खस्ताहाल शिक्षा सुविधाओं पर छात्र–छात्राओं का प्रदर्शन

विवेक

दिल्ली में 2010 में कॉमनवेल्थ गेम होने वाले हैं और 2010 तक दिल्ली को पेरिस बनाने की बात की जा रही है जिसके लिए करोड़ों की परियोजनाओं पर काम हो रहा है । लेकिन दिल्ली के ही सरकारी स्कूलों की हालत इस चमचमाती दिल्ली की पोल खोल रही है । किसी स्कूल में बच्चे खुले आसमान में पढ़ रहे हैं तो कहीं तम्बू में और कहीं जर्जर इमारतों में । कहीं पंखें नहीं तो कहीं पीने को साफ पानी नहीं और कहीं पर एक ही कक्षा में 100–150 बच्चे ठूँस दिये जाते हैं और शौचालय तो हमेशा गन्दे ही रहते हैं ।

इन्हीं सारी परेशानियों को लेकर विगत 1 सितम्बर को दिल्ली के यमुनापार स्थित सोनिया विहार के राजकीय माध्यमिक कन्या विद्यालय की छात्राओं ने प्रदर्शन किया और वजीराबाद रोड पर चक्का जाम किया । छात्राओं का आरोप था कि इन सारी परेशानियों को लेकर जब भी वे अपने अभिभावकों के साथ प्रिंसिपल भुवनेश कुमारी से मिली तो उन्होंने उनके साथ गाली–गलौज की । आठवीं कक्षा की छात्रा आशु ने बताया कि स्कूल की प्रिंसिपल उन्हें 700 रुपये की जगह 300 रुपये की छात्रवृत्ति दे रही है इसके अलावा दसवीं की छात्रा इन्द्रा ने बताया कि एक कक्षा में 100–100 बच्चों को बिना लाइट और बिना पंखे के बिठाया जाता है जबकि प्रिंसिपल और स्टाफ रूप में पंखे हैं बाकि पूरा स्कूल सभी सुविधाधओं से वंचित है ।

इन्हीं माँगों को लेकर जब ये छात्राएँ प्रदर्शन कर रहीं थी तो जैसे कि हमेशा होता है दिल्ली पुलिस जिसका नारा है ‘‘सदैव आपके लिए, आपके साथ’’ उसके जवानों ने इन बच्चों पर लाठियाँ भाँजनी शुरू कर दी । जिसमें दसवीं की छात्रा मोनिका के पैर पर पुलिस वालों ने जोर से लाठी मारी जिससे वो बेहोश हो गयी । इसके अलावा श्यामलाल कॉलेज के छात्र सुशील कुमार को भी गम्भीर चोटें आर्इं हैं और बाकी छात्र–छात्राओं और उनके अभिभावक पर भी पुलिस ने लाठी चार्ज किया ।

ये हकीकत है इस व्यवस्था की । यहाँ पर जब भी आप अपने हक–अधिकारों के लिए आगे आयेंगे तो आपका स्वागत लाठियों–गोलियों से होगा । तो क्या ये बेहतर है कि सब कुछ देख कर भी सहने की आदत डालें और अपने आँख, नाक, कान बन्द रखे बस जीने के लिए जीते रहें ? लेकिन ये बच्चे जो आज आवाज़ उठा रहे हैं, लाठियाँ खा रहें हैं, क्या ये चुप रहे पायेंगे ? ये ही वे बच्चे हैं जो संघर्ष करना सीख रहे हैं, जो अपना शस्त्राभ्यास जारी रखे हुए हैं और इन्हीं से आने वाले कल को उम्मीद है । बेहद कम उम्र में ही ये इस व्यवस्था और समाज की असलियत को समझ रहे हैं और एक नफ़रत का ईंधन अपने भीतर भर रहे हैं ।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्‍टूबर-दिसम्‍बर 2008

 

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