अन्‍धकार है घना, मगर संघर्ष ठना है! 

शशिप्रकाश

अभी उष्ण है हृदय,
उबलता रक्त धमनियों में बहता है
ऊर्जस्वी इच्छाओं से
मन आप्लावित है
ऊष्मित नित-नूतन सपनों से ।

‘कला-कला’ की कोमल-कान्त पदावलियों से
क़लम मुक्त है ।
अभी नहीं बाज़ार-भाव पर नज़र टिकी है ।
कभी और क़त्तई नहीं हम
नए-नए नारों के चलते सिक्कों की
पूजा करते हैं,
न ही कला की शर्तों पर
राजनीति का भाषण देने के आरोपों से डरते हैं ।

अभी हमारे लिए
प्रगति या परिवर्तन या क्राँति शब्द भी
घिसा नहीं है,
दुनियादारी के पाटों में पिसा नहीं है।

नई-नई यात्राओं की
आतुरता अब भी बनी हुई है,
नए प्रयोगों की उत्कंठा अभी शेष है ।
अभी सीखने की आकुलता
गई नहीं है ।
नए रास्तों पर चलने का
पागलपन भी मरा नहीं है ।

सिर्फ़ सुबह का नहीं,
आग उगलती दुपहर का भी
सूर्य अभी अच्छा लगता है ।
अभी अनल जो दहक रहा है
ज्वालागिरी के अतल उदर में,
लहक-लहक उठने को बेकल
हो उठता है बीच-बीच में !
ज्वार अभी उठते रहते हैं
गहन और गम्भीर महासागर के तल से
आसमान छूने को आतुर.
तूफानी झँझावातों की उम्मीदें अब भी क़ायम हैं।

जनजीवन के संघर्षों के विद्यालय में
अभी प्राथमिक कक्षा में ही
बैठ रहे हैं,
मगर स्नातकोत्तर कक्षाओं तक पढ़ने की,
आजीवन पढ़ते जाने की
अटल और उद्दाम कामना
बनी हुई है ।

हाथ मिलाओ साथी, देखो
अभी हथेलियों में गर्मी है ।
पंजों का कस बना हुआ है ।
पीठ अभी सीधी है,
सिर भी तना हुआ है ।
अन्धकार तो घना हुआ है
मगर गोलियथ से डेविड का
द्वंद्व अभी भी ठना हुआ है ।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2010

 

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