पाठक मंच

आह्वान की बेहतरी के लिए शुभकामनाएँ!

सबसे पहले मैं आह्वान को आभार प्रकट करना चाहती हूँ। इसमें अन्त में दी गयी कहानी ‘ज़ख़्म’ मुझे बहुत अच्छी लगी। ‘ज़ख़्म’ में साम्प्रदायिकता के बारे में काफ़ी दिल छूने वाली बातें लिखी गयी हैं। हमारे समाज में दंगा सबसे बड़ा संकट बना खड़ा है। राजनीतिक दल अपने फ़ायदे के लिए विद्वेष को बढ़ाने के लिए समाज को विभाजित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। देश का मीडिया, धार्मिक संगठन अपनी पब्लिसिटी बढ़ाने के लिए देश में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई के बीच दंगा पैदा करते हैं और दंगे के बाद आकर अपनी अच्छाइयाँ दिखाने की कोशिश करते हैं। समाचार पत्र में भड़काऊ भाषण जनता को और भी ज़्यादा उत्तेजित कर देते हैं। इसका सबसे बड़ा समाधान यह है कि हम सबको अपने जाति-धर्म के झगड़े छोड़कर एकजुट होकर इन पार्टियों के विरुद्ध खड़े होना चाहिए। ‘नरेन्द्र मोदी, यानी झूठ बोलने की मशीन’ लेख भी काफ़ी दिलचस्प है। इसमें नरेन्द्र मोदी की सच्ची तस्वीर दिखायी गयी है। नरेन्द्र मोदी गुजरात के विकास की कहानी सब राज्यों में सुनाकर अपनी छवि को चमकाने की पूरी कोशिश कर रहा है। पर गुजरात में मज़दूरों के हालात दूसरे राज्यों से भी खराब हैं। गुजरात में सिर्फ़ पूँजीपतियों का राज है। नरेन्द्र मोदी देश के लिए नरसंहारी है। प्रधानमन्त्री बनने के बाद पूरे भारत को गुजरात बनाने का पूरी कोशिश करेगा। अपनी छवि चमकाने के लिए देश की जनता के करोड़ों रुपये चुनाव में ख़र्च कर रहा है। इतिहास को भी तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना इसकी आदत बन चुका है। ‘ख़बरदार जो सच कहा’ लेख पढ़कर अच्छा लगा कि कैसे किताबों पर रोक लगायी जा रही है। अभी निकटतम समय में आयी किताब ‘द हिन्दूज़’ पर हमारे देश में रोक लगा दी है। हमारे राजनीतिक दल जानबूझकर लेखकों की किताबों पर रोक लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि इनको यह डर रहता है कि जनता सच्चाई से परिचित न हो जाए। अन्त में मैं यही कहना चाहूँगी कि ‘आह्वान’ इसी तरह लगातार जारी रहे।

– दिव्या कृति मिश्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय

आह्वान के फासीवाद विरोधी विशेषांक के बारे में कुछ बातें

प्रिय सम्पादक महोदय,

मैं दो वर्ष से ‘आह्वान’ का नियमित पाठक हूँ। देर से ही सही ‘आह्वान’ का फासीवाद-विरोधी विशेषांक प्राप्त हुआ। इसे पढ़कर बहुत कुछ सीखने को मिला। इससे हमें पता चला कि कैसे घोर प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ जनता की निम्न चेतना का फ़ायदा उठाकर उसे राष्ट्र, धर्म, नस्ल, जाति, रंग, भेद आदि के नाम पर भड़काकर अपने ही वर्ग भाइयों से लड़वाती है। तमाम सरकारें बड़ी पूँजी की सेवा करती हैं, ठीक वैसे ही जिस प्रकार अलीशान बंगले की हिफ़ाज़त बाहर पहरा दे रहे कुत्ते करते हैं। ऐसे विशेषांकों की हमारे देश को बहुत ज़रूरत है। क्योंकि इस समय क्रान्तिकारी शक्तियों पर प्रतिक्रान्तिकारी शक्तियाँ हावी हैं। मेरी आह्वान के सम्पादक से अपील है कि वे ऐेसे ही फासीवाद पर साम्रगी देते रहें।

– रोहताश, गाँव-कलायत, जिला-कैथल (हरियाणा)

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-अप्रैल 2014

 

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