गाब्रियल गार्सिया मार्खेस : यथार्थ का मायावी चितेरा
अक्षय काले
मार्खेस नहीं रहे। गाब्रियाल गार्सिया मार्खेस, यथार्थ के कवि, जो इतिहास से जादू करते हुए उपन्यास में जीवन का तानाबाना बुनते हैं, जिसमें लोग संघर्ष करते हैं, प्यार करते हैं, हारते हैं, दबाये जाते हैं और विद्रोह करते हैं। ब्रेष्ट ने कहा था साहित्य को यथार्थ का “हू-ब-हू” चित्रण नहीं बल्कि पक्षधर लेखन करना चाहिए। मार्खेस के उपन्यासों में, विशेष कर “एकान्त के सौ वर्ष”, “ऑटम ऑफ दी पेट्रियार्क” और “लव एण्ड दी अदर डीमन” में उनकी जन पक्षधरता स्पष्ट दिखती है। मार्खेस के जाने के साथ निश्चित तौर पर लातिन अमेरिकी साहित्य का एक गौरवशाली युग समाप्त हो गया। उनकी विरासत का मूल्यांकन अभी लम्बे समय तक चलता रहेगा क्योंकि उनकी रचनाओं में जो वैविध्य और दायरा मौजूद है, उसका आलोचनात्मक विवेचन एक लेख के ज़रिये नहीं किया जा सकता है। लेकिन इस लेख में मार्खेस के जाने के बाद उन्हें याद करते हुए हम उनकी रचना संसार पर एक संक्षिप्त नज़र डालेंगे। आगे हम ‘आह्वान’ में और भी विस्तार से मार्खेस की विरासत का एक आलोचनात्मक विश्लेषण रखेंगे।
कई आलोचकों का कहना है कि मार्खेस के “एकांत के सौ वर्ष” ने विश्व स्तर पर उपन्यास लेखन शैली में नवजीवन का संचार किया जो ठहरावग्रस्त या ह्रास के दौर से गुज़र रही थी। पश्चिमी यथार्थवादी उपन्यास लेखन की विषय वस्तु ज़्यादा से ज़्यादा “स्व:” केन्द्रित होती जा रही थी। उसके बरक्स जादुई यथार्थवाद का क्षितिज बेहद विस्तृत था जिसमें इतिहास और संस्कृति की परिपूर्णता नज़र आयी। जनपक्षधरता को त्यागे बिना कल्पना की असीम उड़ान के लिये जादुई यर्थाथवाद एक सर्वसमावेशी साहित्य की तरह सामने आया।
बीसवीं सदी का पाँचवाँ और छठा दशक ही वह दौर था जब पूँजीवाद अपने तथाकथित स्वर्णिम युग से गुज़र रहा था। इसके अलावा मार्शल योजना का लाभ उठा कर यूरोप और जापान भी द्वितीय विश्व युद्ध के विध्वंसों और नुकसान से उबर पुनर्नवा हो विश्व पूँजीवाद में अपनी स्थिति मजबूत बना रहे थे। यदि पूँजीवाद के इस स्वर्णिम युग में अमेरिकी साहित्य लेखन, विशेषकर उपन्यास लेखन का अध्ययन करें तो पाएँगे कि इस दौर का उपन्यास उपनगरीय नवदौलतिया वर्ग की विकृततम चाहतों की सड़ाँध मारती भड़ास और “स्व” के तुच्छतम उद्गार का चित्रण कर रहा था। ये उपन्यास एक ‘क्वासी-क्लॉस्ट्रोफोबिक’ (अर्ध-संवृति भीत-सम्बन्धी) कला की रचना करता है जिसकी श्रेष्ठतम व्याख्या “अहंकेन्द्रवादी यथार्थ”(सोलेप्सिस्ट रियालिटी) के रूप में की जा सकती है। उदाहरण के रूप में हम अपडाइक के उपन्यास “कपल्स” को देख सकते हैं जिसके केन्द्र में है पत्नियों की फेर-बदल (वाइफ-स्वॉपिंग), आत्मलीनता और एक विकृत ‘स्व’ की अभिव्यक्ति। इस प्रकार ही नॉरमन मिलर के “दी नेकेड एण्ड दी डेड” और नोबाकोव की “ऐडा” आत्मव्यभिचारी (ओननिस्टिक) और आत्मलिप्सा की ओर लुढ़कती, फिसलती नज़र आती है। विश्व का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध देश ऐसे साहित्य का सृजन कर रहा था जिसकी अन्तर्वस्तु दरिद्र और रूप कंगाल था। ब्रिटेन और फ्रांस में भी सैमुएल बेकेट के बाद उपन्यास में उथले, खाली और आत्मलीन किरदारों का अम्बार है जो ‘स्व’ से ऊपर नहीं उठ पाते और जिनके लिए निकृष्टतम व्यक्तिगत चाहतों को पूरा करना जीवन का केंद्र होता है। उपन्यास लेखन की इस संकटग्रस्त स्थिति को लातिन अमेरिकी लेखकों की रचना से राहत की साँस मिली। लातिन अमेरिका के लेखक न केवल उपन्यास के सार और रूप को समृद्ध कर रहे थे बल्कि वे उपन्यास लेखन के आयामों को भी विस्तारित करते नज़र आए। आँखेल आस्तुरियास अपने “एल सेन्योर प्रेसिदेन्ते”(सर प्रेसिडेंट) में, ख़ुआन रफ़ल्फो अपने “पेद्रो पारामो” में, आलेखो कार्पेन्तियेर अपने “एल रेइनो दे एस्ते मुन्दो”(दी किंगडम ऑफ दी वर्ल्ड) में जनता के इतिहास, गुलामी, विद्रोह, प्रेम, संघर्ष का चित्रण कर रहे थे। यह कला के रूप में समृद्ध साहित्यिक लेखन स्व-केन्द्रित नहीं बल्कि इतिहास और समाज से जुड़ा हुआ था। इन लेखकों ने अपनी साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए यथार्थ और फन्तासी के जैविक मिश्रण का प्रयोग किया। इन उपन्यासों में यथार्थ का फोटोग्राफिक चित्रण नहीं बल्कि यथार्थ के उन छुपे हुए विभिन्न जटिल पहलुओं को भी अभिव्यक्त किया गया है जो समाज में घटित हो रही घटनाओं के तहों में दबे होते हैं और नंगी आँखों से नज़र नहीं आते। लातिन अमेरिका का इतिहास यूरोपीय, मूल लातिन अमेरिकी और अफ्रीका की संस्कृतियों, के संघर्ष और संगम का इतिहास रहा है। एज़टेक, माया और इंका सभ्याताओं के काल में ही ठहरे लातिन अमेरिका का सामना पुनर्जागरण और प्रबोधन काल से गुज़रे यूरोप से होता है। एक जिसका विश्व दृष्टिकोण जादुई और दूसरा जो मानवता, तर्कणा और विज्ञान से समृद्ध। अफ्रीका भी कमोबेश जादुई विश्व दृष्टिकोण का ही वाहक था। दो बिल्कुल ही विपरीत विश्व दृष्टिकोण का टकराव और समेकन। इन तीन संस्कृतियों के विलय से एक जटिल सामाजिक संरचना और समृद्ध साहित्य, कला और संगीत का निर्माण हुआ। साम्राज्यावाद के लम्बे दौर ने पहले तो लातिन अमेरिकी इतिहास की नैसर्गिक गति को अवरुद्ध किया और बाद में विशेषकर अमेरिकी साम्रज्यवाद के दौर में तख़्ता पलट, जनविद्रोह और दमन ने यहाँ की ज़मीन को रक्तरंजित कर दिया। इन जनविद्रोहों तथा रक्तपात को आधिकारिक इतिहास लेखन में अदृश्य बना दिया गया या उसे बदनाम किया गया। ऐसे इतिहास से गुज़रे और अभी भी गुज़र रहे समाज को साहित्य में अभिव्यक्त करने के लिए एक नई शौली की आवश्यकता थी जो मखमली कालीनों और रेशमी पर्दों के नीचे और पीछे दबी इतिहास की घटनाओं को सामने लाए, जीवन की विकटता, कुरूपता, बीहड़ता, जीत की उम्मीद लिए संघर्षों में हार, और इससे पैदा होने वाले एकान्त को दर्शाए। जादुई यथार्थवाद ने उपन्यास लेखन में नयी परिस्थितियों से पैदा हुई इस ज़रूरत को पूरा किया।
जादुई यथार्थवाद, यथार्थवादी साहित्य लेखन की ही एक शैली है जिसमें यथार्थ और फन्तासी का संश्लेषण होता है, यथार्थ और फन्तासी के बीच कोई दीवार नहीं होती; दोनों एक-दूसरे में इस प्रकार घुले-मिले होते हैं कि उपन्यास की घटनाओं और चरित्रों के लिए सामान्य जीवन का अंग बन जाते हैं। लेकिन पाठक के लिए यथार्थ में ऐसी किसी घटना की अकल्पना कर पाना असम्भव होता है। इसके उदाहरण देने के लिए हम संक्षेप में “एकान्त के सौ वर्ष” की एक घटना का ज़िक्र करेगें। माकोन्दो (वह शहर जिसे ख़ोसे अर्कादियो बुएनदिया, बुएनदिया परिवार का संस्थापक, ने बसाया था) में बन्जारों की एक टोली आया करती थी जिसका मुखिया मेलकियादेस था। मेलकियादेस ख़ोसे अर्कादियो बुएनदिया का बहुत अच्छा दोस्त था जो उसे विश्व में होने वाले अलग-अलग आविष्कारों से अवगत कराता था। मेलकियादेस ने ही बुएनदिया परिवार के इतिहास की पाण्डुलिपि तैयार की थी। अब इस घटना में माकोन्दो में एक बार फिर बंजारों की टोली आई हुई है और ख़ोसे अर्कादियों बुएनदिया मेलकियादेस से मिलना चाहता है ताकि वह अपने सपने का मतलब समझ सके, ख़ोसे अर्कादियो बुएनदिया बेतहाशा बंजारों के खेमों में मेलकियादेस को ढूँढता है। इस बीच बन्जारे जो अलग-अलग करतब दिखा रहे होते हैं उनमें से एक अपने आस-पास जुटी भीड़ से कहता है कि उसके पास एक घोल है जिसे पीने के बाद वह पिघल कर जमीन पर बह जाएगा। यह बंजारा घोल पीता है और सच में वह पिघल कर बह जाता है लेकिन माकोन्दो के लोगों को इसमें ज्यादा मज़ा नहीं आता और वे वहाँ से इसलिए चले जाते हैं कि उन्होंने जितने रोमांच की कल्पना की थी उतना रोमांच उन्हें नहीं मिला। यह घटना ख़ोसे अर्कादियों बुएनदिया के सामने घटित होती है और वह इस घटना पर ध्यान दिये बिना अपनी खोज बेतहाशा जारी रखता है। इसी प्रकार ही उपन्यास की एक और पात्र रेमेदियोस दी ब्युटी सशरीर उड़ कर स्वर्ग चली जाती है, मउरिसियो बेबिलोनिया जहाँ भी जाता है उसके चारो ओर पीली तितलियाँ उड़ती रहती हैं। और ये सारी चीज़ें माकोन्दों के लोगों के लिए सामान्य हैं इनमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। इसके अलावा ऐसी चीज़ें जो पाठक के लिए सामान्य होती है वह उपन्यास में असामान्य होती हैं। उदाहरण के लिए चुम्बक, यह एक बेहद सामान्य वस्तु है लेकिन जब मेलकियादेस माकोन्दों में चुम्बक लेकर आता है तो यह वहाँ के लोगों के लिए बेहद आश्चर्य की बात होती है और उन्हें इससे भय लगता है। इस प्रकार जादुई यथार्थवाद में यथार्थ और फन्तासी बेहद सफाई से एक सार हो जाते हैं।
मार्खेस की रचना “एकान्त के सौ वर्ष” जादुई यर्थावाद की प्रातिनिधिक कृति मानी जाती है। यह उपन्यास बुएनदिया परिवार के सात पीढ़ियों का इतिहास है जो कई मायनों में लातिन अमेरिका के इतिहास को प्रतिबिम्बित करता है। बुएनदिया परिवार का अस्तित्व सात पीढ़ियों के कालक्रम में समाप्त हो जाता है। ख़ोसे अर्कादियो बुएनदिया का सपना यह था कि माकोन्दों में बड़ी-बड़ी शीशे की इमारतें होंगी और जिसमें सभी लोग होगें बस बुएनदिया नहीं। यह सपना जो उसे समझ नहीं आता है और वह कभी समझ भी नहीं पाता। वास्तव में बुएनदिया परिवार बुर्जुआ वर्ग है और किसी भी वर्गीकृत, श्रेणीबद्ध बुर्जुआ समाज को अन्ततः समाप्त होना है और इसके बाद सभी लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर रहेगें जहाँ मानव और प्रकृति के बीच दोस्ताना अन्तरविरोध होंगे। इस सपने को मेलकियादेस समझता है लेकिन उसे पता है कि बुएनदिया कभी इसे समझ नहीं पाएगा क्योंकि बुर्जुआ वर्ग कभी भी अपने विनाश को स्वयं नहीं समझ सकता। मेलकियादेस की पाण्डुलिपी के अनुसार एक प्रचण्ड चक्रवात में माकोन्दों का अस्तित्व पृथ्वी पर से समाप्त हो जाएगा। समाजवादी समाज इतिहास के एक बेहद अस्थिर, उथल-पुथल भरे दौर से गुज़र कर ही अस्तित्व में आएगा। माकोन्दों का प्रचण्ड विध्वंस मार्क्स के शब्दों में सभी ‘प्रागैतिहासिक काल’(प्रीहिस्ट्री) के अन्त को दर्शाता है और इन्सानियत को यह आशा दिलाता है कि एकान्त के पहलू पर एकता के पहलू की जीत होगी और लोगों के बीच मुक्त सम्बन्धों का निर्माण होगा। मार्खेस के इस पूरे पाठ की व्याख्या ऐतिहासिक भौतिकवादी रूप से भी की जा सकती है।
‘एकान्त के सौ वर्ष’ में एकान्त और एकता का द्वन्द्व बना रहता है। बुएनदिया परिवार के पुरुष जन-अभियानों और जनान्दोलनों को नेतृत्व देने का प्रयास करते हैं लेकिन हर बार वे असफल रहते हैं। यह असफलता उन्हें एकान्त में धकेल देती है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे इस एकान्त में और गहरे डूबते चले जाते हैं। प्रत्येक पीढ़ी कुंडलाकार गति में अपने विनाश की ओर आगे बढ़ती है। हर पीढ़ी अपने पहले की पीढ़ियों की ग़लतियाँ दुहराती नज़र आती है लेकिन वास्तव में परिस्थितियाँ ज्यादा जटिल तथा सामाजिक-राजनीतिक तानाबाना ज्यादा क्लिष्ट, संघर्ष का स्तर ज्यादा उन्नत होता जाता है और उसके अनुसार तैयारी पहले की ही तरह कमज़ोर रह जाती है। उदारवादी और दक्षिणपंथी धड़े के बीच हुए गृह युद्ध में यह बुर्जुआ परिवार की वंशावली हिस्सा लेती है। कर्नल अउरेल्यानो बुएनदिया उदारवादी धड़े को नेतृत्व देता है और हार के बाद अपानजनक समझौते पर हस्ताक्षर करता है। उसकी हार और अपमानजनक समझौता उसे अकेला कर देते हैं। इसके बाद साम्राज्यवादी शक्ति के विरुद्ध संघर्ष में राष्ट्रीय बुर्जुआ के तौर पर भी यह परिवार नेतृत्व देने में असफल रहता है। अउरेल्यानो सेगुन्दो और पेत्र कोतेस का सम्बन्ध माकोन्दो के लिए भाग्यशाली होता है। ये उत्पादन को तीव्र बना देते हैं। अउरेल्यानो सेगुन्दो और पेत्र कोर्तस का सम्बन्ध राष्ट्रीय बुर्जुआज़ी के विकास का रूपक है। पूँजी का विकास अभी आदिम संचय के दौर में ही था। लेकिन साम्राज्यवादी ‘बनाना कम्पनी’ इस विकास का गर्भपात कर देती है। साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष में बुएनदिया परिवार एक बार फिर नेतृत्व देने में असफल रहता है। इस प्रकार ‘एकान्त और एकता’ (सॉलिट्युड एण्ड सॉलिडैरिटी) का द्वन्द्व पूरे उपन्यास के कालक्रम में चलता रहता है। यह एकान्त समाज की विकृतियों और निराशा का किसी व्यक्ति विशेष पर पड़ने वाले प्रभाव से पैदा नहीं हुआ है बल्कि यह एकान्त लातिन अमेरिका के कठिन इतिहास से पैदा हुआ है। लातिन अमेरिका के इस एकान्त की अभिव्यक्ति ओक्तावियो पास अपने “लैबरिन्थ ऑफ सॉलिट्युड” के लेखों में भी करते है।
मार्खेस ‘एकान्त और एकता’ के द्वन्द्व के माध्यम से मानवीय भावनाओं की कोमलतम अभिव्यक्तियों को घटनाओं के उतने ही लयबद्ध क्रम से दर्शाते हैं। पूरे वृतान्त में भावनाओं और घटनाओं का इतना द्वन्द्वात्मक तालमेल है कि न ही भावनाएँ और न ही घटनाएँ उबाऊ या खिंचती नज़र आती है। सार्त्र ने कहा था कला जितनी ही परिष्कृत होती जाती है वह सर्वहारा से उतनी ही दूर होती जाती है। हालाँकि सार्त्र ने यह बात सर्रियलिस्ट और दादाइस्ट कला के सन्दर्भ में कहा था। लेकिन मार्खेस का लेखन परिष्कृत होने के साथ-साथ जनपक्षधर भी है। उनकी लेखन शौली में स्पेनी बरोक, विलियम फॉकनर, बोख़ेर्स और स्पेनी इतिहास लेखन का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। जहाँ अर्न्तवस्तु के स्तर पर अतिशयोक्ति है वही रूप की सटीकता है। बेहद सजगता के साथ प्रत्येक उपन्यास और कहानी की संरचना गढ़ी गई और उसे काव्यात्मक गद्य से अलंकृत किया गया है। मार्खेस के अद्भुत कथावाचन की सार वस्तु है उनके लेखन का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तत्वों से गहरा जुड़ाव। मार्खेस के लेखन में इतिहास और संस्कृति की चेतना झलकती है जो इनके विषय वस्तु का दायरा व्यापक बनाता है और लेखन में नए-नए आयामों को समाहित करता है।
एशिया-अफ्रीका-लातिन अमेरिका के देशों में विशेषकर जहाँ साम्राज्यवादी शासन का लम्बा काल रहा है और बाद में साम्राज्यवाद का प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव बना हुआ है ऐसे देशों में मानव अस्तित्व को ज़ार-ज़ार बनाने वाले जटिल अन्तरविरोधों को उजागर करने के लिए क्लासिकी यर्थाथवादी लेखन पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए यथार्थ और कल्पना के बीच की दीवार गिरानी होगी। परिस्थितियों के अनुसार रूप में भी बदलाव आवश्यक बन जाता है नहीं तो चीज़ों को सही पहचान नहीं मिलती। पूँजीपति वर्ग और साम्राज्यवादी देश साझेदारी में आम मेहनतकश जनता का शोषण और उत्पीड़न करते हैं। मेहनतकश आबादी नारकीय परिस्थितियों में जीती है और विद्रोह करने पर बर्बर दमन का शिकार होती है और फिर इस दमन को बेहद सफाई से इतिहास के दर्ज पन्नों से ग़ायब कर दिया जाता है, उस सच्चाई को अन्धकार से बाहर खींच निकालने के लिए आत्मा तक को झकझोर कर रख देने वाली लेखन शैली की नितान्त आवश्यकता है। इसके अलावा जहाँ लोगों को शासक वर्ग के नज़रिये से सोचने की आदत डलवाई जाती है, कथा-साहित्य “इतिहास” का प्रति-पाठ (काउन्टर नरेटिव) बन जाते हैं। 21 जुलाई 1928 में कोलम्बिया के शहर माग्दालेना में युनाइटेड फ्रूट कम्पनी के मजदूरों ने काम की अमानवीय परिस्थितियों, काम की जगह पर किसी भी तरह की सुविधा की अनुपस्थिति, भयंकर शोषण और कम मेहनताने को लेकर हड़ताल की थी। युनाइटेड फ्रूट कम्पनी अमेरिका की एक कम्पनी थी और इस हड़ताल का कोलंबिया की सेना ने दमन किया। हड़ताल के दिन कई लोग मारे गए। आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार मरने वालों की संख्या 47 से 100 के लगभग थी। लेकिन इस नरसंहार की घटना से शहर के लोग नावाकिफ़ थे और उन्हें पूछे जाने पर उनका जवाब होता था 21 जुलाई को कुछ भी नहीं हुआ था और युनाइटेड फ्रूट कम्पनी के काल में शहर उन्नति कर रहा था। शासक वर्ग बेहद कुशलता से चुप्पी का षड्यंत्र रचता है और घटनाओं के अस्तित्व को ही नकार देता है। मार्खेस ने “एकांत के सौ वर्ष” में इतिहास की इस भुला दी गई घटना को आधार बना कर ‘बनाना कम्पनी’ की हड़ताल का प्रसंग लिखा। ‘बनाना कम्पनी’ में हड़ताल होती है, ख़ोसे अरकादियो सेगुन्दो मज़दूर यूनियन का नेता होता है। हड़ताल के दिन नरसंहार होता है और कम्पनी के सारे मज़दूर जिनकी संख्या 3000 थी, मशीनगन से भून दिये जाते हैं। बस ख़ोसे अरकादियो सेगुन्दो इस नरसंहार का एकमात्र गवाह बचता है। कोलंबिया के लोगों के लिए गुमनाम इतिहास का यह तथ्य “एकान्त के सौ वर्ष” से रोशनी में आया। इस प्रकार ही “ऑटम ऑफ दि पेट्रियार्क” में भी इतिहास की कई ऐसी घटनाएँ हैं जिसपर शासक वर्ग ने चुप्पी साध ली या उसे दबा दिया।
पूँजीवादी व्यवस्था नित नये संचार के साधनों के माध्यम से लोगों की चेतना को कुन्द और भावनाओं को अश्मीभूत करता जाता है। लोगों में भयंकर अलगाव और विरक्ति व्याप्त होती है। हर दिन के साथ यह व्यवस्था गहरे पतन में गिरती जा रही है, आज का जो दुःस्वप्न है कल वही यथार्थ में तब्दील हो जाता है। ‘ऑटम ऑफ दी पेट्रियार्क’ में एक घटना है जिसमें बच्चों को लॉटरी का टिकट निकालने के लिए बुलाया जाता है। यह रॉयल लॉटरी है और इसे निष्कपट दिखाने के लिए कि लॉटरी बच्चों से बुलवाई जाती है। लेकिन लॉटरी निष्कपट तो हो नहीं सकती और बच्चे ये जानते थे। इसलिए राज्य 2000 बच्चों को ग़ायब कर देता है। माँ-बाप के प्रतिरोध करने पर उन्हें भी जेल में बन्द कर दिया जाता है। इन बच्चों को छुपाए रखने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने में घुमाया जाता है। लेकिन इसमें तानाशाह को भी परेशानी उठानी पड़ती है और अंत में वह निर्णय लेता है कि या तो मैं या बच्चे! निश्चित ही उसे ही होना था, और इन 2000 गाते हुए बच्चों को डायनामाइट से उड़ा दिया गया। 1982 में अल सल्वादोर में सेना ने छोटे-छोटे बच्चों को हवा में उड़ा कर अपने बन्दूक की संगीन से भेदने का बर्बर खेल खेला था। इसी प्रकार ‘बनाना कम्पनी’ ने माकोन्दों में 11 साल बारिश करवाई जिससे सारा शहर तबाह और बर्बाद हो गया। अमेरिका ने वियनाम युद्ध के दौरान वियनाम को तबाह और बर्बाद करने के लिए नकली बादलों से बारिश करवाई थी। इस ठण्डे और कुन्द चेतना वाले समाज में यह बताने के लिए कि यदि एक भी मौत होती है तो यह विपदा है, यथार्थ को अतिशयोक्ति का सहारा लेना होगा। तभी सौ मौत की कल्पना से हिला हुआ व्यक्ति एक के बारे में भी सोचेगा।
इस प्रकार वह यथार्थवादी लेखन समय की माँग बन जाता है जो लोगों को अन्दर से हिला दे, झकझोर कर रख दे, जीवन की विकट परिस्थितियों के बारे में सोचने को विवश कर दे। लेकिन साथ ही एक ऐसा लेखन जो इतिहास चेतस हो और जिसका सामाजिक जुड़ाव हो। काफ़का और बेकेट की रचनाएँ भी समाज के कुरूप सच्चाइयों को अभिव्यक्त करती हैं लेकिन उनके लेखन में चीज़ें ‘स्व’ पर आ कर रुक जाती हैं और व्यक्ति एक अन्धकार, अवसाद, निराशा भरे दमघोटू सुरंग में घुसता जाता है जो धीरे-धीरे और संकरी होती जाती है। चीज़ों की गति ‘स्व’ से समाज की ओर न हो कर समाज से ‘स्व’ की ओर रहती है जिससे घोर निराशा पैदा होती है। मार्खेस के लेखन में अतिशयोक्ति होती है और परिस्थितियों से पैदा हुआ एकान्त समाजोन्मुख होता है जो सोचने के लिए मजबूर करता है। यह अतिशयोक्ति व्यक्ति में आत्मभीति, अवसाद नहीं पैदा करता क्योकि यह अतिशयोक्ति लोक कल्पनाओं से गुंथी होती है जो इतिहास की परतों में यथार्थ को जादुई चमक के साथ प्रस्तुत करती है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2014
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