एक बग़दाद अमेरिका के भीतर…
शिशिर
कैटरीना तूफान की पहली बरसी के दिन एक दूसरे समुद्री तूफान अर्नेस्टो ने फ्लोरिडा के तट पर दस्तक दी और उसे छूकर गुजर गया। लोगों ने एक और तबाही से निपटने की तैयारी कर ली थी लेकिन सौभाग्य से यह तूफान जमीनी इलाकों में नहीं गया। इसी बीच जॉर्ज बुश ने अपनी छुट्टी से कुछ वक्त निकालकर एक सन्देश में जनता को बताया कि इस बार उनका प्रशासन तूफान से निपटने के लिए अच्छी तरह तैयार था। साथ ही, बुश ने असामान्य “ईमानदारी” के साथ यह बात मानी कि कैटरीना के वक्त उनका प्रशासन तूफान से निपटने के लिए तैयार नहीं था और उसके बाद पुनर्निर्माण के कामों में भी कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है, हालाँकि कैटरीना की तबाही के बाद एक साल बीत चुका है।
ऐसी ईमानदारी बुश आम तौर पर नहीं दिखाते हैं। लेकिन यहाँ भी उन्होंने यह ईमानदारी हृदय–परिवर्तन के कारण नहीं दिखाई है। इस ईमानदारी के पीछे तमाम कारक काम कर रहे हैं। कैटरीना का सामना करने में अमेरिकी सरकार की असफलता ने सरकार के आत्मविश्वास को भारी नुकसान पहुँचाया था। यह सच है कि अफगानिस्तान और इराक में भी बुश प्रशासन बुरी तरह नाक़ाम रहा है और उसकी वहाँ अभी भी काफी मिट्टी पलीद हो रही है। लेकिन इराक और अफगानिस्तान तो हजारों मील दूर हैं। बगदाद के बच्चों का दर्द और काबुल की औरतों का विलाप अमेरिकी जनता के लिए एक दूरस्थ यथार्थ है। और ‘इम्पीरियल एरोगेंस’ के कारण पैदा हुई असंवेदनशीलता के कारण यह चीजें वैसे भी अमेरिकी मध्यम वर्ग को कम व्यथित करती हैं। लेकिन जब बगदाद जैसी स्थितियाँ ही अमेरिका के भीतर फ्लोरिडा और न्यू ऑर्लियंस में पैदा हुईं और डूबते लोगों, मरते बच्चों और मदद की गुहार लगाते लोगों की तस्वीरें टेलीविजन स्क्रीन पर छा गईं तो अमेरिकी जनमानस पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और बुश प्रशासन की नाक़ामी पर हल्ला मचना शुरू हुआ। अगस्त में एसोसियेटेड प्रेस के जनमतसंग्रह में यह पाया गया कि 67 प्रतिशत अमेरिकी यह मानते हैं कि कैटरीना से निपटने में बुश प्रशासन पूरी तरह नाक़ाम रहा है।
एक वर्ष बीतने के बाद भी कैटरीना के कारण हुए विध्वंस के बाद पुनर्निर्माण के काम में कोई ख़ास तरक्की नहीं हुई है। साथ ही उबरने के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयासों में भ्रष्टाचार का स्तर आश्चर्यजनक है। सरकार इन चीजों से वाकिफ है और तटस्थ बनी हुई है। और तूफान से प्रभावित इलाकों में काफी कुछ वैसी ही स्थिति बनी हुई है जैसी बगदाद में है। बगदाद की तरह ही न्यू ऑर्लियंस के केवल आधे हिस्से में ही बिजली है और अपराध और हिंसा में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। आधी से भी कम आबादी अपने घरों को वापस लौटी है। बीमा कम्पनियाँ सारे वायदों से मुकर गई हैं और फ्लोरिडा प्रान्त की योजनाएँ समस्याओं से निपटने के लिए बेहद मामूली हैं और जो हैं वे भी कार्यान्वित नहीं हो रही हैं। सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचा है गरीब अश्वेत मजदूरों को, जो अभी भी बिना आसरे और भोजन की सुरक्षा के इधर–उधर भटक रहे हैं। लेकिन वहाँ मौजूद कैसीनो फिर से पूरे जोर के साथ चल रहे हैं।
जब इराक में पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ उसके कुछ समय बाद ही ये तथ्य सामने आने लगे कि इस पुनर्निर्माण में हमेशा की तरह बड़े–बड़े कारपोरेशनों के मुनाफे का पूरा इंतजाम करके रखा गया है। अरबों डॉलर के पुनर्निर्माण के ठेके बेकटेल, शॉ ग्रुप, हेलीबर्टन–केबीआर, ब्लैकवॉटर और डाइनकॉर्प जैसे विशाल कारपोरेशनों को दिये गए और उन्होंने इसमें जमकर पैसे बनाए। रीटा जे. किंग नामक एक स्वतंत्र पत्रकार ने अपनी किताब बिग, ईजी मनी में कारपोरेशनों को मिलने वाले ठेकों में होने वाली धाँधली की पोल खोली है। कॉर्पवॉच नामक एक गैर–मुनाफा संगठन ने पुनर्निर्माण में हुए ख़र्च का ब्योरा देते हुए बताया है कि अब तक अमेरिकी कांग्रेस ने इराक और अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण के काम के लिए 850 अरब डॉलर सरकारी कोष से निकाले हैं। लेकिन अब तक वहाँ जो हालत थी वह बनी हुई है। बल्कि कहना चाहिए कि हालत और ख़राब हो गई है। आश्चर्यजनक रूप से हूबहू यही बात अमेरिका में फ्लोरिडा, न्यू ऑर्लियंस, लूसियाना और मिसीसिपी में होने वाले पुनर्निर्माण के बारे में भी कही जा सकती है। वहाँ भी पुनर्निर्माण के लिए कई अरब डॉलर कोषागार से निकाले जा चुके हैं लेकिन हालात और बदतर हो गए हैं। अभी तक लाखों लोग बेघर हैं, भोजन और चिकित्सा की कोई सुरक्षा उनके पास नहीं है। बताने की जरूरत नहीं है कि इनमें से अधिकांश अश्वेत हैं।
स्वयं अमेरिकी सरकार के लेखा दफ़्तर ने कहा है कि यह खरबों डॉलर अमेरिका के सबसे बड़े कारपोरेशनों को गए हैं जो वैश्विक पुनर्निर्माण धंधे के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं और अब तक पुनर्निर्माण में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है-न मध्य–पूर्व में और न ही अमेरिका के कैटरीना–प्रभावित इलाकों में।
और तो और इन कम्पनियों के लिए और ज़्यादा मुनाफे की राह में आने वाली सभी बाधाओं को हटाने में बुश प्रशासन आश्चर्यजनक तत्परता का प्रदर्शन कर रहा है। 7 सितम्बर, 2005 को बुश प्रशासन ने सरकारी ठेकों के अन्तर्गत होने वाले काम के लिए न्यूनतम मजदूरी के लिए तय की गई सीमा को हटा दिया। नतीजतन, इन कम्पनियों के पास अब मजदूरों को बेहद कम मजदूरी पर रखने का लाइसेंस भी आ गया। इसके बाद भी इन्होंने मुश्किल से ही कोई निर्माण कार्य किया है। इसकी वजह भी इराक़ और अफगानिस्तान और अमेरिका के कैटरीना प्रभावित इलाकों में एक ही रही-बहुस्तरीय ठेका प्रणाली। एक उदाहरण से इसको समझा जा सकता है। ऐशब्रिट नामक एक कम्पनी जिसे आर्मी कॉर्प्स ऑफ इंजीनियर्स का भूतपूर्व अध्यक्ष चलाता है, को मलबा हटाने का ठेका मिला जो 5000 लाख डॉलर का था। ऐशब्रिट को प्रति यार्ड मलबे का 23 डॉलर मिलता है। इस कम्पनी ने सी एण्ड बी एंटरप्राइजेज को 9 डॉलर प्रति यार्ड पर इस काम का ठेका दिया। सी एण्ड बी ने एमली ट्रांसपोर्टेशन को 8 डॉलर प्रति यार्ड पर यह ठेका दिया। एमली ट्रांसपोर्टेशन ने क्रिस हेसलर इंक. को 7 डॉलर प्रति यार्ड पर यह ठेका दिया और इस कम्पनी ने ली नर्डलिंगर नामक कम्पनी को 3 डॉलर प्रति यार्ड की दर पर यह ठेका सौंप दिया जो काम की लागत से भी कम है। इस तरह इस पदानुक्रम में सभी के लिए ठेका पाते और उसे कम दर पर दूसरे को देते ही काम ख़त्म हो गया और अरबों डॉलर का मुनाफा भी मिल गया। इस सीढ़ी पर सबसे नीचे खड़ा ठेकेदार मजदूरों से ऐसी दरों पर काम लेता है जो जीने के लिए भी काफी नहीं है। लेकिन बढ़ती बेरोजगारी और कोई विकल्प न होने के कारण मजदूर इस दर पर काम करने को भी राजी हो जाते हैं। यह ठेका पिरामिड मजदूरों के ख़िलाफ एक युद्ध के समान है, जो अधिकांशत: अश्वेत, मुलैटो, या चिकानो हैं। कुछ ऐसी स्थिति ही बगदाद में पुनर्निर्माण में लगे मजदूरों की भी है। विशालकाय कम्पनियों ने अपने पक्ष में सरकार के निर्णयों को मोड़ा और अंधाधुंध मुनाफा पीटने का इंतजाम किया। और सरकार ने यह काम पूरी निष्ठा के साथ किया क्योंकि सरकार के तमाम मंत्री और सचिव स्वयं इन कम्पनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सदस्य हैं।
इस तरह, जहाँ तक भौतिक स्थितियों का सवाल है, न्यू ऑर्लियंस, फ्लोरिडा, मिसीसिपी और लूसियाना इराक के बगदाद और अफगानिस्तान के तमाम इलाकों से अलग नहीं है। और अगर हम नागरिकों के सिमटते अधिकारों की बात करें तो भी दुनिया का सबसे बड़ा जनतंत्र कहा जाने वाला अमेरिका उन तमाम लोगों के लिए एक घेटो या यातना शिविर जैसा है जो अश्वेत हैं, एशियाई मूल के हैं, मुलैटौ, चिकानो, अरब या मुस्लिम हैं, जो गरीब और बेरोजगार हैं और ख़ासकर वे लोग जो खुले तौर पर अमेरिकी सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं। जिस तरह पूरे इराक में एक अघोषित आपातकाल लागू हैं और सभी नागरिक अधिकार निरस्त हैं उसी तरह अमेरिका में भी इन लोगों के लिए एक अघोषित आपातकाल है और उनकी स्थिति एक दोयम दर्जे के नागरिक जैसी है। एक प्रतिष्ठित पत्रकार ने हाल ही में बताया है कि अमेरिकी प्रशासन किस तरह पत्रकारों के फोनों से होने वाली बातों को टेप करता है। एफ.बी.आई. का कोई भी अधिकारी अपने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा पत्र’ को दिखलाकर किसी भी टेलीफोन कम्पनी से किसी भी नागरिक के फोन पर होने वाली बातचीत का ब्यौरा माँग सकता है और उस टेलीफोन कम्पनी को यह ब्यौरा बिना उस नागरिक को बताए एफ.बी.आई. को देना पड़ेगा। पिछले दिनों 3800 अमेरिकी नागरिकों पर इस तरीके से नजर रखी गई। इसी से अमेरिकी जनवाद की पोल खुल जाती है जो नागरिक स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का सबसे बड़ा हिमायती माना जाता है।
जिस तरह बुश प्रशासन ने एक युद्ध इराक, अफगानिस्तान और फिलिस्तीन के करोड़ों लोगों पर थोपा है, उसी तरह उसने एक युद्ध अमेरिका के भीतर ही अमेरिकी मजदूर वर्ग और आम जनता के ख़िलाफ छेड़ रखा है, आजादी के सभी संजीदा हिमायतियों, अश्वेतों, अरब मूल के लोगों, मुलैटो और चिकानो लोगों के ख़िलाफ छेड़ रखा है। अमेरिकी साम्राज्यवाद एक ऐसी मानवद्रोही ताकत है जो सिर्फ़ मध्य–पूर्व की आम जनता को ही नहीं, बल्कि अपने देश की आम जनता को भी तबाही–बरबादी के गड्ढे में धकेल रही है। यह पूरी दुनिया को बरबाद करके अपनी विशाल पूँजी के लिए मुनाफे की चरागाह में तब्दील कर देना चाहता है। इसकी सही जगह इतिहास का कूड़ेदान है। दुनिया भर के आम मेहनतकश, छात्र और नौजवान दुनिया को वाशिंगटन डी.सी. का कूड़ाघर नहीं बनने देंगे।
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2006
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