भूल सुधार
आह्वान के जनवरी-फरवरी 2011 अंक के “मिस्त्र के बहादुर नौजवानों को सलाम! नौजवान जब भी जागा, इतिहास ने करवट बदली है!” वाले लेख में पेज 15 पर आखि़री पैराग्राफ में कुछ तकनीकी कारणों से मैटर छूट गया था। छूटा हुआ मैटर सहित पूरा पैराग्राफ फिर से छापा जा रहा है।
सरकार ने पहले दिन से ही दमन का सहारा लिया। शुरुआती तीन दिनों में ही कम से कम 150 लोग मारे गये और सैकड़ों घायल हो गये। इनमें से ज़्यादातर पुलिस की गोलियों और नज़दीक से चलाये गये आँसू-गैस के गोलों के शिकार हुए थे। बढ़ते देशव्यापी विरोध को देखकर हुस्नी मुबारक ने 1 फरवरी को ऐलान किया कि वह सितम्बर में गद्दी छोड़ देगा। लेकिन अगले ही दिन प्रदर्शनकारियों पर बर्बर हमला करवा दिया गया। ऊँटों और घोड़ों पर सवार हज़ारों बिना वर्दी के पुलिसवालों और अपराधियों ने डण्डों, चाबुकों और तलवारों से तहरीर चौक में जमा लोगों पर हमला बोल दिया। वे गोलियाँ भी चला रहे थे। जेलों से हज़ारों अपराधियों को लूटपाट करने और अफरा-तफरी फैलाने के लिए छोड़ दिया गया, ताकि मुबारक के इस दावे पर लोगों को यकीन हो जाये कि आन्दोलन से देश में अराजकता फैल रही है। लेकिन मिस्त्र के नौजवान इसके लिए भी तैयार थे। उन्होंने तहरीर चौक में हमलावरों की हर लहर का ज़बरदस्त मुकाबला किया और उन्हें खदेड़कर ही दम लिया। रिहायशी इलाकों में नौजवानों, महिलाओं और बुज़ुर्गों ने पीपुल्स कमेटियाँ बनाकर पहरा दिया और लूटपाट करने आये अपराधियों को पकड़-पकड़कर सेना के हवाले कर दिया। 2 फरवरी की रात तहरीर चौक में हुए संघर्ष में सैकड़ों नौजवान बुरी तरह ज़ख़्मी हुए और बहुतेरे मारे भी गये लेकिन उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा। इतना ही नहीं, मिस्त्र के नौजवानों ने अपनी ऐतिहासिक विरासत की हिफाज़त भी शानदार तरीके से की। तहरीर चौक के पास स्थित ‘इजिप्ट म्यूजियम’ मिस्त्र की प्राचीन सभ्यता का सबसे बड़ा संग्रहालय है। उस रात लुटेरों के हुजूम बार-बार लूटपाट और आगज़नी के लिए उस पर धावा बोलते रहे लेकिन नौजवानों ने ख़ुद भारी नुकसान उठाकर भी संग्रहालय पर कोई आँच नहीं आने दी।
तहरीर चौक की तस्वीरें तो मीडिया के ज़रिये सारी दुनिया में देखी गयी हैं लेकिन काहिरा की विशालकाय झुग्गी-बस्तियों (जिनमें राजधानी की कुल 80 लाख में से 50 लाख आबादी रहती है) में भी मेहनतकश लोग लगातार पुलिस से जूझते रहे। मिस्त्र के कपड़ा उद्योग के केन्द्र अल-मुहल्ला अल-कुबरा में और हज़ारों छोटे-छोटे कारख़ानों वाले स्वेज़ शहर में मज़दूरों ने सड़कों पर पुलिस से लोहा लिया। पुलिस की गोलियों से एक ही दिन कम से कम 11 मज़दूर मारे गये और 200 घायल हो गये। फिलस्तीन और इज़रायल की सीमा से लगे सिनाई रेगिस्तान में बसने वाले बद्दू कबीलाई लोगों और पुलिस के बीच कई जगह जमकर गोलीबारी हुई।
आन्दोलन के दौरान मुबारक ने कई बार पैंतरे बदले। 28 जनवरी को उसने अपना मन्त्रिमण्डल बर्खास्त कर दिया (जैसा वह पहले भी कर चुका था) लेकिन हटने से इंकार कर दिया। विरोध-प्रदर्शनों के बर्बर दमन को जायज़ ठहराते हुए उसने दावा किया कि “पूलिस बल नौजवानों से जिस ढंग से निपट रहे हैं वह दरअसल उन्हें बचाने की कोशिश है— वरना ये प्रदर्शन ऐसे दंगे-फसाद का रूप ले लेंगे जो व्यवस्था को ख़तरे में डाल देंगे और नागरिकों की जिन्दगी को बाधित कर देंगे।” प्रदर्शनों का दायरा और उग्रता जैसे-जैसे बढ़ती गयी, अमेरिका और दूसरे साम्राज्यवादी मुल्कों के दबाव में मुबारक ने अपने विश्वासपात्र खुफिया प्रमुख उमर सुलेमान को उप-राष्ट्रपति बनाकर बातचीत का दाँव खेला। मुसलिम ब्रदरहुड, वफ्द पार्टी और अल-बरदेई जैसी शक्तियाँ जो काफी बाद में विरोध-प्रदर्शनों में शामिल हुई थीं, और कुछ अन्य विपक्षी दल इस जाल में फँस भी गये। लेकिन नौजवान लगातार इस रुख़ पर डटे रहे कि मुबारक के हटने तक कोई बातचीत नहीं होगी। उन्होंने विपक्षी पार्टियों को भी अपना रुख़ बदलने पर मजबूर कर दिया।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2011
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!