विकास के रथ के नीचे भूख से दम तोड़ते बच्चे

अजीत

मध्यप्रदेश के मुखमन्त्री शिवराज सिंह चौहान सवेरे नहा–धोकर माथे पर तिलक लगाकर, चमकता सूट डालकर जब साइकिल पर सवार होकर विधानसभा की ओर कूच करते है तो मीडिया की आँखे फटी की फटी रह जाती है कि ये क्या हो गया है ? दुनिया के सबसे बड़े ‘लोकतन्त्र’ के एक प्रदेश का मुख्यमन्त्री साइकिल पर ? गजब की बात भाई! मोटरसाइकिल से, कार से चलने वाले मध्यवर्ग का एक हिस्सा हर्षातिरेक से मुख्यमन्त्री जी के जीवन की सादगी पर लोट–पोट हो जा रहा है। पत्र–पत्रिकाओं के कवर पेज पर और अखबारों आदि में मध्यप्रदेश की सरकार द्वारा छपवाये जा रहे विज्ञापनों से पता चलता है कि मुख्यमन्त्री शिवराज चौहान के नेतृत्व में स्व. प. दीनदयाल अत्ंयोदय उपचार योजना, दीनदयाल रोज़गार योजना, दीनदयाल चलित उपचार योजना, दीनदयाल अंत्योदय मिशन जैसी परियोजनाएँ चल रही है, जिनके केन्द्र में ‘सबसे कमज़ोर’ आदमी है। इन विज्ञापनों में विशेष रूप से यह बात दर्ज़ रहती है कि मध्यप्रदेश की सरकार प. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवतावाद के सिद्धान्त पर चल रही है। इस तरह विज्ञापनों द्वारा बजाये जा रहे ढोल–नगाड़ों के साथ सरकार के मजूबत हाथ ‘कमज़ोर आदमी’ तक पहुँच चुके हैं। लेकिन ज्योंही कुछ सरकारी आँकड़ों की ही थाप पड़ी इस ढोल की पोल खुलने में देर नहीं लगी। तो आइये आँकड़ो और तथ्यों की रोशनी में हम इस ‘एकात्म मानवतावाद’ के फोकस बिन्दु की और उसके नाभिक की सच्चाई को पहचानें।

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सरकारी आँकड़ों के मुताबिक अकेले मध्यप्रदेश में ही पिछले चार सालों में (2005–06 से 2008–09) कुपोषण और उससे पैदा होने वाली बीमारियों के कारण 1 लाख 22 हजार मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है और इस मामले में मध्यप्रदेश सारे राज्यों को पछाड़कर नम्बर एक की कुर्सी पर बैठा है।

इन चार सालों के दौरान हुई इन मौतों के वार्षिक कालानुक्रम में आँकड़े तालिका–1 और कुछ जिलेवार आँकड़े तालिका –2 में दिये गये हैं।

तालिका–1

                वर्ष           मौतों की संख्या

2005–06                               30563

2006–07                               32188

2007–08                               30391

2008–09                               29274

तालिका–2

                जिला          मौतों की संख्या

सतना         7257

छतरपुर        6542

बालाघाट       5666

शिवपुरी        4866

शहडोल        4313

सीधी          4137

गुना           4116

रीवा           4049

बैतूल          3823

ये मौतें मप्र के 50 मे से केवल 48 जिलों में ही दर्ज की गई हैं। सिंगरौली और आदिवासी बहुल अलीराजपुर जिलों के आँकड़े तो इसमें शामिल ही नहीं है केवल अक्टूबर–दिसम्बर 09 के दौरान ही झबुआं गाँव में 43 और मदरानी गाँव में 30 मौतें हो चुकी है। सादगीप्रिय मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के मन्त्रिमण्डल के लोकस्वास्थ्य मन्त्री अनूप मिश्रा ने विधानसभा में यह माना कि राज्य के 60 फीसदी बच्चे कुपोषण से ग्रस्त है। वहीं जब देशस्तर पर सादगी का झण्डा उठानेवाली कांग्रेस पार्टी के नेता महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा ने स्वास्थ्य मन्त्री जी से पूछा कि स्वास्थ्य मापदण्डों के हिसाब से कितने बच्चे गम्भीर कुपोषण का शिकार हैं तो मन्त्री महोदय सादगीपूर्ण तरीके से इस सवाल को टाल गए। लेकिन तथ्य और आँकड़े बताते हैं कि 12 लाख  बच्चे गम्भीर रूप से कुपोषण का शिकार हैं जिनके लिए मात्र 200 पोषण–पुनर्वास केन्द्र अपनी सरकारी गति के अनुरूप गतिमान हैं। आँकड़ों के अनुसार 2008–09 में मध्यप्रदेश में जन्म के समय शिशु मृत्युदर प्रति हजार पर 70 थी। ये कुछ आँकड़े हैं जो अपने आप में सबकुछ चीख–चीखकर बता रहे हैं। ये आँकड़े साबित करते हैं कि आम आदमी, कमज़ोर–गरीब आदमी ‘एकात्म मानवतावाद’ के केन्द्र की तो बात क्या करें, उसके पूरे वृत्त से ही ग़ायब है।

लेकिन भूख का ये ताण्डव, जो लाखों मासूम बच्चों की मौत पर खेला जा रहा है जिसको देखकर शैतान की रूह भी काँप उठे, महज मध्यप्रदेश की कहानी नहीं है, वरन पूरे देश का हाल यही है जिसका बुनियादी कारण ये पूरा आर्थिक –सामाजिक ढाँचा है। इस बात को समझने से पहले देश में भूख की समस्या पर एक निगाह डाल लें।

विश्व खाद्य कार्यक्रम के आकलन के मुताबिक दुनियाभर में भूख की शिकार 1 अरब से अधिक आबादी में से लगभग एक तिहाई (35 करोड़) आबादी भारत की है। भारत की भूख और कुपोषण सम्बन्धी समस्याओें पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि-

  • भारत मे पैदा होने वाले 30℅ बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है।
  • हर साल 20 लाख बच्चे कुपोषण से मर जाते हैं।
  • भारत में कुल बच्चों और महिलाओं की लगभग आधी संख्या गम्भीर और चिरकालिक कुपोषण और अल्प पोषण का शिकार है।
  • लगभग 47℅ बच्चों का वज़न कम है और 46℅ का विकास बाधित हो गया है। भारत में यह संख्या सबसहारा अफ्रीका के निर्धनतम देशों से भी ज़्यादा है।
  • 30℅ निर्धनतम आबादी 1700 किलो कैलोरी से कम  भोजन ग्रहण करती है, जबकि अन्तरराष्ट्रीय न्यूनतम मानक 2100 किलो कैलोरी है। यह तब, जबकि वे अपनी कमाई का 70℅ भोजन पर ही खर्च करते हैं।

इस प्रकार तमाम आँकड़ों के माध्यम से ये बात साफ होती है कि चाहे मध्य प्रदेश हो या देश–स्तर का मामला,  फासीवादी हिन्दुत्व विचाराधारा की वाहक भाजपा की मध्यप्रदेश सरकार हो या तथाकथित धर्मनिरपेक्ष, मध्यमार्गी कांग्रेस की केन्द्र सरकार हो, भूख का यह ताण्डव हर जगह कायम है लेकिन जाँच–पड़ताल करें तो मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार का ‘एकात्म मानवतावाद’ और कांग्रेस का ‘समावेशी विकास’ गलबहियाँ डाले हुए दिखाई देते हैं।

तो फिर म.प्र. की सरकार या केन्द्र की सरकार के बड़े–बड़े दावों का क्या किया जाए ? दरअसल उनके इन दावों की सच्चाई एक हद तक सही है। विकास, तरक्की समृद्धि की बातें सही है लेकिन यह पूरी विकास की डबल रोटी केवल 15–20 लोगों के लिए है। देश का पूरा पूँजीपति वर्ग, नेता और मध्यवर्ग का उ़पर का एक हिस्सा आज विकास के इस तालाब में गोते लगा रहा है, जिसको इस देश की मेहनतकश जनता के, आम–गरीब जनता के आँसुओं से उनके मासूम बच्चों के खून से भरा गया है। और इसमें ‘एकात्म मानवतावाद’ और ‘समावेशी विकास’ नामक दोनों तैराक गोते लगा रहे हैं।

आर्थिक उदारीकरण–निजीकरण की प्रक्रिया को कांग्रेस सरकार ने 1990 के बाद जोर–शोर से लागू किया और जनता के दम पर खड़े पब्लिक सेक्टर को पूँजीपतियों के हाथों बेचना शुरू किया। ज्योंही भाजपा की सरकार केन्द्र में आई उसने भी इन्ही उदारीकरण–निजीकरण की नीतियों को जबर्दस्त त्वरण प्रदान किया और यहाँ तक कि अरुण शौरी के नेतृत्व में विनिवेश मन्त्रालय का गठन कर दिया और सरकार सभी पब्लिक सेक्टर से अपने हाथ खीचने लगी और आज भी यह प्रक्रिया जारी है। एक–एक करके सारी चीजों को औने–पौने दामों पर पूँजीपतियों को बेचा जा रहा है। आज सरकार लगातार खाद्य वितरण प्रणाली से अपने हाथ पीछे खींच रही है। अकेले दिल्ली में ही पिछले 6 वर्षों के दौरान लगभग 664 राशन की दुकानें बन्द कर दी गयी हैं। भूख से होती मौतों का मतलब यह नहीं कि अनाज की कमी है। उत्पादन के आँकड़े बताते हैं कि अनाज का उत्पादन ज़रूरत से भी ज़्यादा है। लेकिन अनाज को गोदामों में सड़ा दिया जाता है, समुद्र में फेंक दिया जाता है या स्वीडन, डेनमार्क, नार्वे जैसे देशों में वहाँ के मवेशियों के खाने के लिए भिजवा दिया जाता है। ताकि लाल–महल, शक्तिभोग, आशीर्वाद आदि कारपोरेट घरानों का मुनाफा कम ना हो जाए और ऐसा उनके तलवे चाटने वाली ये सरकार करती हैं। भले ही लाखों मासूम इस देश के मेहनतकशों और गरीबों के बच्चे भूख से दम तोड़ दें। ये मौते ही 8 विकास दर का आधार हैं। देश के मेहनतकश मज़दूरों के शोषण की बदौलत ही पूँजीपतियों के ऐयाशी के टापू खड़े किये जा रहे हैं। इन्ही की साँसों को खींचकर ‘एकात्म मानवतावाद’ और ‘समावेशी विकास’ के गुब्बारों में हवा भरी जा रही है। 20 रुपये प्रतिदिन की आय पर जीने वाली 84 करोड़ आबादी के बीच मुख्यमन्त्री यदि साइकिल पर सवारी करता है तो ये मात्र सादगी का ढोंग है ।

‘आतंकवाद’ को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बताने वाले प्रधानमन्त्री से क्या यह बात छुपी होगी कि आतंकवाद से बड़ा खतरा भूख बना हुआ है ? लेकिन सच बात तो यह है कि इन सरकारों का एकात्म मानवतावाद और आम आदमी के शोशे के केन्द्र में इस देश के चन्द पूँजीपति और धनवानों की जमात है और ये सदा उन्हीं के तलवे चाटते रहते हैं। लेकिन जनता अपने हक के लिए ज़रूर आवाज उठायेगी और उनको हासिल करेगी; इस खूनी पूँजीवादी व्यवस्था को खत्म करके और उसके इन पैरोकारों का जड़मूल नाश करेगी; क्योंकि उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उसको लूटने वाले खसोटने वाले साइकिल से चलते हैं या छकड़ा गाड़ी से।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2010

 

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