भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा और जागरूक नागरिक मंच द्वारा क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि
भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की 80वीं (23 मार्च 1931) बरसी पर क्रान्तिकारी जागृति अभियान के दौरान ग़ाजियाबाद में क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि दी गयी। इस अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा और जागरूक नागरिक मंच के प्रवक्ताओं ने उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए मेहनतकश साथियों, परिवर्तनकामी नौजवानों और इन्साफपसन्द नागरिकों का आह्वान किया।
पहले सुबह ग़ाजियाबाद के घण्टाघर चौक पर भगतसिंह की प्रतिमा पर मालार्पण किया गया। वहाँ क्रान्तिकारी साहित्य की प्रदर्शनी लगायी गयी, पूरे इलाके में पर्चा वितरण किया गया और जनसभा आयोजित की गयी। यहाँ एक बात विशेष देखी गयी कि एक व्यक्ति सुबह से परेशान था कि किस तरह से भगतसिंह की इतनी ऊँची प्रतिमा पर माला पहनायी जायेगी और आस-पास की गन्दगी से परेशान था। उसने ख़ुद से पैसा ख़र्च करके सफाई करवायी और माला पहनाने की व्यवस्था करवायी। बाद में हम लोगों को देखकर ख़ुश हुआ कि अभी भी लोग भगतसिंह के विचारों को लेकर जनता के बीच में काम कर रहे हैं। एक बार फिर यह सिद्ध हो गया कि भगतसिंह और तमाम क्रान्तिकारी साथियों के प्रति सम्मान सभी जागरूक, इंसाफपसन्द लोगों के बीच में अभी भी बरकरार है। बस ज़रूरत है तो ऐसे तमाम बिखरे हुए लोगों को एकजुट करके हक और इंसाफ की लड़ाई को आगे बढ़ाने की।
ग़ाजियाबाद के नन्दग्राम इलाके के सरकारी पुस्तकालय में भगतसिंह पर बनी एक डाक्युमेण्टरी फिल्म दिखायी गयी। फिल्म देखने के बाद उस पर हुई चर्चा में यह बात उभरकर आयी कि भगतसिंह और उनके साथियों की एचआरएसए द्वारा शुरू की गयी लड़ाई अभी अधूरी है – यह तथ्य जानकर लोग हैरान थे। महज़ श्रद्धा ही नहीं बल्कि लोगों को अपनी जिन्दगी देखकर ख़ुद ब ख़ुद आज क्रान्तिकारियों द्वारा देखा गया सपना अधूरा लगने लगा है। लेकिन आज के तमाम नेता-मन्त्री द्वारा लोग इतने ठगे गये हैं कि जल्दी किसी पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन लोग बदलाव चाहते हैं। नौभास के कार्यकर्त्ता ने इस बात को साफ किया कि आज के जिन्दा सवालों पर सोचते हुए आज के दौर की चुनौतियों को स्वीकार करना होगा, तभी सच्चे मायने में हम भगतसिंह को श्रद्धांजलि को दे पायेंगे। महज़ एक दिन की चुनावी पार्टियों और छद्म जनसंगठनों की तरह रस्मी कार्यवाही न करके बल्कि आज के दौर की आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की लड़ाई में सक्रिय भागेदारी निभानी होगी।
आज बहुत सी चुनावी पार्टियाँ और उनके बड़े-बड़े संगठन बड़े प्रोग्राम क्यों न कर लें, लेकिन उससे लोगों का और देश का कुछ भला नहीं होने वाला। हमारे शहीदों ने आज़ाद मुल्क में सामाजिक-आर्थिक ढाँचे के निर्माण का मॉडल मुनाफाखोर-शोषणकारी पूँजीवादी मॉडल की जगह मानव-केन्द्रित वैज्ञानिक समाजवादी मॉडल को जनमुक्ति का रास्ता बताया था। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में देश की बहादुर-मेहनतकश जनता की कुर्बानियों से ऐतिहासिक विश्वासघात करते हुए देश को सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पन्थनिरपेक्ष लोकतन्त्रत्मक गणराज्य घोषित किया। नेहरू के नकली समाजवादी मॉडल को असली बताया। देश की जनता के पैसे से भविष्य में देशी-विदेशी पूँजीपतियों के लिए सरकारी पूँजीवादी ढाँचे का निर्माण किया और 1991 में इस सरकारी पूँजीवादी ढाँचे का मुखौटा भी बहुत बेशर्मी के साथ उतारते हुए इसे खुली चारागाह बनाया और निजी पूँजीवादी ढाँचे में तब्दील करते हुए तेज़ी से उदारीकरण- निजीकरण की नीतियाँ को लागू किया। और देश के शारीरिक-मानसिक श्रम के साथ प्राकृतिक सम्पदा की खुली छुट सभी देशी-विदेशी पूँजीपतियों को दे दी। लोगों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की स्थिति तो यह है कि 77.5 फीसदी आबादी 20 रुपये रोज़ से कम पर जीती है और जीवन की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित है। इस देश में 40 फीसदी बच्चे और 70 फीसदी माँएँ कुपोषित हैं, 18 करोड़ लोग झुग्गियों में रहते हैं और 18 करोड़ बेघर हैं। 70 फीसदी आबादी से भी अधिक को शौचालय, साफ पानी, सुचारु परिवहन, स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा तक नसीब नहीं हैं। संविधान ने भी “समाजवादी लोकतान्त्रिक गणराज्य” होने का मतलब खो दिया है और ऊपरी 10 फीसदी आबादी की सेवा में लगा है। यानी इसी 10 फीसदी आबादी के लिए ही जनतन्त्र और आज़ादी है, न कि निचली 90 फीसदी शोषित, पीड़ित और वंचित आबादी के लिए।
साथ में यह भी सन्देश दिया गया कि जिस तरह इस साल के शुरू में ज़ालिम शासकों के खि़लाफ मिस्त्र, ट्यूनीशिया, यमन, लीबिया, मोरक्को, अल्जीरिया जॉर्डन, बहरीन और सीरीया के मेहनतकशों और नौजवानों के नेतृत्व में उठ रही बग़ावत से क्या हम कोई प्रेरणा नहीं लेंगे। अन्त में कहा गया – न हो कुछ भी, सिर्फ सपना हो, तो भी हो सकती है शुरुआत, और यह एक शुरुआत ही तो है, कि वहाँ एक सपना है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2011
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