पाठक मंच

आह्वान तरोताजा कर देता है

मैं पिछले एक वर्ष से ‘आह्वान’ लगातार पढ़ता आ रहा हूँ। और इसके साथ अन्य गतिविधियों से जुड़ा हुआ हूँ। मैं पहली बार किसी पत्रिका के लिए लिख रहा हूँ। यह बहुत अच्छी शुरुआत है। नौजवानों में ताजगी भरने के लिए। क्योंकि जबसे मैंने इसे पढ़ना शुरू किया मुझे कई चीजों की जानकारी हासिल हुई तथा आज के युवाओं से अलग सोचने का मौका भी मिला है। आह्वान एक उमंग भर देने और तरो–ताजा कर देने वाली पत्रिका है। इसमें लिखने वाले भी इस समाज के बारे में भी अच्छा जानते हैं। उनकी लिखी बातें, दिलो–दिमाग पर छा जाती है। आह्वान  से ही मुझे कविताएँ पढ़ने का शौक भी लगा है। और सभी पाठकों से यह भी कहना चाहता हूँ कि इस पत्रिका को आप ख़ुद भी पढ़ें तथा और दोस्तों को भी इसे पढ़ायें।

योगेश
सत्यवती कॉलेज, दिल्ली

आह्वान सृजन का संकल्प है

गुलामों के आदि विद्रोह से लेकर आज के बुर्जुआ पूँजीवाद तक, जो शोषण का पर्याय है, सदैव स्वतंत्रता, समानता एवं शोषण के विरुद्ध विचारों को शान देने का कार्य प्रगतिशील साहित्य और भाषणों ने किया है।

समकालीन परिस्थ्तिीयों में जब कि समाज के पथ प्रदर्शक का कार्य करने वाली पत्र–पत्रिकायें पथ भ्रष्ट हो चुकी हैं और पूँजीपतियों द्वारा निर्देशित हो रही हैं, कलम की वेश्यावृत्ति करने वाले लेखकों की भरमार हो रही है, जो कागज़ को मात्र काला करने का कार्य कर रहे हैं, ऐसी स्याह रात्रि में मेहनतकश अवाम और क्रान्ति के आलोकमय प्रभात में ले चलने के सच्चे वैचारिक प्रयास का नाम ही ‘आह्वान’ है।

आह्वान सृजन का संकल्प है

बीज को वृक्ष बनाने की प्रक्रिया है

ताकि सबको समान छाया मिल सके।

स्वार्णिम विहान के लिए हृदय की ज्वाला से निकले

सच्चे अर्थों में सच्चे समाज के निर्माण के लिए

वैज्ञानिक क्रान्ति का पत्र पुंज है।

प्रेम प्रकाश यादव
ए–75, जोशी कॉलोनी, इन्द्रप्रस्थ विस्तार, दिल्ली– 92

आरक्षण पर सम्पादकीय अच्छा लगा

मैं ‘आह्वान’ का नियमित पाठक हूँ और कुछ समय पहले ही मैं दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा द्वारा चलाई जा रही  स्मृति संकल्प यात्रा की मुहिम से जुड़ा हूँ। ‘आह्वान’ का पिछला अंक बेहद अच्छा लगा। ख़ास तौर पर मुझे आरक्षण पर आया सम्पादकीय मुझे काफ़ी अच्छा लगा। मार्क ट्वेन की कहानी ‘नन्ही बेस्सी’ बहुत मजे़दार लगी। अपनी एक कविता भेज रहा हूँ जिसमें मैंने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।

क्रान्ति को ला दो–––

उठते हुये शोलों को कुछ और हवा दो

जगती हैं तमन्नाएँ तो उन्हें और जगा दो

अपने लिए नहीं तो किसी और के लिए

अब इस गुलिस्तान में इक “क्रान्ति” को ला दो।

देखो नज़र उठा के तो हर ओर है मंज़िल

चलना किधर है हमको ये सोच लो अभी

जलते हुए चिराग़ की इक लौ से पूछ लो

सिमटे हुए एहसास के इक पल से पूछ लो

कुछ और न मिले तो इस मन से पूछ लो

और फिर दबे हुए अपने आत्मबल से पूछ लो

और, देखो नज़र उठा के तो हर ओर होगी मंज़िल

उन मंज़िलों पे जाके इक “क्रान्ति” को ला दो

ये सोच लो तुम्हीं हो भारत भविष्य के

ये मान लो तुम्हीं हो इक सूर्य रोशनी के

ये कौम भी आवाज़ दे रही है तुम्हीं को

ये नौजवान भारत की एक सभा है

ये नौजवान स्मृति की संकल्प यात्रा है

आज़ाद हिन्दुस्तान के, भगतसिंह के अरमान के

जन–जन में नौजवान के,

तन–मन  में इक इन्सान के

फिर “क्रान्ति” को ला दो।

किसी ने यह भी कहा है-

“मिट्टी है तो पल भर में बिखर जायेंगे हम लोग

खुशबू हैं तो हर दौर को महकायेंगे हम लोग

हम कह–ए–सफ़र हैं हमें नामों से न पहचान

कल किसी और नाम से आ जायेंगे हम लोग–”

सत्यवीर शुक्ला
बी– ए– तृतीय वर्ष
द्वारा श्री जगदीश प्रसाद शुक्ल
गाँव–सुगौना, पोस्ट–हरपुर–बुदहट
गोरखपुर

आह्वान कैम्‍पस टाइम्‍स, जुलाई-सितम्‍बर 2006

 

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