जयपुर में छात्राओं का संघर्ष: एक रिपोर्ट

शिवार्थ

पिछले 8-10 वर्षों से लगातार जारी व्यवस्थागत संकटों ने जहाँ एक तरफ मज़दूरों से लेकर छात्रों और नागरिकों को समय-समय पर सड़कों का रुख़ अख्तियार करने के लिए मजबूर किया है, वहीं सरकार ने भी इस तरह उठने वाली हर आवाज़ का दमन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसी की एक बानगी अभी हाल ही में जयपुर में नेशनल टीचर्स ट्रेनिंग (एन.टी.टी.) की छात्राओं के साथ हुए सुलूक में देखने को मिली। 14 मई 2010 को करीब 100 से ज़्यादा छात्राएँ शिक्षामंत्री भँवरलाल मेघवाल के आवासीय परिसर के बाहर राजस्थान स्टेट प्री-प्राइमेरी स्ट्रगल कमेटी (आर.एस.पी.पी.एस.सी.) के बैनर तले इकठ्ठा होकर धरना प्रदर्शन कर रही थी। जब काफी देर तक शिक्षा विभाग का कोई भी प्रतिनिधि इनसे मिलने के लिए बाहर नहीं आया तो छात्राओें ने उग्र नारेबाज़ी शुरू कर दी। इस पर शिक्षामंत्री महोदय बौखलाए हुए बाहर निकलकर आए और इन छात्राओं से किसी प्रकार की बातचीत करने से साफ इंकार कर दिया। तिस  पर उनका यह भी कहना था कि आखि़र इन छात्राओं को एन.टी.टी. को डिग्री लेने की ज़रूरत ही क्या थी? (जैसे मंत्री महोदय बिना डिग्री के तो नौकरी पक्की दे देते!) शिक्षा मन्त्री के इस रवैये से बौखलाए हुए छात्राओं ने पास ही कि सिविल लाइन्स रोड को जाम कर आवागमन बाधित कर दिया। बस इतना ही काफी था पुलिस प्रशासन के लिए इन छात्राओं पर निर्मम तरीके से लाठी चार्ज करने के लिए। 30 मिनट तक महिला एवं पुरुष पुलिसवालों ने मिलकर छात्राओं को जमकर पीटा जिसमें करीब 30 छात्राएँ बुरी तरह घायल हो गई। बाकी बची छात्राओं को धारा 144 का उल्लंघन करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पहले कि हम पूरे मसले की तह तक जाएँ और यह मूल्यांकन करें कि छात्रओं की माँगे कितनी जायज़ हैं, यह घटनाक्रम पर्याप्त है उन तमाम दावों की धज्जियाँ उड़ाने के लिए जो अशोक गहलौत सरकार के जनपक्षधर रवैये के बारे में किये जाते हैं। ज्ञात होगा कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे अपने निरंकुश रवैये के लिए कुख्यात थी। इसके बरक्स अशोक गहलौत को चुनावों के समय से ही एक उदार चरित्र के तौर पर पेश किया जा रहा था। लेकिन समय-समय पर मन्त्री महोदय इरादतन या गैर-इरादतन अपने इस उदार चोले को उतार फेंकने के लिए मजबूर होते रहे हैं। राजस्थान में सन् 1984 में राज्य सरकार द्वारा दो वर्षीय एन.टी.टी. पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई थी। एन.टी.टी. डिग्री धारक ‘राजस्थान लोक सेवा आयोग’ में सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने के लिए मान्य थे।

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ये प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने के लिए मान्यता प्राप्त थे, और इनकी डिग्री को बेसिक स्कूल टीचर्स ट्र्रेनिंग (बी.एस.टी.सी.) के समानान्तर माना जाता था। सन् 2005 में यह मान्यता रद्द कर दी गई। पहली बार 2007 में डिग्री को लेकर विवाद शुरू हुआ जब राज्य में 14 अध्यापकों को, जिन्हें इस डिग्री के अन्तर्गत नौकरी मिली थी, उन्हें बख़ार्स्त कर दिया गया। हालाँकि कुछ ही महीनों में, जारी चौतरफा विरोध के कारण इन्हें दोबारा नौकरी पर रख लिया गया, लेकिन इन धारकों की नयी नियुक्तियाँ बन्द कर दी गई। तब से करीब 15,000-20,000 छात्राओं का भविष्य अधर में लटका हुआ है जो राज्य में स्थापित करीब 28 एन.टी.टी. कॉलेजों में डिग्री प्राप्त कर रहे थे। उसी दौरान छात्राओं ने कुछ शिक्षाविदों के साथ मिलकर आर.एस.पी.पी.एस. कमेटी का गठन करने का निर्णय लिया, और इसी के बैनर तले संघर्ष करते हुए राज्य सरकार के सामने माँग रखी कि या तो राज्य सरकार केन्द्र सरकार को बाध्य करें कि वे प्राथमिक विद्यालयों में एन.टी.टी. डिग्रीधारकों के आवेदन के रास्ते दोबारा खोल दे, या फिर ऐसी कोई व्यवस्था करे जिससे एन.टी.टी. की डिग्री बी.एस.टी.सी. के समतुल्य हो जाए। 2007 से लगातार छात्र समय-समय पर इकट्ठा होकर मुख्यमन्त्री से लेकर राज्य के शिक्षा विभाग के विभिन्न अधिकारियों के समक्ष धरना प्रदर्शन, ज्ञापन इत्यादि के माध्यम से शान्तिपूर्ण तरीके से अपनी माँगे लेकर जा रहे हैं, लेकिन सरकार की कान पर जूँ रेंगना तो दूर उन्हें कई बार पुलिसिया दमन का भी शिकार होना पड़ा है। अगर सिर्फ 2010 की ही बात की जाए तो जनवरी माह में जब एक विशेष कार्यक्रम के दौरान छात्राओं ने सीधे अशोक गहलौत से मिलने का प्रयास किया था तो, छात्राओं से मिलना तो दूर उन्हें पुलिस के दम पर कार्यक्रम से ही बाहर निकलवा दिया गया था। अभी 14 मई के लाठी चार्ज के पहले लगातार दो दिनों तक जब छात्रों ने जयपुर के कांग्रेस मुख्यालय पर प्रदर्शन किया था, तो भी पुलिसिया दमन का शिकार होना पड़ा था।

इस पूरे विवरण की रोशनी में यह पूछना लाजिमी हो जाता है कि आज जब देश भर में विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और यहाँ तक कि सरकारी रिपोर्टो में भी इस बात को स्वीकार किया गया है कि प्राथमिक विद्यालयों से लेकर महाविद्यालयों तक हर स्तर पर शिक्षकों की बेहद कमी है, तो सरकार क्यों इन योग्यता प्राप्त लोगों को अमान्य करार दे रही है। न सिर्फ इतना बल्कि क्यों सरकार इन छात्राओं को एन.टी.टी. कॉलेज में आवेदन करने के पहले से यह बताया गया कि डिग्री प्राप्त करने के बाद तुम्हें सही रोजगार प्राप्त करने अवसर नहीं दिया जाएगा? न सिर्फ इतना, बल्कि ये भी कि क्यों आए-दिन जो सरकार मन्दी से लेकर हालिया बजट में इस देश के पूँजीपतियों को अरबों-खरबों के बेल-आउट पैकज और रियायत देती है, वह आम घरों से आने वाले नौजवानेां को रोज़गार नहीं प्रदान कर सकती? पक्षधरता स्पष्ट है। पूँजीपतियों से यारी है, जनता से ग़द्दारी है!

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2010

 

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