प्रो. प्रभात पटनायक के नाम एक खुला पत्र
आपकी राजनीतिक पक्षधरता आपको बौद्धिक तौर पर भी ईमानदार नहीं रहने देती है। इन दोनों के बीच द्वन्द्व चलता रहता है और अन्त वही होता है, जैसा कि हमेशा होता आया है – राजनीति की विजय होती है, और अर्थशास्त्र की पराजय! बेहतर होगा कि अपने मस्तिष्क के इस द्वन्द्व को किसी एक पार लगा दें। क्योंकि यह द्वन्द्व आपकी हर रचना में प्रकट हो जाता है और उसे ‘मास्टरपीस’ बनने से रोक देता है। या तो राजनीति के पक्ष में इस द्वन्द्व का समाधान हो जाये, या फिर आपकी अर्थशास्त्रियों वाली बौद्धिक ईमानदारी के ही पक्ष में इसका समाधान हो जाये। दोनों ही सूरत में तब आपका लेखन मास्टरपीस बनने की पूर्वशर्तें पूरा करने लगेगा। पहली सूरत में यह शानदार काउत्स्कीपन्थी लेखन बनेगा (जैसे कि साम्राज्यवाद पर आपका अति-साम्राज्यवाद वाला सिद्धान्त आया था, जिसकी आपने चर्चा ही करनी बन्द कर दी इस महामन्दी के बाद!) और दूसरी सूरत में यह एक अच्छा मार्क्सवादी आर्थिक लेखन बनेगा। और ऐसे में हम जैसे अर्थशास्त्र के विनम्र विद्यार्थी आपके लेखन से कन्फ्यूज़ हो जाने की बजाय, अधिक अच्छी अन्तर्दृष्टि विकसित कर पाने में समर्थ होंगे।