उद्धरण
“दुनिया प्रगति कर रही है, उसका भविष्य उज्ज्वल है, तथा इतिहास की इस आम धारा को कोई नहीं बदल सकता। हमें दुनिया की प्रगति और उसके उज्ज्वल भविष्य से सम्बन्धित तथ्यों का जनता में प्रचार करते रहना चाहिए, ताकि उसके अन्दर विजय का विश्वास पैदा किया जा सके।”
“जिस धरती पर हर अगले मिनट एक बच्चा भूख या बीमारी से मरता हो, वहाँ पर शासक वर्ग की दृष्टि से चीज़ों को समझने की आदत डाली जाती है। लोगों को इस दशा को एक स्वाभाविक दशा समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। लोग व्यवस्था को देशभक्ति से जोड़ लेते हैं और इस तरह से व्यवस्था का विरोधी एक देशद्रोही अथवा विदेशी एजेण्ट बन जाता है। जंगल के कानूनों को पवित्र रूप दे दिया जाता है ताकि पराजित लोग अपनी हालत को अपनी नियति समझ बैठें।”
नये साल के मौके पर—
सपनों को कसकर पकड़े रखो
क्योंकि अगर सपने मर गये
तो जीवन है टूटे परो वाली एक चिड़िया
जो उड़ नहीं सकती।
सपनों को कसकर पकड़े रखो
क्योंकि सपनों के बग़ैर
जीवन है एक बंजर खेत
बर्फ़ से ढँका हुआ।
“जब तक लोग अपनी स्वतन्त्रता का इस्तेमाल करने की ज़हमत नहीं उठायेंगे, तब तक तानाशाहों का राज चलता रहेगा; क्योंकि तानाशाह सक्रिय और जोशीले होते हैं, और वे नींद में डूबे हुए लोगों को ज़ंजीरों में जकड़ने के लिए ईश्वर, धर्म या किसी भी दूसरी चीज़ का सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे।”
भगतसिंह ने कहा—
“क्रान्ति से हमारा क्या आशय है, यह स्पष्ट है। इस शताब्दी में इसका सिर्फ एक ही अर्थ हो सकता है-जनता के लिए जनता का राजनीतिक शक्ति हासिल करना। वास्तव में यही है ‘क्रान्ति’ बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूँजीवादी सड़ाँध को ही आगे बढ़ाते हैं। किसी भी हद तक लोगों से या उनके उद्देश्यों से जतायी हमदर्दी जनता से वास्तविकता नहीं छिपा सकती, लोग छल को पहचानते हैं। भारत में हम भारतीय श्रमिक के शासन से कम कुछ नहीं चाहते। भारतीय श्रमिकों को-भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगार हटाकर जो कि उसी आर्थिक व्यवस्था के पैरोकार हैं, जिसकी जड़ें शोषण पर आधारित हैं-आगे आना है। हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते। बुराइयाँ, एक स्वार्थी समूह की तरह, एक-दूसरे का स्थान लेने को तैयार हैं।
साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है। कोई और चीज़ इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती। सभी विचारों वाले राष्ट्रवादी एक उद्देश्य पर सहमत हैं कि साम्राज्यवादियों से आज़ादी हासिल हो। पर उन्हें यह समझने की भी ज़रूरत है कि उनके आन्दोलन की चालक शक्ति विद्रोही जनता है और उसकी जुझारू कार्रवाइयों से ही सफलता हासिल होगी।—
—हमें याद रखना चाहिए कि श्रमिक क्रान्ति के अतिरिक्त न किसी और क्रान्ति की इच्छा रखनी चाहिए और न ही वह सफल हो सकती है।”
(क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा)
आओ शुभ सुन्दर
प्रभात लेकर स्वर्गीय छटा,
पर्वत की ऊँचाइयों को छूकर
नीचे मैदानों में प्रवाहित हो
स्निग्ध आलोकधारा,
कर्मव्यस्त लोगों के घर आँगन में
यह अरूणोत्सव
कान्तिमय सुदर्शन नर्तक की तरह
प्रतिदिन आनन्दनृत्य करे!
ऋग्वेद, प्रथम मण्डल, सूक्त-49
“अगर अकेले रहने पर आपको अकेलापन महसूस होता है, तो इसका मतलब है कि आप बुरी संगत में हैं।”
-ज्याँ पॉल सार्त्र
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2012
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