छात्रों युवाओं ने भरी हुंकार समान शिक्षा सबको रोज़गार
पटना में ‘वादा न तोड़ो अभियान’ और ‘रोज़गार अधिकार महाजुटान’ की रिपोर्ट
इस बार के बिहार विधान सभा चुनाव में रोजगार एक मुख्य मुद्दा बनकर उभरा था और हर पार्टी द्वारा रोजगार के मुद्दे पर बड़े-बड़े चुनावी वादे किये गए थे। उनमें से नितीश की गठबंधन सरकार ने 19 लाख रोजगार का वादा किया था। इसी के मद्देनज़र बिहार में ‘वादा न तोड़ो अभियान’ की शुरुआत की गयी जिसमें कि सरकार से यह माँग की गयी कि वह 19 लाख रोजगार कैसे देगी इसकी रूप रेखा जनता के सामने प्रस्तुत करे। इसके अलावा इस अभियान में राज्य स्तर पर भगतसिंह रोजगार गारंटी क़ानून बनाने की माँग उठाई गयी व और भी अन्य मांगें शामिल की गयी। यह अभियान पूरे बिहार के कई जिलों में चलाया गया। मुख्य रूप से बिहार की राजधानी पटना में यह अभियान चलाया गया। इसके अलावा गया और जेहानाबाद के कुछ गाँव में भी यह अभियान ले जाया गया। ‘वादा ना तोड़ो अभियान’ के तहत दिहाड़ी मजदूरों,छात्रों,नौजवानों, घरेलू कामगार महिलाओं के बीच जाया गया। इस अभियान में मुख्य रूप से 19 लाख रोजगार के वादे के साथ ही रोजगार की गारंटी हेतु क़ानून बनाने की माँग की गयी थी। यह माँग असल में छात्र-कर्मचारी-कामगार-मजदूर सबकी माँग है। इसलिए सबसे पहले हम भगतसिंह रोजगार गारंटी क़ानून की माँग की अहमियत पर चर्चा करेंगे।
देश का संविधान हरेक नागरिक को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देता है। परन्तु, वास्तव मे यह अधिकार तभी ही फलीभूत हो सकता है, जब लोगों के पास रोजगार हो व सम्मानजनक मेहनताना भी मिले। यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह देश के नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करें। पर यहाँ हालात ये हैं कि रोजगार के प्रश्न से राज्य व केंद्र सरकार दोनो ही अपने हाथ खींच रही है। भाजपा के नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकार, तमाम सरकारी उपक्रमों (रेलवे, बीएसएनएल आदि) को बेच रही है व जो बची-खुची सरकारी नौकरियाँ है, उन्हें भी खत्म कर रही है या ठेके पर दे रही है। असंगठित क्षेत्र मे काम करने वाली श्रमिकों की एक बड़ी आबादी पर भी अनिश्चितता की तलवार लटकती रहती है। एक तो उनके हितों की रक्षा के लिए पहले से ही कम क़ानून है, जो शायद ही धरातल पर कार्यान्वित होते हैं, पर अब तो मालिकों की जमात की सेवा करनी वाली यह सरकार उन क़ानूनों को भी खत्म कर रही है।
बिहार की बात की जाये तो यहाँ बेरोजगारी और भी विकराल रूप धारण कर रही है। पिछले वर्ष आयी CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की बेरोजगारी दर 10.2 % है । लॉकडाउन के वक़्त अप्रैल-मई में तो यह 46% पहुँच गया था। बड़ी संख्या में यहाँ की काम करने योग्य आबादी को रोजगार की तलाश मे बाहरी राज्यों की तरफ पलायन करना पड़ता है। किसी भी क्षेत्र में काम करने वाली आबादी चाहे वह दिहाड़ी मजदूर हो, कामगार महिलाएँ हों या छात्र-नौजवान आबादी हो, सभी के ऊपर अनिश्चितता की तलवार लटकी रहती है और किसी के भी पास साल के 365 दिन पक्के रोजगार की गारंटी नहीं है। इसी अनिश्चितता को ख़त्म करने के लिए रोजगार गारंटी क़ानून बनाने की माँग एक जरुरी माँग है। यह माँग असल में इस पूँजीवादी व्यवस्था का पर्दाफाश करने का काम भी करती है। इसलिए यह माँग राष्ट्रीय स्तर पर विगत चार साल से बिगुल मजदूर दस्ता, नौजवान भारत सभा व दिशा छात्र संगठन द्वारा उठाया जा रहा है। पूरे देश में भगतसिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी क़ानून अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत वर्ष 2018 व 2019 मे दिल्ली में रोजगार अधिकार रैली का आयोजन किया गया था, जिसमे देश भर से हज़ारों की तादाद मे छात्र-युवा, असंगठित मज़दूर, आंगनबाड़ी कर्मी रोजगार संबन्धित अपनी मांगों को लेकर शामिल हुये थे जहां केंद्र सरकार के समक्ष पूरे देश में रोजगार गारंटी क़ानून लागू करने की मांग की गयी थी। भगतसिंह रोजगार गारंटी क़ानून की मांग को राज्य स्तर पर भी पूरे देश के अलग-अलग राज्यों में उठाया जा रहा है। और इस बार बिहार में चल रहे ‘वादा ना तोड़ो अभियान’ के तहत भी रोजगार गारंटी क़ानून बनाने की माँग एक प्रमुख माँग के बतौर रखी गयी।
चूँकि इस बार बिहार विधान सभा चुनाव मे रोजगार के मुद्दे ने तूल पकड़ा था। खुद नीतीश कुमार भी इस सवाल पर घिरते नज़र आ रहे थे, आनन फानन में भाजपा – जदयू गठबंधन ने भी राज्य की जनता को 19 लाख रोजगार देने का वादा करना पड़ा। हालांकि यह बात भी घोषित सत्य है कि बिहार मे बेरोजगारी लगभग पिछले डेढ़ दशक मे सबसे ज्यादा जदयू-भाजपा के शासनकाल मे ही बढ़ी है। बेरोजगारी की मार सबसे ज्यादा छात्रों – युवाओं, दिहाड़ी मजदूरों व घरेलू कामगारों पर ही पड़ी, गत वर्ष लगे लॉकडाउन ने यह दिखा भी दिया।
दिहाड़ी निर्माण मज़दूरों की एक बड़ी आबादी बिहार में रहती है। ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर आते है, यहां शहर मे दड़बों जैसे किराये के लॉजों में नारकीय हालात में रहते है। ये मजदूर हर सुबह शहर के अलग-अलग हिस्सों में रोजगार की तलाश में लेबर चौकों पर खड़े होते है। परंतु माह में औसतन 12 से 15 दिन ही इन्हें काम मिल पाता है, कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के बाद अब तो इन्हें बमुश्किल 7 से 8 दिन ही काम मिल पाता है। साल के सारे दिन रोजगार की गारंटी नहीं होने से इन मजदूरों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इनके लिए न्यूनतम मज़दूरी भी सरकार द्वारा तय की गई है, परंतु शायद ही न्यूनतम मजदूरी की दर पर इनको भुगतान किया जाता है। लॉकडाउन के दौरान ऐसे भी मामले आये जब इनके काम छूट गए व इनके नियोक्ताओं ने इन्हें इनका बकाया पैसा भी नहीं दिया। निर्माण मज़दूरों का लेबर कार्ड बनाने व पंजीकरण का भी प्रावधान है, पर अधिसंख्य मजदूरों के पास वह भी नहीं है। अगर कोई मज़दूर काम के दौरान घायल हो जाये या कभी बीमार ही पड़ जाए तो उनको अपना इलाज कराना भी दूभर हो जाता है। उन्हें किसी भी तरह की स्वास्थ्य बीमा व पेंशन सुविधा भी प्राप्त नहीं हो पाती है।
कुछ ऐसी ही हालत घरेलू कामगार महिलाओं की भी है। सिर्फ़ राजधानी पटना में हजारों की तादाद में ऐसी महिलाएं है, जो दूसरों के घरों में झाड़ू – पोछा, बर्तन – कपड़े धोने व खाना बनाने का काम करती है। अकसर इन घरेलू कामगार महिलाओं को शोषण व अपमान दोनों का सामना करना पड़ता है। अव्वल बात तो ये कि न तो केंद्रीय स्तर पर और न ही राज्य स्तर पर ऐसा ठोस क़ानूनी ढांचा मौजूद है, जिससे इन घरेलू कामगारों के हितों की रक्षा हो सके। वर्ष 2008 में घरेलू कामगार क़ानून को उस वक़्त की केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित किया गया था, परंतु आज तक यह अधर में ही है। मौजूदा केंद्र सरकार ने भी वर्ष 2018 में घरेलू कामगारों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने के बात कही थी, परन्तु लगभग तीन साल बीतने के बावजूद भी इस दिशा में अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं ली गयी है। बिहार सरकार के श्रम विभाग ने भले ही घरेलू कामगारों के लिए विभिन्न तरह के कामों के लिए न्यूनतम वेतन तय किया है, परन्तु शायद ही घरेलू कामगारों के नियोक्ताओं द्वारा इसका पालन किया जाता है। लॉकडाउन के दौरान कई घरेलू कामगार महिलाओं को काम से निकाल दिया गया, कइयों को तो उनके बकाया पैसे भी नहीं मिले। ऐसे न जाने कितने उदाहरण है जो ये सिद्ध करते है इन घरेलू कामगारों के लिए 365 दिन रोजगार की गारंटी होना कितना जरुरी है।
बिहार मे छात्रों-युवाओं की बड़ी आबादी है, जो एक अदद नौकरी की बाँट जोहते हुये न जाने कितने वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। वैसे तो पूरे देश मे सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाएं व उनके परिणाम निकलने व बहाली पूरी होने में अतिरेक समय लगना, एक सामान्य बात बन चुकी है। परंतु बिहार के संदर्भ में नियुक्ति प्रक्रियाओं में यह समस्या बहुत ज्यादा गंभीर है। वर्ष 2015 में बीएसएससी की स्नातक स्तरीय बहाली के लिए प्राथमिक परीक्षा आयोजित हुई थी। आज पांच वर्ष के बाद भी यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। यही हाल सिविल इंजीनियर की परीक्षा के साथ भी हुआ है, वर्ष 2017 में सिविल इंजीनियर की बहाली निकली थी तब से लेकर आज तक लगभग 4 साल बीत चुके है, पर अभी तक बहाली प्रक्रिया सम्पन्न नहीं हुई है। वही पिछले साल जनवरी में आयोजित एसटीईटी (STET) परीक्षा को धांधली के कारण रद्द घोषित किया गया, उसके बाद फिर से सितंबर में यह परीक्षा ली गयी, परन्तु अभी तक इसका परिणाम नहीं निकला है। ऐसे और भी कई उदाहरण है। अक्सर इन समस्याओं के खिलाफ अभ्यर्थियों का गुस्सा भी फूटता है, वे विरोध प्रदर्शन करते हैं, पर सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती है। छात्र अपने जीवन मे कई वर्ष तैयारी करते हुए बिता देते है, परन्तु उन्हें लंबे इंतेज़ार व उपेक्षा के अलावा कुछ नहीं मिलता है। इसलिए छात्रो के लिए रोजगार की माँग और सारे सरकारी पदों को जल्द भरने की माँग भी इस ‘वादा ना तोड़ो’अभियान में शामिल किया गया था।
इन तमाम तबकों के बीच एक आम माँग रोजगार गारंटी क़ानून की माँग थी, उसके अलावा हर तबके की कुछ विशिष्ट माँगों को भी ज्ञापन में शामिल किया गया।
इस अभियान की कुछ मुख्य माँगें इस प्रकार थीं –
1) ‘सबको स्थायी रोजगार व सभी को समान व निःशुल्क शिक्षा’ के अधिकार को संवैधानिक संशोधन कर मूलभूत अधिकारों में शामिल करो ।
2) बिहार राज्य के स्तर पर जिन भी पदों पर परीक्षाएँ हो चुकी है उनमे उत्तीर्ण उम्मीदवारों को तत्काल नियुक्तियाँ दो। सभी खाली पदों को जल्द से जल्द भरो। रिक्तियाँ निकालने से लेकर नियुक्त करने का काम 6 महीने के अन्दर पूरा करो।
3) ‘भगतसिंह रोजगार गारंटी क़ानून’ पारित करो; गाँव और शहर दोनों के स्तर पर 365 दिनों के पक्के रोजगार की गारंटी दो, रोजगार ना दे पाने की सूरत में 10,000 रूपए प्रतिमाह गुज़ारे योग्य बेरोजगारी भत्ता दो।
4) ठेका प्रथा तत्काल प्रतिबंधित किया जाये।
5) सभी घरेलू कामगार महिलाओ को मजदूर का दर्जा दिया जाये । सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी के दर से उन्हें भुगतान करवाना सुनिश्चित किया जाये । इनके लिए सामाजिक सुरक्षा के अधिकार जैसे पी.एफ़., इ्रग.एस.आई., लेबर कार्ड आदि दिए जायें।
6) दिहाड़ी मजदूरों के लिए भी न्यूनतम मजदूरी तय की जाये और उसी मजदूरी पर भुगतान सुनिश्चित करवाया जाए। इसके अलावा उनके लिए भी पी.एफ़., ई.एस.आई., लेबर कार्ड आदि सुविधाएँ दी जायें।
रोजगार संबन्धित मांगों के अलावा इस मुहिम मे एक मुख्य मांग आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव वाले अध्यादेश को वापस करने की मांग भी थी। चूंकि यह अधिनियम जन विरोधी है व एक तरीके से खाद्यानों की जमाखोरी को क़ानूनी मान्यता देता है, इस आधिनियम से खाद्यान की कीमतें बढ़ेंगी, इस लिए इसे निरस्त करना, मेहनतकश जनता की प्राथमिक मांग है।
इन माँगों को लेकर राजधानी के अलग-अलग इलाकों में जाया गया। मुख्य रूप से दिहाड़ी मजदूरों, कामगार माहिलाओ और छात्रों-नौजवानों की आबादी के बीच इस अभियान को चलाया गया। लेबर चौकों पर जाकर निर्माण मजदूरों के बीच प्रचार अभियान चलाया गया व उनके लॉजों मे जाकर संध्या मीटिंगे आयोजित की गयी। वहीं इलाकों मे प्रचार अभियान के दौरान मिली घरेलू महिला कामगारों के साथ भी मीटिंगे आयोजित की गयी व इस अभियान से उन्हें परिचित काराया गया। पटना के वे इलाके जैसे बाज़ार समिति, भिखना पहाड़ी जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की बड़ी आबादी रहती है, वहाँ जाकर नुक्कड़ सभाएं की गयी व पर्चा वितरण किया गया। इसके अलावा बिहार के नालंदा, गया, जेहानाबाद के कुछ गाँव में यह अभियान चलाया गया। क़रीब डेढ़ महीने तक चले इस अभियान के तहत ऊपर लिखित मांगों पर लोगों को एकजुट कर 31 जनवरी को पटना के गर्दनीबाग में ‘रोजगार अधिकार महाजुटान’ किया गया ।
31 जनवरी को पटना के चित्कोहरा गोलम्बर के आगे से लेकर गर्दनीबाग धरना स्थल तक एक जुलूस निकाला गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए। इसमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर थे और घरेलू कामगार महिलाएं थी, इसके अलावा छात्र-युवा भी शामिल थे। यह जुलूस गर्दनीबाग धरना स्थल पर पहुंच कर धरना में तब्दील हो गया। विभिन्न वक्ताओं ने रोजगार अधिकार क़ानून की जरुरत पर विचार रखे। प्रतिनिधिमंडल के द्वारा सरकार को अपनी माँगों का ज्ञापन देने के साथ ही इन माँगों के समर्थन में जनता से जुटाए गए क़रीब 1000 हस्ताक्षर भी सरकार को सौंपे गए। इस धरने को बिगुल मजदूर दस्ता की वारुणी पूर्वा ने संबोधित करते हुए कहा कि यह सिर्फ़ एक शुरुआत भर है। रोजगार गारंटी क़ानून को पारित करने की लड़ाई एक लम्बी लड़ाई है । लेकिन जब तक यह माँग पूरी नहीं होगी जनता भी चुप नहीं बैठेगी। यदि यह सरकार अभी नहीं झुकती तो हमें और बड़े स्तर पर हर एक गाँव-कस्बो-महल्लो में इस माँग को उठाना होगा और इससे बड़े स्तर पर एकजुट होकर संघर्ष करना होगा।
इसके बाद नौजवान भारत सभा की तरफ से विवेक ने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि न सिर्फ़ रोजगार गारंटी की माँग बल्कि इस दीर्घकालिक माँग के अलावा जो तात्कालिक माँग है उसपर हमें अपनी एकजुटता से सरकार को झुकाना होगा। इन माँगों में लेबर कार्ड,पी.ऍफ़.,इ.एस.आई.,पेंशन, न्यूनतम वेतन आदि की माँग शामिल है। इसे जल्द से जल्द पूरा करने के वादे पर सरकार को झुकाना होगा और साथ ही नितीश सरकार के 19 लाख रोजगार के वादे का हिसाब भी लेना होगा। नहीं तो हर बार सरकारें बनती हैं और अपने वादे से मुकर जाती हैं क्योंकि जनता द्वारा उन्हें उनके वादे याद नहीं दिलाये जाते। इस बार हमें यह गलती नहीं दोहरानी है । यदि इन माँगों पर जल्द ही करवाई नहीं की जाती तो हमे इससे बड़े स्तर पर एकजुट होना पड़ेगा। इसके बाद नितीश सरकार द्वारा छात्रों को किये गए वादे पर दिशा छात्र संगठन की तरफ से अजीत ने अपनी बात रखी । अंत में भारत की क्रांतिकारी मज़दूर पार्टी की तरफ से देबाशीष ने भगतसिंह रोजगार गारंटी क़ानून की माँग के समर्थन मे अपना वक्तव्य रखा। इस प्रदर्शन के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। सभा की समाप्ति इस प्रण के साथ की गयी कि अगर मौजूदा राज्य सरकार ज्ञापन मे लिखित मांगों पर कारवाई नहीं करती है तो निकट भविष्य मे रोजगार के प्रश्न पर फिर से इससे भी बड़े पैमाने पर सरकार को घेरा जाएगा।
वैसे तो बिहार पुलिस प्रशासन ने तानाशाही फ़रमान जारी करते हुये हाल ही में कहा है कि विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले लोगो पर अगर चार्जशीट दायर होती है, तो उन्हें सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य करार दे दिया जाएगा। यह तानाशाहपूर्ण फ़रमान यह स्पष्ट करता है कि यह सरकार जनता में फैलते असंतोष से कितनी कितनी ज्यादा डरी हुई है व जनता को अपने हक – अधिकार के लिए एकजुट होने से रोकने के लिए तमाम तिकड़में भिड़ा रही है परंतु यह फरमान भी बेरोज़गारी के खिलाफ बिहार की जनता की लामबंदी को नहीं रोक सकता है। नितीश सरकार अपने इस फरमान से जनता की एकजुटता और उसकी ताकत को तोड़ नहीं सकती!
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, नवम्बर 2020-फ़रवरी 2021
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