्स फ़ैकल्टी, नॉर्थ कैम्पस के कमरा संख्या 22 में घुसा और उस बैठक के आयोजकों पर हमला कर दिया। ग़ौरतलब है कि यह सारा काम विश्वविद्यालय के कुलपति के निजी सुरक्षाकर्मियों और पुलिस की देख-रेख में किया जा रहा था। पुलिस को पहले से ऐसी घटना की जानकारी थी लेकिन उसने मौके पर कोई कदम उठाने की बजाय मूक दर्शक की भूमिका अपनाई और स्थिति ज़्यादा बिगड़ने पर फ़ासीवादी गुण्डों को गिरफ्तार करने की जगह सिर्फ़ बीच-बचाव का काम किया। उल्टे बैठक के आयोजकों को पुलिस की तरफ़ से नसीहत दी गयी कि ऐसे विवादास्पद विषय पर और ऐसे विवादास्पद शख्सियत को बुलाकर बैठक आयोजित नहीं करवाने दी जाएगी। साफ़ है कि प्रशासन और पुलिस की अवस्थिति क्या थी। वह सीधे तौर पर फ़ासीवादी गुण्डों के साथ खड़े थे और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर इस शर्मनाक हमले को वे संरक्षण दे रहे थे। इसके बाद विभिन्न छात्र संगठनों के नेतृत्व में जो आन्दोलन और प्रदर्शन हुए उसके दबाव में आकर नुपूर शर्मा को पुलिस ने दिखावे के लिए गिरफ्तार किया लेकिन बाद में, जैसा कि आप पूर्वानुमान लगा सकते हैं, उसे बरी कर दिया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी उस पर कार्रवाई का महज़ वायदा किया और कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

इस घटना के बाद हुए प्रदर्शनों के बारे में इस अंक की गतिविधि बुलेटिन देखें।

संघ परिवार के गुण्डों की इस जघन्य हरक़त ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि ये साम्प्रदायिक फ़ासीवादी हिटलर, मुसोलिनी, जनरल फ्रांकों और सालाज़ार जैसे तानाशाहों के असली मानस-पुत्र हैं। इनके गुरुओं ने इन्हें यही सिखाया है! इनसे और कोई उम्मीद रखना भी व्यर्थ है। यह जनवाद के उस बुनियादी सिद्धान्‍त से नफ़रत करते हैं कि हर किसी को अपनी बात कहने का हक़ है। आप उससे सहमत हों या असहमत, आपमें उसे बोलने देने का जनवादी विवेक और भावना होनी चाहिए। जब रूसो की किताबों को चर्च जलवा रहा था तो वाल्तेयर ने रूसो से कहा था कि “मैं तुम्हारी बात से असहमत हूँ। लेकिन तुम अपनी बात कह सको, इसके लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ।“ यह है वह जनवादी चेतना जिससे संघी ब्रिगेड के गुण्डे वाकि़फ़ नहीं हैं। इनका मानना है कि जो उनके फ़रमान के मुताबिक चलेगा वही उनके रामराज की सच्ची-अच्छी प्रजा है। बाकी सभी को वे दैहिक, दैविक और भौतिक ताप से सम्पूर्ण मुक्ति देने में यकीन रखते हैं! जहाँ वे इस हद तक नहीं जा सकते वहाँ वे अपनी जनवाद-विरोधी, मानवद्वेषी का परिचय किसी दूसरे इंसान का इस तरह से अपमान करके करते हैं, जिसमें वे किसी के वजूद के प्रति ही अपनी नफ़रत को इस तरीके से अभिव्यक्त करते हैं। यह दरअसल यही दिखलाता है कि वे स्वयं इंसान होने की उन बुनियादी शर्तों का पालन नहीं करते जिनके अनुसार किसी दूसरे इंसान के वजूद की इज़्ज़त की जाती है। किसी की इज़्ज़त करने के लिए उसके विचारों से सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेकिन ये फ़ासीवादी उस नस्ल के लोग हैं जो मानते हैं कि जो उनकी विचारधारा में यक़ीन नहीं करते, वे निकृष्ट और निम्नतर हैं या इंसान ही नहीं हैं।

इस घटना के बाद दिशा छात्र संगठन व अन्य कई छात्र संगठनों ने इसके ख़िलाफ़ एक विशाल जुलूस निकाला और कुलपति कार्यालय तक मार्च किया। इसके बाद कुलपति द्वारा नियुक्त एक समिति ने छात्रों को आश्वासन दिया कि इस पर वे ठोस कार्रवाई करेंगे। लेकिन जैसा कि पहले भी कई बार हो चुका है, संघी गुण्डों की ऐसी जुर्रतों के बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। कुल मिलाकर सिर्फ़ जनता में यह सन्देश जाता है कि विश्वविद्यालय समुदाय पूरा का पूरा साम्प्रदायिक नहीं हो गया है और ऐसी कार्रवाइयों का मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा। लेकिन कोई भी दण्डात्मक कार्रवाई कभी नहीं की जाती है। विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस में स्वयं ही तमाम फ़ासीवादी और दक्षिणपंथी बैठे हुए हैं जिनसे किसी ठोस कार्रवाई की उम्मीद की भी नहीं जा सकती।

लेकिन हर प्रगतिशील और प्रतिक्रियावाद-विरोधी छात्र को यह याद रखना होगा कि ऐसी हर घटना पर इन फ़ासीवादियों को सड़क पर मुँहतोड़ जवाब देना ही होगा और जनता की इनसे असली जंग प्रशासन का पिछलग्गू बनकर नहीं बल्कि अपने दम पर होगी।

 

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2009

 

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।