लखनऊ विश्वविद्यालय में बेतहाशा फ़ीस वृद्धि – एक रिपोर्ट
‘पंसारी की दुकान’ से ‘शॉपिंग मॉल’ बनने की ओर अग्रसर यह विश्वविद्यालय

शिवार्थ

आह्वान के पिछले अंकों में हम लखनऊ विश्वविद्यालय में व्याप्त अकादमिक एवं सांस्कृतिक माहौल के दिवालियेपन के बारे में लिखते रहे हैं। पिछले दिनों इसमें एक नया अध्याय जोड़ दिया गया। अगर थोड़ी छूट लेकर इसकी पिछली हालत और नयी हालत (जिसमें बारे में हम आगे चर्चा करेंगे) की तुलना करें तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पहले इसकी तस्वीर एक कस्बाई ‘पंसारी की दुकान’ की तरह थी जहाँ प्रशासनरूपी दुकानदार ‘डण्डी मारने’ से लेकर घपलेबाज़ी करने तक हर तिकड़म का इस्तेमाल करके छात्रों को लूटता था, वहीं अब थोडा डेण्ट-पेण्ट करके यह एक कस्बाई ‘शॉपिंग मॉल’ में तब्दील हो गया है। इस मॉल में ‘डण्डी मारना’ और घपलेबाज़ी ज्यों की त्यों जारी रहेगी, लेकिन मुनाफ़े का ‘मार्जिन’ काफ़ी बढ़ जायेगा। दूसरे ग्राहक रूपी छात्रों की जो आबादी इस मॉल तक पहुँचने की औकात रखेगी, उसकी प्रकृति में कुछ वैसा ही फ़र्क आयेगा जैसा कि एक मॉल और पंसारी की दुकान के ग्राहकों की आबादी के बीच होता है।

अपनी मूल चर्चा पर वापस लौटते हुए, हम देख सकते हैं कि लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा अकादमिक सत्र 2011-2012 के लिए घोषित शुल्क नीति के अनुसार विश्वविद्यालय के अन्तर्गत संचालित होने वाले कुल 180 पाठ्यक्रमों (इसमें डिप्लोमा कोर्स भी शामिल हैं) में 50 फ़ीसदी से अधिक वृद्धि की गयी है। यह वृद्धि मुख्यतः स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों के लिए की गयी है। बीए (रेगुलर) के लिए 96.7 फ़ीसदी, बीएससी (गणित, भौतिकी, रसायनशास्त्रा) के लिए 245.7 फ़ीसदी, बीएससी (जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, रसायनशास्त्र) के लिए 260 फ़ीसदी, बीकॉम (रेगुलर) के लिए 347 फ़ीसदी, एलएलबी (रेगुलर) के लिए 137.9 फ़ीसदी और शास्त्री के लिए 63.2 फ़ीसदी की वृद्धि की गयी है। (देखें तालिका-1) विश्वविद्यालय द्वारा पूर्णतया ‘धन-उगाही’ के लिए संचालित स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में बीए (ऑनर्स) के लिए 28.7 फ़ीसदी, बीएससी (ऑनर्स) के लिए 71.8 फ़ीसदी, बीकॉम (ऑनर्स) के लिए 67.8 फ़ीसदी और एलएलबी (ऑनर्स) के लिए 257 फ़ीसदी की वृद्धि की गयी है। (देखें तालिका-2) स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के शुल्क में वृद्धि तो नहीं की गयी लेकिन सभी पाठ्यक्रमों के लिए पंजीकरण शुल्क में सीधे 275 फ़ीसदी की वृद्धि करते हुए 200 रुपये से 750 रुपये कर दी गयी है। चूँकि यह शुल्क विश्वविद्यालय में दाखि़ला लेने वाले सभी छात्रों से वसूला जायेगा, इसलिए सभी पाठ्यक्रमों के लिए 550 रुपये शुल्क में सीधे बढ़ जायेंगे।

तालिका-1 (सामान्य पाठ्यक्रम)

पाठ्यक्रम            फ़ीस   वृद्धि दर (प्रतिशत में)
2010 2011
बीए (रेगुलर) 1710 3364 96.7
बीएससी (रेगुलर)
(गणित भौतिकी, रसायनशास्त्र) 2645 9144 245.7
(जीव विज्ञान, रसायनशास्त्र) 3095 11144 260
(गणित भौतिकी, कम्प्यूटर) 5695 14144 148.3
बीकॉम (रेगुलर) 1710 7644 347
एलएलबी (रेगुलर) 1654 3935 137.9
शास्त्री 1700 2775 63.2
बीएड 18387

 

तालिका-2 (स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम)

पाठ्यक्रम            फ़ीस   वृद्धि दर (प्रतिशत में)
2010 2011
बीए (ऑनर्स) 14200 18275 28.7
बीएससी (ऑनर्स)
(गणित भौतिकी, कम्प्यूटर) 15350 26375 71.7
(जीवविज्ञान, रसायनशास्त्र,
बायोटेक्नोलाजी) 31095 51144 64.4
बीकॉम (ऑनर्स) 36200 60775 67.8
एलएलबी (ऑनर्स) 14200 50775 257

इसके अलावा स्थानान्तरण प्रमाणपत्र प्राप्त करने के शुल्क में 66.67 फ़ीसदी, प्रति पेपर स्क्रूटनी शुल्क में 20 फ़ीसदी और प्रति पेपर बैकपेपर शुल्क में 140 फ़ीसदी की वृद्धि की गयी है। (देखे तालिका-3)

तालिका-3 (विभिन्न मद)

पाठ्यक्रम            फ़ीस   वृद्धि दर (प्रतिशत में)
2010 2011
स्थानान्तरण प्रमाणपत्र
(माइग्रेशन सर्टिफिकेट) 300 500 66.67
स्क्रूटनी शुल्क (प्रति पेपर) 500 600 20
बैकपेपर शुल्क (प्रति पेपर) 500 1200 140

इस वृद्धि के बारे में घोषणा करते हुए विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी श्री राजवर्धन ने कहा कि ‘‘विश्वविद्यालय की फ़ीसों में औसतन 33 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा किया गया है।” यह वृद्धि दर का एक भ्रामक विश्लेषण है, क्योंकि फ़ीस वृद्धि का प्रभाव छात्र औसत रूप में नहीं बाँटेंगे बल्कि अलग-अलग छात्र अलग-अलग रूप में इससे प्रभावित होंगे। अगर वृद्धि दर को देखा जाये तो बीए (रेगुलर), बीएससी (रेगुलर), बीकॉम (रेगुलर) में वृद्धि दर क्रमशः 96.7, 245.7 और 347 फ़ीसदी है। वहीं इन्हीं के समान्तर चलने वाले स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम जैसे बीए (ऑनर्स), बीएससी (ऑनर्स) और बीकॉम (ऑनर्स) के लिए वृद्धि दर क्रमशः 28.7, 71.8 और 67.8 फ़ीसदी हैं। ज़्यादातर ग़रीब पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र सामान्य पाठ्यक्रमों में दाखि़ला लेते हैं, और जैसा कि ऊपर दिये गये आँकड़ों से स्पष्ट है कि इन्हें ही फ़ीस वृद्धि का भार सबसे अधिक सहन करना पड़ेगा। दूसरे सामान्य पाठ्यक्रमों में स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों से कई गुना अधिक छात्र दाखि़ला लेते हैं, यानी विश्वविद्यालय के लिए ‘धन-उगाही’ का भार भी सबसे अधिक यही छात्र वहन करेंगे। ऐसे में औसतन वृद्धि-दर की बात करना, आँकड़ों की बाज़ीगरी करना है’‘ जिसमें एक योग्य प्रशासक की तरह वित्त अधिकारी महोदय भी काफ़ी प्रतिभा-सम्पन्न है।

वैसे यह फ़ीस वृद्धि कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। पिछले दो दशकों से जारी और भविष्य के लिए प्रस्तावित शिक्षा नीति का मूलमन्‍त्र ही है कि सरकार को उच्च शिक्षा की जि़म्मेदारी से पूरी तरह मुक्त करते हुए उसे स्ववित्तपोषित बनाया जाये। ताज़ा आँकड़ों के अनुसार आज केन्द्रीय सरकार सकल घरेलू अत्पाद (जीडीपी) का 1 फ़ीसदी से कम उच्च शिक्षा पर ख़र्च करता है और यह भविष्य में बढ़ेगा, इसकी उम्मीद कम ही है। मानव संसाधन मन्‍त्रालय के हालिया बयानों में यह बात प्रमुखता से आयी है, हर तीन साल बाद विश्वविद्यालय की फ़ीसों में बढ़ोत्तरी की जाये ताकि राज्य इस जि़म्मेदारी से मुक्त हो सकते। बिरला-अम्बानी-रिपोई से लेकर राष्ट्रीय ज्ञान आयोग और यशपाल समिति की सिफ़ारिशें भी इसी आशय की हैं।

ऐसे में दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना संजोने वाले इस देश की सरकार की पक्षधरताएँ बिल्कुल स्पष्ट हैं। उच्च शिक्षा का क्षेत्र महज़ इसकी एक और बानगी है। लेकिन सवाल सिर्फ सरकार का ही नहीं है। इन नीतियों के लिए देश की उच्च मध्यवर्गीय आबादी का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। फ़ीस वृद्धि के लिए सरकार और प्रशासन द्वारा दिये जाने वाले हर नाजायज़ तर्क को स्वीकार करने वाली यह आबादी ग़रीबों के बेटे-बेटियों को कैम्पसों की दहलीज से बाहर होता देख एक सुख का भी एहसास करती है। यही कारण है कि आयेदिन विश्वविद्यालयों के जो शिक्षक अपने शिक्षक संघों के माध्यम से हर वेतन-भत्ते और वेतन आयोग की सिफ़ारिशों को जल्द से जल्द लागू कराने के लिए धरना और विरोध प्रदर्शन करते हैं, वे फ़ीस वृद्धि जैसे मुद्दों पर चूँ तक नहीं करते और प्रशासक के रूप में इन नीतियों को लागू कराते हैं। हमारे सभ्य-समाज के सम्मानित प्रतिनिधि को भी यह देश के विकास के लिए ज़रूरी लगता है। चुनावी पार्टियों के पिछलग्गू छात्र संगठन और एसएफ़आई, आइसा जैसे छदम् वामपन्थी संगठन भी जुबानी जमाख़र्च करके अपनी जि़म्मेदारियों का निर्वहन कर देते हैं। ऐसे में इस अन्यायपूर्ण फ़ीस वृद्धि के खि़लाफ़ छात्रों को संगठित करते हुए एक संघर्ष छेड़ने की जि़म्मेदारी क्रान्तिकारी छात्र संगठनों के कन्‍धों पर ही टिकी है। इस संघर्ष को उन युवाओं तक भी लेकर जाना होगा, जो इस फ़ीस वृद्धि के कारण या तो अभी दाखि़ला नहीं प्राप्त कर पाये या भविष्य में नहीं कर पायेंगे। बिना इनकी ताकत के कोई व्यापक संघर्ष खड़ा कर पाना नामुमकिन होगा।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2011

 

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