1857 की 150वीं वर्षगाँठ पर नौजवान भारत सभा, दिल्ली द्वारा विभिन्न कार्यक्रम
इस 10 मई को 1857 की बग़ावत शुरू होने के 150 वर्ष पूरे हो गये। इस मौके पर एक ओर तो सरकारी यात्राएँ निकलीं जो बस राष्ट्रवाद के नाम पर जनता की वर्ग चेतना को कुन्द करने के लिए निकाली गयीं। दूसरी ओर, 1857 के विद्रोह को भी वर्ग दृष्टि से देखते हुए नौजवान भारत सभा द्वारा कार्यक्रमों, पर्चा वितरण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। 1857 की 150वीं वर्षगाँठ पर नौजवान भारत सभा ने दिल्ली के करावलनगर और बादली इलाके में व्यापक एवं सघन पर्चा वितरण किया। इस दौरान बसों में भी यात्रियों के बीच इन पर्चों का वितरण किया गया।
इस अभियान में की गयी नुक्कड़ सभाओं में नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने कहा कि 1857 की महान क्रान्तिकारी विरासत के वारिस टाटा-बिड़ला-अम्बानी-हिन्दुजा जैसों की मैनेजमेण्ट कमेटी, यानी यह व्यवस्था और सरकार नहीं हो सकते। 1857 की बग़शवत अंग्रेज़ी लूट के ख़िलाफ़ इस देश के किसानों, मज़दूरों और सैनिकों की बग़ावत थी, जो आज भी इन भूरे अंग्रेज़ों के शासन में लुट-पिट रहे हैं और बरबाद हो रहे हैं। इसलिए इस व्यवस्था द्वारा 1857 की वर्षगाँठ पर किये जा रहे जलसे जनता को मूर्ख बनाने के लिए हैं। आम मेहनतकश जनता को लूटने वाला यह निज़ाम दरअसल एक नयी बग़ावत के भय से आक्रान्त है और इसीलिए पुराने विद्रोह की याद को अपनाकर अच्छा-भला दिखने की कोशिश में लगा हुआ है। 1857 की बग़ावत ने उस अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं जो उस समय दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति थी। तो आज हम उससे भी ज़्यादा बर्बर और लुटेरे शासन को निश्चित तौर पर उखाड़कर फ़ेंक सकते हैं।
इसी आधार पर आह्वान करते हुए नौजवान भारत सभा के आशीष ने कहा कि आज के समय में भी मज़दूरों और ग़रीब किसानों को इस शासन को उखाड़ फ़ेंकने के लिए एकजुट होना होगा। यही आज के समय की ज़रूरत है और यही 1857 को याद करने का सही तरीका है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-सितम्बर 2007
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