भगतसिंह जनअधिकार यात्रा, उत्तराखण्ड एवं सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रथम राज्य सम्मेलन सम्पन्न
‘भगतसिंह जन अधिकार यात्रा’ उत्तराखण्ड एवं सीमावर्ती क्षेत्र का प्रथम सम्मेलन 27 अगस्त को नांगल में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में ‘भगतसिंह जन अधिकार यात्रा’ की माँगों और उद्देश्यों पर विस्तार के साथ बातचीत की गयी।
सम्मेलन में स्त्री मुक्ति लीग की कविता कृष्णपल्लवी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज के इस फ़ासीवादी दौर में नौजवानों-मेहनतकशों की क्रान्तिकारी एकजुटता ही हमारे देश को बर्बरता की तरफ जाने से रोक सकती है। यह देश बर्बर फ़ासिस्ट आतताइयों के नंगे नाच का जीता जागता मंच बनता जा रहा है। पूरे देश में धार्मिक-जातीय-क्षेत्रीय उन्माद को ज़ोर-शोर से बढ़ावा दिया जा रहा है। 2014 से फ़ासिस्ट मोदी सरकार के आने के बाद मेहनतकशों के हक़ों-अधिकारों को क़ानून और पुलिस-फौज के बूटों तले रौंदने का सिलसिला बदस्तूर तरीक़े से बढ़ा है। एक तरफ जहाँ भारत में अरबपतियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है वहीं दूसरी तरफ मज़दूरों-मेहनतकशों की ज़िन्दगी और भी बदतर हुई है। लोगों को उनकी बुनियादी समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए कभी अन्धराष्ट्रवाद तो कभी मन्दिर-मस्जिद का मुद्दा उठाया जाता है। ये सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक हम इन हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्टों के झूठे कुत्सा-प्रचारों का शिकार होते रहेंगे और आपस में ही लड़ते रहेंगे। कविता कृष्णपल्लवी ने महिलाओं का भी आह्वान किया कि आज महिलाओं को पुरुषों के कन्धे-से-कन्धा मिलाकर अपने हक़-अधिकार के लिए लड़ने की ज़रूरत है। कोई भी लड़ाई बिना आधी आबादी के भागीदारी के अधूरी है। वो लड़ाई जीत के मुक़ाम तक जा ही नहीं सकती, जब तक स्त्रियाँ उससे दूर रहेंगी।
इससे पहले सम्मेलन का संचालन करते हुए नौजवान भारत सभा के अपूर्व ने ‘भगतसिंह जन अधिकार यात्रा’ की शुरुआत, उसके महत्व और अब तक के प्रचार अभियानों में जनता से प्राप्त हुए सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं पर विस्तार से बात रखते हुए एक रिपोर्ट पेश किया। अपूर्व ने बताया कि इस पूरे अभियान की माँगों और इसके विविध प्रचार रूपों का जनता के बीच बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लोग मोदी सरकार की नीतियों, महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिक राजनीति से त्रस्त हैं। ये अभियान एक ऐसे समय में देश के 13 राज्यों में चलाया जा रहा है जब भाजपा और मोदी सरकार विरोध की छोटी से भी छोटी आवाज़ को भी दबा दे रही है। तमाम विपक्षी पार्टियाँ व राजनीतिक दल, फ़ासिस्ट मोदी सरकार के सामने घुटने टेक दिये हैं। उसकी जन विरोधी नीतियों की खुलकर मुख़ालफ़त करने की क्षमता भी ये पार्टियाँ खोती चली जा रही हैं। ऐसे में आज जरूरत है कि नये सिरे से व्यापक मेहनतकश आबादी को उसके हक़ों-अधिकारों को लेकर संगठित किया जाये। इसमें ‘भगतसिंह जन अधिकार यात्रा’ जैसे अभियानों की आज सख़्त से सख़्त जरूरत है, जो इस देश की मेहनतकश आबादी को संगठित कर सके। इस देश की मेहनतकश आबादी संगठित होकर न सिर्फ अपने वास्तविक अधिकारों को ले सकती है बल्कि वो अपने लोहे के हाथों से इन फ़ासिस्टों को धूल भी चटा सकती है।
सम्मेलन में नौजवान भारत सभा के प्रदीप ने कहा कि, इतिहास के रथ का पहिया नौजवानों के ख़ून से आगे बढ़ता है। किसी भी देश को आज़ाद और बेहतर बनाने वाले वहाँ के नौजवान ही होते हैं। लेकिन सत्ताधारी कभी नहीं चाहते कि नौजवान एकजुट हों और अपने देश समाज की जीवन्त समस्याओं पर चिन्तन करें! इसलिए उनके बीच हर तरह के नशे की ख़ुराक जान-बूझकर पहुँचाई जाती है। शराब और ड्रग्स के नशे से नौजवान अगर बच भी जाये तो मोबाइल, इण्टरनेट के द्वारा जो पतनशील सांस्कृतिक नशा परोसा जाता है उससे बच पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
सम्मेलन में किसान नेता हेमेन्द्र चौधरी ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि, चुनाव आते ही सरकारें जनता को ख़ैरात बाँटने लगती हैं। जनता का ही पैसा लेकर उन्हें पाँच किलो राशन, तेल, चीनी और चन्द पैसों की कोई न कोई सब्सिडी पकड़ा कर ये एहसास दिलाने की कोशिश की जाती है कि देखो!हमने तुमको कितना दिया! उनके इस जाल में पड़ने की ज़रूरत नहीं है। हमें ख़ैरात नहीं अपना हक़ चाहिए। हमें एक समान निःशुल्क शिक्षा और रोज़गार की गारण्टी चाहिए! हमें 25,000 न्यूनतम मज़दूरी और 10,000 बेरोज़गारी भत्ता चाहिए।
बिगुल मज़दूर दस्ता के रामाधार ने ‘भगतसिंह जन अधिकार यात्रा’ की माँगों और उसकी आज की ज़रूरत पर विस्तार से बात रखी। सम्मेलन के समापन के पश्चात चार्ली चैप्लिन की फ़िल्म ‘मॉडर्न टाइम्स’ दिखायी गयी।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर 2023
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