तीन पदक और सवा अरब जनसंख्या

विवेक

कैसे अपवाद को नियम बनाया जाये और उसका गुण गाया जाये, हमारे देश के नेताओं और मीडिया को यह काम बहुत अच्छे से आता है । अभी बीजिंग ओलम्पिक में भारत ने तीन पदक जीते । अभिनव बिन्द्रा ने निशानेबाजी में स्वर्ण, विजेन्द्र ने मुक्केबाजी में कांस्य और सुशील कुमार ने कुश्ती में कांस्य जीता । इसे लेकर तमाम नेताओं और मीडिया में खेल–प्रेम उमड़ आया और कई पुरस्कारों की घोषणा हुर्इं और अगले ओलम्पिक के लिए बड़ी–बड़ी बातें हुर्इं ।

Sushil-Kumar-Vijender-Kumar-Abhinav-Bindra

यहाँ हमारा सवाल इन पदकों और पुरस्कारों पर नहीं है बल्कि इस पर है कि इसी को नियम बताया जा रहा है कि सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति से ही पदक जीता जा सकता है । लेकिन इस पर बात नहीं हो रही कि ये खेल–प्रेम तब कहाँ चला गया जब बिना अच्छी सुविधा के कई खिलाड़ी ओलम्पिक की तैयारी में लगे हुए थे । प्राय: सभी खेल–प्रेमी और नौजवान जानते हैं कि यहाँ खेलों में ऊपर से नीचे तक बेइमानी, भ्रष्टाचार और भाई–भतीजावाद और नौकरशाही व्याप्त है । भारत में ओलम्पिक बजट पर लगभग 250 करोड़ रुपये खर्च हो पाते हैं और इनमें से एक बड़ा हिस्सा अधिकारियों के भत्तों में खर्च हो जाता है । इस भ्रष्ट प्रशासन का सबसे बड़ा उदाहरण भारोत्तोलक मोनिका देवी के मामले में देखने को मिला । जिस दिन मोनिका देवी को बीजिंग जाना था उसी दिन उन्हें डोपिंग के आरोप में फँसा कर रोक लिया । जबकि पिछले दो महीने में चार डोप परिक्षण में वह सफल रही थी । दरअसल यह चाल थी भारतीय खेल प्राधिकरण के एक अधिकारी आर.के.नायडू की जिन्होंने एक दूसरी खिलाड़ी को आगे करने के मकसद से मोनिका के करियर के साथ खिलवाड़ किया । लेकिन मणिपुर के इस जुझारू खिलाड़ी ने ओलम्पिक संघ को बेपर्दा करते हुए यह लड़ाई जीत ली । यह हकीकत है खेल से जुड़ी तमाम संस्थाओं की । ऐसे में जब विजेन्द्र और सुशील जैसे खिलाड़ी निम्न सुविधाओं में अपने जीवट और हौसले व मेहनत के दम पर पदक जीत लेते हैं तो इस जीवटता का उदाहरण पेश किया जाता है और गुणगान गाया जाता है, मतलब ‘‘देखो बच्चो! अगर अपने दम पर पदक ला सकते हो तो ठीक वरना सुविधा के नाम पर तो तुम्हें झुनझुना ही मिलेगा ।’’ और अगर अभिनव बिन्द्रा ने निशानेबाजी में स्वर्ण पदक हासिल किया तो इसकी तैयारी के लिए उन्हें 10 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने पड़े । आखिर कितने नौजवान होंगे जिनके अमीर माँ–बाप उन्हें खिलाड़ी बनाना चाहेंगे, उनपर करोड़ों खर्च करेंगे, उन्हें कमाण्डो ट्र्रेनिंग दिलायेंगे ? शायद बहुत कम ।

ये सारी सच्चाई हर खेल–प्रेमी युवा और शिक्षित वर्ग का व्यक्ति जानता है । लेकिन एक सच्चाई और है जो इस दुर्दशा का मुख्य कारण है । उसकी कभी चर्चा नहीं होती और उसे हमेशा छिपाया जाता है । भारत दुनिया के निर्धनतम देशों में से एक है । अगर आज बहुत छोटे देश भी पदक तालिका में भारत से ऊपर हैं तो इसका कारण है कि भारत के मुकाबले वहाँ का जीवन स्तर ऊँचा है जबकि इस देश में लगभग 84 करोड़ आबादी 20 रुपये दैनिक आय पर गुज़ारा करती है । शिक्षा, चिकित्सा जैसी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पातीं, खेल में रुचि लेना तो दूर की बात है । और अगर इसके बावजूद भी कोई प्रतिभावान नौजवान खेल में रूचि लेता है तो उसे पर्याप्त अवसर और सुविधाएँ ही नहीं मिलते ।

दूसरी ओर वह वर्ग है जिसके बच्चों के पास अच्छा स्कूल, अच्छा मैदान, कोच और अन्य सारी सुविधाएँ हैं । इनको अलग से ट्र्रेनिंग दिलाई जाती है जिस पर लाखों–करोड़ों खर्च किया जाता है । लेकिन क्या सिर्फ पैसों के बल पर ही प्रतिभा का मूल्याँकन हो सकता है ? जाहिरा तौर पर नहीं । वैसे भी अमीरों के लड़कों के लिए मौजमस्ती, नाइट पार्टी, तेज ड्राइविंग ही ज़िन्दगी है और अगर इनमें से कुछ नौजवान खेल में ध्यान भी देते हैं तो वे निशानेबाजी, टेनिस जैसे अभिजात खेल ही चुनते हैं ।

ऐसे में मध्य वर्ग के नौजवान जो खेल में भाग लेते हैं, उनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो खेल कोटे के नाम पर कोई सरकारी नौकरी मिल जाने की आस लगाये बैठे होते हैं और कुछ खेल को आदर्श मानते हुए भाग लेते हैं । ऐसे में अगर वे कोई राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपाधि पातें हैं तो इसमें असली योगदान उनके जीवट हौसले, मेहनत और प्रतिभा का होता है जिसके दम पर वे तमाम अभाव और बाधाओं को पार कर जाते हैं । लेकिन जाहिर है कि इसमें संयोग की बड़ी भूमिका होती है और ऐसे खिलाड़ी अपवाद ही होते हैं जिन्हें मीडिया और व्यवस्था खूब प्रचारित करती है ।

ऐसे में आश्चर्य की बात नहीं कि ओलम्पिक में भारत कि दुर्दशा हो  । ऐसे में किया क्या जाये ? ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता सुशील कुमार ने कहा ‘‘सुविधाओं का अभाव भारत और दूसरे देश के खिलाड़ियों में बहुत बड़ा अन्तर पैदा करता है । कई बार चंद पैसों कि खातिर दंगल में उतरता रहा हूँ’’ । इसलिए ज्यादातर खिलाड़ी आज स्पांसरशिप के पीछे भाग रहे हैं । जो जितना ज्यादा सफल उस पर विज्ञापन के अनुबंध कि बौछार भी उतनी ज्यादा । कुल मिलाकर खिलाड़ी को एक चलता–फिरता विज्ञापन बना दिया जाता है । लेकिन क्या सिर्फ कुछ खेलों और खिलाड़ियों को कॉरपोरेट घराने के प्रायोजक मिलने से यह समस्या हल हो सकती है  हर्गिज़ नहीं ।

इस समाज में जहाँ खेल को हेय दृष्टि से देखा जाता है । ख़ासकर लड़कियों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है । उनके लिए कदम–कदम पर रूढ़ियाँ–वर्जनाओं–लाक्षणाओं–उपेक्षाओं और पितृसत्तात्मक ढाँचे कि अनगिनत बाधाएँ होती हैं । एक ऐसे देश में खेलों में दुर्दशा बनी रहेगी क्योंकि जब तक यह समाज जड़ता से ग्रस्त, अंधविश्वास और कूपमण्डूक रहेगा तमाम खेल प्रेमी इस पर आंसू बहाते रहेंगे ।

इसका एकमात्र विकल्प है समाज कि गतिशीलता बढ़े, आम आदमी को शिक्षा, दवा–इलाज और जीवन की सभी आधुनिक सुविधाएँ मुहैया हो, समाज कि सम्पन्नता बढ़े, सभी को खेल–कूद कि आधुनिक सुविधाएँ, तकनीक और हुनर हासिल हो । खेल ज़िन्दगी का हिस्सा बन सके ताकि नौजवानों का बड़ा हिस्सा बिना चिन्ता के इसमें भाग ले सके । तभी ये समस्याएँ दूर होंगी ।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्‍टूबर-दिसम्‍बर 2008

 

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।