खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, मुद्दे पर ‘चिन्तन विचार मंच’ द्वारा परिसंवाद का आयोजन

‘खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेशः पक्ष, विपक्ष और तीसरा पक्ष’ पर ‘चिन्तन विचार मंच’ द्वारा परिसंवाद का आयोजन किया गया। ‘चिन्तन विचार मंच’ द्वारा किया गया यह दूसरा आयोजन था। इस आयोजन में विभिन्न कॉलेजों के छात्र-छात्राएँ, शिक्षक, कर्मचारी व नागरिक आदि शामिल हुए।

परिसंवाद की शुरुआत करते हुए ‘नयी दिशा छात्र मंच’ के शिवार्थ ने कहा कि संप्रग सरकार ने हाल ही में खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रस्ताव संसद में पेश किया था, जिसका भाजपा से लेकर सभी विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया। इस विरोध में संसदीय वामपन्थी व सी.पी.आई.(एम.एल.) भी शामिल था। तमाम अखबारों, टी.वी. चैनलों पर इस मुद्दे का काफी गर्मागर्म बहसे भी हुई, जिसमें व्यापारिक संगठनों के पदाधिकारियों से लेकर आर्थिक मामलों के जानकार भी शामिल हुए। इस मुद्दे पर मुख्य चर्चाओं से इतर भी कुछ लोग सोच रहे हैं। जिसे साझा करने के लिए, एक राय कायम करने के लिए इस विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया है।

परिसंवाद में हस्तक्षेप करते हुए कथाकार प्रताप दीक्षित ने कहा कि 20 वर्षों से जारी निजीकरण-उदारीकरण की प्रक्रिया का एक और बढ़ा हुआ कदम होगा खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। सत्ता में चाहे कोई पार्टी आये, वह भारतीय मार्केट में निवेश को बढ़ावा देगी। अब ऐसी स्थिति तैयार की जा रही है कि देशी व विदेशी दोनों लूटे-खायें। सवाल आज पूरी व्यवस्था पर खड़ा हो रहा है। व्यवस्था परिवर्तन के बिना देशी-विदेशी पूँजीपतियों की लूट खत्म नहीं होगी। इसके बाद शिक्षक एवं लेखक एस.के.पंजम ने कहा कि जोंको का गुण होता है खून चूसना, वे देशी हों या विदेशी वे जनता का खून चूसेंगी जरूर। बी.बी.डी. इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्रा नीलम ने देशी पूँजी के पक्ष में बात रखते हुए कहा कि एक ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत आकर यहाँ की धन-दौलत की अकूत लूट की, अब सारे विदेशी भारत क्यों आना चाहते हैं। उन्होंने विदेशी पूँजी की मंशा पर सवाल खड़ा करने के साथ स्वदेशी का समर्थन किया। परिसंवाद में ‘नौजवान भारत सभा’ के आशीष ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हम खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विरोध कर रहे हैं लेकिन यह विरोध किस जमीन पर खड़े होकर किया जा रहा है यह देखना बहुत महत्वपूर्ण है।

भाजपा बहुत जोर से इसका विरोध कर रही है पर यह वही भाजपा पार्टी है, जिसने सन् 2002 में खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने की बात कही थी, और 2004 में अपने चुनावी घोषणापत्र में उसे लिखा भी। अब जब उन पर सवाल उठ रहे हैं तो भाजपा कह रही है कि यह तो गलती से हो गया था। यह है थूककर चाटने वाली बात। इनका विरोध दो कारणों से है। पहला कि इस पार्टी का मुख्य आधार खुदरा व्यापार में लगे अथवा मध्यम पूँजी के व्यापारियों में है। दूसरा पाँच राज्यों में होने वाला विधानसभा चुनाव। आज इस मुद्दे या इस तरह के कई मुद्दों पर दक्षिणपन्थी और संसदीय वामपन्थी एक मंच पर नज़र आ रहे हैं तो आश्चर्य की बात नहीं। ये पार्टियाँ उस वक़्त ऐसा क्यों नहीं कर रही थी जब देश की बड़ी पूँजी यहाँ के खुदरा व्यापार में आकर छोटी पूँजी को तबाह कर रही थी। यदि भाजपा सत्ता में आयेगी तो वह बड़ी पूँजी की ही सेवा करेगी छोटी पूँजी की नहीं। संसदीय वामपन्थी और सी.पी.आई.(एम.एल.) लिबरेशन जैसी पार्टियाँ छद्म राष्टवाद की जमीन पर खड़े होकर विरोध कर रहे हैं। जिससे जनता के बीच यह भ्रम पैदा होगा कि इसी व्यवस्था में हमें रहकर लड़ना है इसके परे नहीं। व्यापार कर विभाग के लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी ने कहा कि मैं एक उपभोक्ता के नजरिये से सरकार के इस प्रस्ताव के पक्ष में हूँ। इससे कोई भी एक जगह पर सस्ती व अच्छी चीजें प्राप्त कर सकेगा। वरिष्ठ नागरिक रामसरन ने कहा कि मैं सरकार के इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हूँ। उन्होंने कहा कि भारतीय बाज़ार एफ.डी.आई. के अनुकूल नहीं है। हमारे देश में मार्केट में व्याप्त भ्रष्टाचार (जमाखोरी, घटतौली आदि) को अच्छे कानून को लागू करके दूर किया जाये। ‘स्टूडेण्ट फेडरेशन ऑफ इण्डिया’ के प्रवीण ने कहा कि सरकार जो यह कह रही है विदेशी निवेश होने से रोज़गार बढ़ेगा वह केवल नाम मात्रा का ही होगा इसके उलट खुदरा व्यापार में लगी 4 करोड़ की आबादी बेरोज़गार हो जायेगी। प्रवीण ने कहा कि जहाँ तक अच्छे व सच्चे माल मिलने की बात है उसमें होगा यह कुछ समय तक विदेशी कम्पनियाँ भले ही ऐसा करें, लेकिन जब वे भारत के बाज़ार पर मोनोपोली कर लेगीं तो वे उत्पादकों व उपभोक्ताओं को अपनी शर्तों पर चलने को मजबूर कर देंगी। आज हम उजड़ने वाले या भविष्य में उजड़ने वाले लोगों के बीच मुनाफ़ाखोर व्यवस्था को बेनकाब करने का व इसका विकल्प देने की बात नहीं करेंगे बल्कि हम उनके संघर्षों में उनके साथ खड़े होंगे। हमें देशी व विदेशी पूँजी के अन्तरविरोध को तीखा करने के लिए प्रयास करना चाहिए। प्रवीण की बात पर शिवार्थ ने कहा कि यही तर्क सारे संसदीय वामपन्थी भी दे रही है। यह मार्क्‍सवादी नजरिये के खि़लाफ़ है। ये पार्टियाँ गेहुँअन साँप जैसी हैं। इनसे आम जनता को भारी नुकसान होगा। ये संसदीय वामपन्थी रिलायंस, बिग एप्पल जैसी देशी बड़ी पूँजी की मुख़ालफ़त नहीं करती या दिखाने भर को करती हैं और विदेशी पूँजी के विरोध में अगिया-बैताल जैसे रुख दिखाती हैं। क्योंकि इनका वर्ग आधार भी टुटपुँजिया पूँजीपति वर्ग है, जो कि उनसे ज़्यादा भरोसा वह भाजपा जैसी पार्टियों पर करता है। उन्होंने आगे कहा कि वैसे तो एकल ब्राण्ड कम्पनी के लिए खुदरा व्यापार में 54 प्रतिशत की छूट सरकार पहले ही दे चुकी है जिसे बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का विचार सरकार कर रही है और भी कई तरीकों से विदेशी पूँजी भारत के खुदरा व्यापार में काम कर रही है। शिवार्थ ने आगे कहा कि पूँजी की गति का नियम है कि बड़ी पूँजी छोटी पूँजी को निगल जायेगी। हम भी सरकार के प्रस्ताव का विरोध करेंगे और उजड़ती आबादी के संघर्ष में साथ देंगे परन्तु उन्हें इस भ्रम में नहीं रखेंगे कि इस लड़ाई से उनकी तबाही रूक जायेगी। उन्हें फलने-फूलने का मौका यह मुनाफ़ाखोर व्यवस्था देने से रही। उन्हें यह भी बतायेंगे कि निजी सम्पत्ति पर आधारित, मुनाफ़ाखोर व्यवस्था को बदल करके जबतक जनता के सामूहिक मालिकाने की व्यवस्था कायम नहीं होगी तब तक छोटी पूँजी के मालिक हो या ग़रीब किसान, मज़दूर उनकी तबाही नहीं रुकेगी। परिसंवाद में लालचन्द्र, पंकज, आशुतोष व मेडिकल कॉलेज के छात्र मानवेन्द्र आदि लोगों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2012

 

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