भगतसिंह के जन्मशताब्दी वर्ष और स्मृति संकल्प यात्रा का जन्तर–मन्तर पर विशाल जुटान के साथ समापन
28 सितम्बर को समापन सप्ताह के आखिरी कार्यक्रम के रूप में जन्तर–मन्तर पर मज़दूरों, छात्रों, नौजवानों और क्रान्तिकारी कार्यकर्ताओं का एक महाजुटान किया गया । इस महाजुटान में करीब 250 लोग एकत्र हुए और पूरे समूह ने भगतसिंह और क्रान्तिकारी धारा के तमाम स्वतंत्रता योद्धाओं को याद किया और उनके सपनों को सच बनाने का संकल्प लिया । कार्यक्रम में ‘विहान’ ने क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति भी की । सभा को नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन, बिगुल मज़दूर दस्ता, बादाम मज़दूर यूनियन, नारी सभा, दायित्वबोध मंच, जागरूक नागरिक मंच के वक्ताओं ने सम्बोधित किया । इस मौके पर हिन्दी की क्रान्तिकारी युवा कवयित्री और नारी सभा की संयोजिका कात्यायनी भी उपस्थित थीं । उन्होंने भी सभा को सम्बोधित किया । वक्ताओं ने भगतसिंह के विचारों को सहज रूप में प्रस्तुत किया और दिखलाया कि किस प्रकार आज के समय में भगतसिंह के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो चुके हैं । आज के भारत में मज़दूरों, किसानों, आम छात्रों–नौजवानों और स्त्रियों के जीवन पर रोशनी डालते हुए यह पूछा गया कि इन शोषित–उत्पीड़ित तबकों के लिए किस बात की आज़ादी है । आज़ादी है तो भूखों मरने की, बेरोज़गार घूमने की, कुपोषित होने की, भ्रष्टाचार के हाथों उत्पीड़ित होने की । ऐसे में, यह एक अहम सवाल बनता है कि यह बेहद ख़र्चीला और भारी–भरकम “जनतंत्र” आखिर किसके लिए है ? यह सिर्फ नवधनिक वर्गों और पूँजीपतियों का जनतंत्र है । आम जनता के लिए यह कफनखसोट और मुर्दाखोरों का शासन है । किसी भी चुनावबाज़ पार्टी की बात कर लें, हर किसी को आजमाया–परखा जा चुका है और अब उन्हें और परखने का कोई तुक नहीं है । सभी वक्ताओं ने कहा कि अब समय इलेक्शन का नहीं बल्कि इंकलाब की तैयारियों का है । बेशक यह एक लम्बी और मुश्किल राह है लेकिन यही एकमात्र राह है । आज आम जनता के बेटे–बेटियों को यह ज़िम्मेदारी उठानी होगी कि वे मज़दूरों और किसानों के सपनों और आकांक्षाओं से खुद को जोड़ें और उनके आन्दोलन में अपना वर्ग रूपान्तरण करते हुए उतर पड़ें और अपना पूरा जीवन एक मानवकेन्द्रित, न्यायपूर्ण और समानतामूलक समाज और व्यवस्था के निर्माण में लगा दें; एक ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन, राज–काज और समाज के पूरे ढाँचे पर उत्पादन करने वाले वर्गों का हक हो और फैसला लेने की ताक़त उनके हाथों में हो; एक ऐसी व्यवस्था में जिसमें सभी गतिविधियों की प्रेरक शक्ति सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो न कि मुनाफा हासिल करने की हवस । एक ऐसी व्यवस्था ही इस देश के मेहनतकश अवाम को एक इज़्ज़त और आसूदगी की ज़िन्दगी दे सकती है । यही भगतसिंह का सपना था और इसे पूरा करना ही आज के नौजवानों का फर्ज़ बनता है । स्मृति संकल्प यात्रा का समापन एक चरण का समापन है, इस पूरी मुहिम का समापन कतई नहीं । इस समापन के बाद और ज़ोरदार शुरुआत करनी है, किसी नये अभियान की, किसी नई मुहिम की । क्योंकि अभी इस कारवाँ को काफी लम्बा रास्ता तय करना है । इसके बाद भगतसिंह को याद करते हुए गगनभेदी नारों के साथ कार्यक्रम का समापन कर दिया गया ।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्टूबर दिसम्बर 2008
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