प्रथम पाठक सम्मेलन
17-18 सितम्बर 2011, लखनऊ (उ. प्र.)
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान
साथियो,
हम आपको ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’ के प्रथम पाठक सम्मेलन में आमन्त्रित करते हुए हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। सुधी पाठकों के साथ और सहयोग से समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन को समर्पित इस पत्रिका ने लगभग दो दशक पूरे कर लिये हैं। 1990 के दशक के शुरू में ‘आह्वान’ की शुरुआत एक पाक्षिक अख़बार ‘आह्वान कैम्पस टाइम्स’ के रूप में हुई थी। 1990 के दशक की समाप्ति पर इस अख़बार ने एक त्रैमासिक पत्रिका का रूप ले लिया और पिछले क़रीब दो वर्षों से यह ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’ नाम से एक द्वैमासिक पत्रिका के रूप में प्रकाशित हो रही है। इस लम्बे उतार-चढ़ाव भरे सफ़र में ‘आह्वान’ को पाठकों का जुझारू साथ मिला। इस सहयोग और समर्थन के बूते पूरे देश में ‘आह्वान’ के पाठकों का दायरा भौगोलिक तौर पर तो विस्तारित हुआ ही है, इसके पाठकों की संख्या भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है।
दोस्तो, आप जानते हैं कि ‘आह्वान’ आप सभी के बौद्धिक और भौतिक सहयोग के बूते ही यहाँ तक पहुँची है। आगे का सफ़र तय करने के लिए भी हमें उसी आत्मीय साथ की ज़रूरत है। ‘आह्वान’ की विषय-वस्तु से लेकर स्वरूप तक को सुधारने और बेहतर बनाने में आपने हमें निरन्तर मदद की है। आज ‘आह्वान’ जिस रूप में पूरे देश में स्थापित है, उसमें इसके पाठक समुदाय की बहुत बड़ी भूमिका है। ‘आह्वान’ के लक्ष्यों और उद्देश्यों के मद्देनज़र आज हम इस बात की शिद्दत से ज़रूरत महसूस कर रहे हैं कि इसके स्वरूप को और बेहतर बनाने के लिए पत्रिका और उसके पाठकों के बीच के आत्मीय और अन्तरंग रिश्तों को एक नये उन्नत धरातल पर पहुँचाया जाये। केवल पत्रों, टेलीफ़ोन और ईमेल के ज़रिये विचारों और भावनाओं की साझेदारी को और गहराई तक नहीं पहुँचाया जा सकता है। यही कारण है कि हमने एक ऐसे संगम की आवश्यकता महसूस की, जिसमें ‘आह्वान’ के गम्भीर और नियमित पाठकों का पूरा समुदाय एक साथ बैठे, आज के बेहद ज़रूरी और ज़िन्दा सवालों पर विचार-विमर्श करे, आज के समय में जनता के आन्दोलनों के समक्ष मौजूद चुनौतियों को समझे, आगे की कठिन और दुरूह यात्रा पर चलने की योजना बनाये और इन सभी चुनौतियों और योजनाओं के अनुरूप ‘आह्वान’ की भूमिका को और कारगर बनाने के लिए आगे आये।
आज न सिर्फ़ देशभर में, बल्कि दुनियाभर में पूरी पूँजीवादी व्यवस्था एक भयंकर और ख़त्म होने का नाम न ले रहे संकट का शिकार है। ब्रिटेन में ग़रीब और बेरोज़गार आबादी निराशा और विकल्पहीनता में सड़कों पर है; यूनान का आर्थिक संकट पूरे देश को दिवालियेपन, बेरोज़गारी, ग़रीबी के गर्त में धकेल रहा है; विश्व पूँजीवाद के सबसे बड़े चौधरी अमेरिका के घर के भीतर भी उथल-पुथल मची हुई है और बेरोज़गारी अपने सर्वकालिक उच्चतम दर पर है; फ़्रांस और जर्मनी में सार्वजनिक मदों में सरकार द्वारा की जा रही कटौतियों का जनता सड़क पर उतरकर विरोध कर रही है; पूरा अरब विश्व जनता के आन्दोलनों से दहक उठा है; पूर्वी यूरोप के देशों में भी जनता के भीतर का असन्तोष कभी भी ज्वालामुखी के लावे की तरह सड़कों पर बह सकता है; लातिनी अमेरिका की जनता हमेशा की तरह साम्राज्यवादी शक्तियों के दबाव के ख़िलाफ़ जुझारू संघर्ष कर रही है; हमारे देश में भी मज़दूर असन्तोष जब-तब और जहाँ-तहाँ फूट पड़ रहा है। छात्र-युवा आन्दोलन में पिछले दो दशकों से एक सन्नाटा छाया हुआ है। लेकिन जिस रफ्तार से शिक्षा का बाज़ारीकरण हो रहा है और बेरोज़गारी बढ़ रही है, उसके नये सिरे से खड़े होने (या किये जाने) की सम्भावनाएँ जन्म ले रही हैं। पूँजीवादी व्यवस्था जनता के भरोसे को काफ़ी हद तक पहले ही खो चुकी थी, लेकिन पिछले एक दशक में यह जिस क़दर नंगी हुई है, वह अभूतपर्व है। ऐसे में व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करने की बजाय महज़ भ्रष्टाचार पर शोर-गुल मचाने वाले अण्णा हज़ारे या रामदेव जैसे लोग व्यवस्था के ‘सेफ्टी वॉल्व’ की भूमिका को निभाने के लिए चाहे जितना यत्न करें, जनता के बीच इसकी विश्वसनीयता लगातार घटती ही जा रही है। कुछ समय के लिए कुछ नये भरम खड़े हो सकते हैं, लेकिन इनके टूटने के साथ ही व्यवस्था पहले से ज्यादा बेनक़ाब हालत में लोगों के सामने होगी। कमोबेश यही हालात ‘तीसरी दुनिया’ के तमाम देशों में तैयार हो रहे हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से लैस कोई भी व्यक्ति देख सकता है कि पूरी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था एक असम्भाव्यता के बिन्दु की ओर बढ़ रही है।
ऐसे में, जनता का पक्ष चुनने वाले क्रान्तिकारी वैकल्पिक मीडिया की भूमिका ख़ासतौर पर अहम हो जाती है कि वह आने वाले तूफ़ानी समय के लिए जनता की चेतना का निर्माण करे; उनके बीच पूँजीवादी व्यवस्था की असलियत को उजागर करने के काम को और तेज़ी से आगे बढ़ाये; और एक सही और कारगर विकल्प को जनता के बीच में स्थापित करे। ‘आह्वान’ अपनी भूमिका को इसी रूप में देखता आया है और आगे भी इसी रूप में देखता है। आज के समय में जनता को उसकी विस्मृत कर दी गयी क्रान्तिकारी विरासत से वाक़िफ़ कराना होगा; इस क्रान्तिकारी पुनर्जागरण के बिना जनता में वह ऐतिहासिक आत्मविश्वास पैदा नहीं हो सकता जो उसे निराशा और हताशा के गर्त से निकालकर पूँजीवाद के ख़िलाफ़ गोलबन्द और संगठित हो सकने में सक्षम बनाये। और साथ ही, जनता को आज की पूँजीवादी व्यवस्था के काम करने के तौर-तरीक़ों से परिचित कराना होगा; उन्हें यह बताना होगा कि पुरानी क्रान्तियों से सीखा जा सकता है, लेकिन उन्हें दोहराया नहीं जा सकता; उन्हें बताना होगा कि पुराने से सीखते हुए भी अतीतग्रस्त नहीं होना होगा और नये के सन्धान को जारी रखना होगा; इस क्रान्तिकारी प्रबोधन के बिना आज के दौर की नयी क्रान्ति का अंकुर पुरानी क्रान्तियों और महान प्रयोगों के विशाल वृक्ष की छाया तले कुम्हला जायेगा। ‘आह्वान’ इस नये क्रान्तिकारी पुनर्जागरण और प्रबोधन को अपना प्रमुख कार्यभार मानता है और इसे निभाने का प्रयास कर रहा है।
इस प्रयास ने जो दो दशकों लम्बी यात्रा तय की है, वह आप सबके आत्मीय और अन्तरंग साथ के बिना सम्भव नहीं थी। हम इसी सम्बन्ध को एक नयी ऊँचाई पर ले जाना चाहते हैं। इसके लिए हम ‘आह्वान’ का पहला दो दिवसीय पाठक सम्मेलन लखनऊ में 17-18 सितम्बर, 2011 को कर रहे हैं। आप सभी साथियों को हम हार्दिक और आत्मीयतापूर्ण आमन्त्रण देते हैं। आइये ‘आह्वान’ के अभियान को नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए सोचें, विचारें और काम करें।
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
सम्पादकमण्डल,
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान
कार्यक्रम
17 सितम्बर 2011 (शनिवार)
पहला सत्र (सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक)
‘लघु पत्रिकाएँ और भारत का राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन’
मुख्य वक्ता : नरेश सक्सेना (वरिष्ठ कवि), कात्यायनी (प्रसिद्ध कवयित्री व राजनीतिक कार्यकर्ता)
वक्तव्य के बाद खुली चर्चा व अध्यक्षीय वक्तव्य
भोजनावकाश व विश्राम (दोपहर 1 बजे से 3 बजे तक)
दूसरा सत्र (दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक)
‘पंजाब में लघु पत्रिका आन्दोलन और जनता के आन्दोलनों से उनका सम्बन्ध’
मुख्य वक्ता : लखविन्दर (पंजाबी पत्रिका ‘ललकार’ के सम्पादक)
वक्तव्य के बाद खुली चर्चा व अध्यक्षीय वक्तव्य
तीसरा सत्र (शाम 5 बजे से शाम 7 बजे तक)
‘भ्रष्टाचार : पूँजीवाद की आचार संहिता’
मुख्य वक्ता : प्रेमप्रकाश (नौजवान भारत सभा, नई दिल्ली)
वक्तव्य के बाद खुली चर्चा व अध्यक्षीय वक्तव्य
विभिन्न सांस्कृतिक टोलियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम (शाम 7 बजे से 9 बजे तक)
18 सितम्बर 2011 (रविवार)
पहला सत्र (सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक)
‘क्रान्तिकारी परिवर्तन की परियोजना और वैकल्पिक मीडिया आन्दोलन के कार्यभार’
मुख्य वक्ता : अभिनव (सम्पादक, ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’)
वक्तव्य के बाद खुली चर्चा व अध्यक्षीय वक्तव्य
भोजनावकाश व विश्राम (दोपहर 1 बजे से 3 बजे तक)
दूसरा सत्र (दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक)
‘आधुनिक भौतिकी और भौतिकवाद की समस्याएँ
मुख्य वक्ता : सनी व प्रशान्त (साइंटिस्ट्स फ़ॉर सोसायटी)
वक्तव्य के बाद खुली चर्चा व अध्यक्षीय वक्तव्य
तीसरा सत्र (शाम 5 बजे से शाम 7 बजे तक)
‘पिछली आधी सदी के सामाजिक-राजनीतिक सन्दर्भ में एक लघु पत्रिका के रूप में हमारा अनुभव’
मुख्य वक्ता : प्रसिद्ध बंगाली लघु पत्रिका ‘अनीक’ के प्रतिनिधि
वक्तव्य के बाद खुली चर्चा व अध्यक्षीय वक्तव्य
रूबरू (शाम 7 बजे से रात 9 बजे तक)
(‘आह्वान’ के स्वरूप और विषय-वस्तु के सम्बन्ध में सुझावों, आलोचनाओं व टिप्पणियों को सम्पादकमण्डल से साझा करने का सत्र)
सम्मेलन के अन्य प्रमुख वक्ता : अरुण कमल, मुद्राराक्षस, शकील सिद्दीकी, वीरेन्द्र यादव, अखिलेश, रामकुमार कृषक, शिवमूर्ति, देवांशु पाल, राजेश मिश्रा, ब्रजेश, कपिलेश भोज, गौरीनाथ, शैलेय, सुरेश सेन निशान्त, पंकज चतुर्वेदी, दिनेश कुशवाहा, मदन केशरी, राजाराम भादू, रजत कृष्ण, प्रियम अंकित, महेश पुनेठा, सी.एस.गोस्वामी व अन्य।
सम्मेलन स्थल : जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केन्द्र, लखनऊ
सम्मेलन के प्रतिनिधियों व मेहमानों के रुकने का स्थान : जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केन्द्र, रूमी दरवाज़े के पास, चौक, लखनऊ
कार्यक्रम में भागीदारी हेतु 17 सितम्बर की सुबह तक अपना आगमन सुनिश्चित करने का प्रयास करें और अपने आगमन सम्बन्धी सूचना 15 सितम्बर तक इन फ़ोन नम्बरों पर दें, ताकि हम आपको रिसीव करने की उचित व्यवस्था कर सकें : 09793994630, 09044272667।
अधिक जानकारी के लिए इन फ़ोन नम्बरों या ईमेल पर सम्पर्क करें :
अभिनव : 09999379381
शिवानी : 09711736435
शिवार्थ : 09793994630
आशीष : 09044272667
ईमेल : pandeyshivarth@gmail.com, abhinav.hindi@gmail.com, shivanikaul.s@gmail.com
आह्वान का ईमेल : ahwan.editor@gmail.com
आह्वान कार्यालय : बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली-110094
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2011
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