लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों ने शुरू किया छात्र माँगपत्रक आन्दोलन

लखनऊ विश्वविद्यालय में पिछले कुछ समय से प्रशासन की तानाशाही और गुण्डागर्दी के विरुद्ध छात्र छिटपुट संघर्ष करते रहे हैं। 2005 के बाद, जब से विश्वविद्यालय में छात्र संघ को निरस्त करके रखा गया है, छात्रों के पास कोई ऐसा मंच नहीं है जहाँ से वे किसी किस्म का विरोध दर्ज करा सकें या कुछ भी कह सकें। यह सच है कि किसी सही क्रान्तिकारी विकल्प के अभाव में छात्र संघ विभिन्न चुनावी पार्टियों के पिछलग्गू छात्र संगठनों का अड्डा बना हुआ था और इसलिए यहाँ अपराधीकरण, धनबल.बाहुबल की राजनीति, जातिवाद-क्षेत्रवाद की राजनीति का बोलबाला था। इससे आम छात्रों को कुछ भी नहीं मिलता था। लेकिन इन्हीं दलीलों को देते हुए छात्रसंघ को निरस्त करने के बाद अब छात्र प्रशासन की और भी ज़्यादा फासीवादी गुण्डागर्दी को झेल रहे हैं। प्रशासन के निरंकुश तन्त्र के बल पर एक ओर जहाँ फीस वृद्धि, हॉस्टल शुल्क वृद्धि करके छात्रों को कैम्पस से बाहर खदेड़ा जा रहा है, वहीं कोई भी आवाज़ उठाने पर छात्रों पर लाठियाँ बरसाई जा रही हैं।

इस निरंकुशता और प्रशासकीय तानाशाही के खि़लाफ़ ‘नयी दिशा छात्र मंच’ के रूप में विश्वविद्यालय के कुछ छात्र एक नया विकल्प खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। दिशा छात्र संगठन ने 2009 में एक बड़ा आन्दोलन कर लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रवास में मेस खुलवाने और छात्रों को साईकिल रखने की इजाज़त देने पर मजबूर कर दिया था। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय ने भयभीत होकर दिशा छात्र संगठन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। संघर्ष की उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए ‘नयी दिशा छात्र मंच’ ने छात्रों का एक माँगपत्रक तैयार किया है और इसे छात्रों के बीच ले जाया जा रहा है। इस माँगपत्रक की प्रमुख माँगें हैं. छात्र संघ को बहाल किया जाय;  विश्वविद्यालय में लगातार जारी बेतहाशा फीस वृद्धि को तत्काल रोका जाय; कैम्पस में छात्रों को परिचर्चा, विचार-विमर्श, इत्यादि कार्यक्रम करने हेतु एक कमरा उपलब्ध कराया जाय एवं कैम्पस में एक ‘वॉल ऑफ डेमोक्रेसी’ का निर्माण किया जाय, जहाँ छात्र अपनी स्वरचित रचनाएँ, पोस्टर, सूचना आदि लगा सकें;  विश्वविद्यालय के सबसे बड़े पुस्तकालय टैगोर पुस्तकालय की हालत दयनीय है, उसमें तत्काल सुधार किया जाय; छात्रवासों में ख़ाली पड़े कमरों को छात्रों को आबण्टित किया जाय;  विश्वविद्यालय के भीतर पुलिस बलों की उपस्थिति को तत्काल समाप्त किया जाय;  शोध छात्रों को फेलोशिप प्रदान की जाय;  विश्वविद्यालय प्रशासन वित्तीय पारदर्शिता का सिद्धान्त लागू करते हुए सभी छात्रों के समक्ष अपने बजट को सार्वजनिक करने की व्यवस्था करे।

‘नयी दिशा छात्र मंच’ के संयोजक शिवार्थ के अनुसार इस माँगपत्रक को लेकर संगठन के सदस्य कक्षाओं, छात्रावासों के कमरों, कैण्टीनों, व छात्रों के सभी सार्वजनिक स्थानों पर जा रहे हैं और उनसे माँगपत्रक के समर्थन में हस्ताक्षर जुटा रहे हैं। आने वाले एक महीने के भीतर करीब 3000 हस्ताक्षर जुटाकर एक ज्ञापन और माँगपत्रक कुलपति को सौंपा जायेगा और समयबद्ध रूप से इन माँगों को पूरा करने के लिए कहा जायेगा। ऐसा न होने पर छात्र अपनी जायज़ माँगों को लेकर धरना प्रदर्शन और हड़ताल भी कर सकते हैं।

जहाँ एक तरफ़ माँगपत्रक प्रशासन के लिए सिरदर्द बना हुआ है, वहीं पिछली 28 नवम्बर को लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र और नयी दिशा छात्र मंच के शिवार्थ ने छात्र संघ बहाली के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच पर याचिका दायर किये जाने के कारण प्रशासन के लिए नयी दिक्कत खड़ी हो गयी है। 2006 में लिंगदोह आयोग की सिफ़ारिशों पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए आने वाले पाँच वर्षों के भीतर छात्र संघ या इसी के समकक्ष छात्रों की कोई भी प्रतिनिधि संस्थान बहाल करने के लिए कहा था। इस लिहाज़ से 2011 में यह मियाद पहले ही पूरी हो चुकी है और अब छात्र संघ को और अधिक टालने का अर्थ होगा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर अमल न करना। स्पष्ट है कि नयी दिशा छात्र मंच के नेतृत्व में छात्रों की मुहिम से विश्वविद्यालय प्रशासन बचाव की मुद्रा में आ गया है। लेकिन यह संघर्ष की शुरुआत भर है। शिवार्थ ने बताया कि जब तक छात्रों की जायज़ माँगें पूरी नहीं हो जातीं, यह संघर्ष जारी रहेगा।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, नवम्‍बर-दिसम्‍बर 2011

 

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