देशद्रोही कौन ?

“जिस धरती पर हर अगले मिनट एक बच्चा भूख या बीमारी से मरता हो, वहाँ पर शासक वर्ग की दृष्टि से चीज़ों को समझने की आदत डाली जाती है। लोगों को इस दशा को एक स्वाभाविक दशा समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। लोग व्यवस्था को देशभक्ति से जोड़ लेते हैं और इस तरह से व्यवस्था का विरोधी एक देशद्रोही अथवा विदेशी एजेण्ट बन जाता है। जंगल के कानूनों को पवित्र रूप दे दिया जाता है ताकि पराजित लोग अपनी हालत को अपनी नियति समझ बैठें।”

-एदुआर्दो ग़ालियानो (उरूग्वे, लातिन अमेरिका के महान जनपक्षधर साहित्यकार)

“अगर देशप्रेम की परिभाषा सरकार की अन्धआज्ञाकारिता नहीं हो, झण्डों और राष्ट्रगानों की भक्तिभाव से पूजा करना नहीं हो; बल्कि अपने देश से, अपने साथी नागरिकों से (सारी दुनिया के) प्यार करना हो, न्याय और जनवाद के उसूलों के प्रति प्रतिबद्दता हो; तो सच्चे देशप्रेम के लिए ज़रूरी होगा कि जब हमारी सरकार इन उसूलों को तोड़े तो हम उसके हुक्म मानने से इंकार करें!”
“नागरिक अवज्ञा हमारी समस्या नहीं है। हमारी समस्या है नागरिकों की आज्ञाकारिता। हमारी समस्या है कि दुनियाभर में लोग नेताओं के तानाशाही आदेशों का पालन करते रहे हैं… और इस आज्ञाकारिता के कारण करोड़ों लोग मारे गये हैं। …हमारी समस्या यह है कि दुनियाभर में ग़रीबी, भुखमरी, अज्ञान, युद्ध और क्रूरता का सामना कर रहे लोग आज्ञाकारी बने हुए हैं। हमारी समस्या यह है कि लोग आज्ञाकारी हैं जबकि जेलें मामूली चोरों से भरी हुई हैं… बड़े चोर देश को चला रहे हैं। यही हमारी समस्या है।”

-हॉवर्ड ज़िन (1922-2010) (प्रख्यात अमेरिकी जनपक्षधर इतिहासकार)

“जब तक हिरण अपना इतिहास ख़ुद नहीं लिखेंगे तब तक हिरणों के इतिहास में शिकारियों की शौर्यगाथाएँ गायी जाती रहेंगी।”

-चिनुआ अचेबे (नाइजीरिया के जनपक्षधर साहित्यकार)

“राष्ट्र की एकता मंचों पर लम्बे-लम्बे भाषण से नहीं होगी। इसके लिए हमें ठोस काम करना होगा। वह ठोस काम यही है कि देश के भीतर धर्म और जाति-भेद ने जितनी दीवारें खड़ी की हैं, उन्हें गिरा देना। हाँ, हिन्दू, मुसलमान, इसाई, या लामज़हब होने से हमारे खान-पान, शादी-ब्याह में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर इसके लिए हमें मज़हब से भी लोहा लेने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

-महाविद्रोही राहुल संकृत्यायन

सरकार कहती है कि हमने चूहे पकड़ने के लिए चुहेदानियाँ रखी हैं। एकाध चूहेदानी की हमने भी जाँच की। उसमें घुसने के छेद से बड़ा छेद पीछे से निकलने के लिए है, चूहा इधर फँसता है और उधर से निकल जाता है।
पिंजड़े बनाने वाले और चूहे पकड़ने वाले, चूहों से मिले हैं, वे इधर हमें पिंजड़ा दिखाते हैं और उधर चूहों को छेद दिखा देते हैं।
हमारे माथे पर सिर्फ़ चूहेदानी का खर्च चढ़ रहा है।

-हरिशंकर परसाई

भगतसिंह ने कहा……… (मैं नास्तिक क्यों हूँ? लेख से)

“सब लोग अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे मुक़दमे का फ़ैसला क्या होना है। हफ्तेभर में वह सुना भी दिया जायेगा। मेरे लिए इस ख़याल के अलावा और क्या राहत हो सकती है कि मैं एक उद्देश्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने जा रहा हूँ? ईश्वर में विश्वास करने वाला हिन्दू राजा बनकर पुनर्जन्म लेने की आशा कर सकता है, मुसलमान या ईसाई जन्नत में मिलने वाले मज़े लूटने और अपनी मुसीबतों और क़ुर्बानियों के बदले इनाम हासिल करने के सपने देख सकता है। मगर मैं किस चीज़ की उम्मीद करूँ? मैं जानता हूँ कि जब मेरी गरदन में फाँसी का फन्दा डालकर मेरे पैरों के नीचे से तख़्ते खींचे जायेंगे, सबकुछ समाप्त हो जायेगा। वही मेरा अन्तिम क्षण होगा। मेरा, अथवा आध्यात्मिक शब्दावली में कहूँ तो मेरी आत्मा का, सम्पूर्ण अन्त उसी क्षण हो जायेगा। बाद के लिए कुछ नहीं रहेगा। अगर मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस है तो एक छोटा-सा संघर्षमय जीवन ही, जिसका अन्त भी कोई शानदार अन्त नहीं, अपनेआप में मेरा पुरस्कार होगा। बस और कुछ नहीं। किसी स्वार्थपूर्ण इरादे के बिना, इहलोक या परलोक में कोई पुरस्कार पाने की इच्छा के बिना, बिल्कुल अनासक्त भाव से मैंने अपना जीवन आज़ादी के उद्देश्य के लिए अर्पित किया है, क्योंकि मैं ऐसा किये बिना रह नहीं सका। जिस दिन ऐसी मानसिकता वाले बहुत से लोग हो जायेंगे जो मानव-सेवा और पीड़ित मानवता की मुक्ति को हर चीज़ से ऊपर समझ कर उसके लिए अपनेआप को अर्पित करेंगे, उसी दिन आज़ादी का युग शुरू होगा।”
पूरा लेख ‘नौजवान भारत सभा’ की वेबसाईट www.naubhas.in पर भी उपलब्ध है ।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मई-जून 2016

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