पाठक मंच
‘आह्वान’ को देश के कोने-कोने में और हर भारतीय भाषा में उपलब्ध कराना चाहिए
कुछ दिनों पूर्व मैं अपने एक मित्र के यहाँ गया था। उसके कमरे में मुझे आपकी पत्रिका की प्रतियाँ मिली। पढ़ने के पश्चात महसूस हुआ कि यह पत्रिका जिस तरह से देश हित में अपने विचारों से जन सामान्य को जागरूक करने की क्षमता रखती है, उस हिसाब से इसका प्रसार बहुत कम है। मेरी इच्छा है कि एक संयुक्त प्रयास के तहत इस पत्रिका को देश के कोने-कोने में और सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाये। देश की आज़ादी के 67 वर्ष होने को हैं लेकिन आज भी हमारी आबादी का एक बड़ा तबका विकास से कोसों दूर है। पूँजीवादी व्यवस्था ने देश को अपने चंगुल में जकड़ लिया है। जिन नेताओं की ज़िम्मेदारी देश को सही नेतृत्व प्रदान करने की है वे भ्रष्टाचार और अपराध में संलिप्त हैं। लोकतंत्र के सभी स्तम्भों में भ्रष्टाचार रूपी दीमक लग चुकी है। पत्रकारिता जो एक समय समाज के हित में काम करती थी, आज पूँजीपतियों की रखैल है। आज देश हित में ज़रूरत है कि हम पूँजीवाद, धार्मिक फ़ासीवाद, सामाजिक कुरीतियों और शोषण का विरोध करें और उनके कुकर्मों से जन-सामान्य को अवगत करायें जिससे देश के कोने-कोने में जागरुकता, विकास की बयार और समानता का अधिकार फैले। हम आशा करते हैं कि यह पत्रिका अपने उद्देश्य में सफल होगी। महोदय, मैं विदेशी भाषाओं का छात्र हूँ और चाहता हूँ कि मैं भी अपनी क्षमतानुसार इस पत्रिका के लिए कुछ काम करूँ। इसके लिए मैं रूसी एवं अन्य विदेशी भाषाओं से तमाम प्रगतिशील और क्रान्तिकारी कविताओं को अनुवादित करके आपकी पत्रिका के माध्यम से भारतीय पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करूँगा।
आपका शुभाकांक्षी – गौतम कश्यप,
छात्र, स्लावियाई एवं फिन्नो-उग्रियाई अध्ययन विभाग,
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
आह्वान के पिछले दोनों विशेषांक बहुमूल्य और उपयोगी सामग्री उपलब्ध कराते हैं
मैं काफी समय से ‘आह्वान’ का नियमित पाठक हूँ। पत्रिका के पिछले दोनों विशेषांक – फासीवाद-विरोधी अंक और मीडिया पर केन्द्रित अंक – बहुत ही उपयोगी और बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं। इन विषयों पर एक साथ इतनी विचारोत्तेजक और सूझबूझ भरे गहन विश्लेषण से भरी सामग्री एक साथ नहीं मिलती। आजकल हर विषय के जिस तरह से सरलीकृत विश्लेषणों का दौर है, उससे हटकर ‘आह्वान’ के लेख ठहरकर सोचने और गहराई में जाकर चीज़ों को समझने के लिए प्रेरित करते हैं। मुझे हैरानी होती है कि जहाँ सतही सामग्री वाली पत्रिकाओं का भी बाज़ार गर्म है, वहाँ इस पत्रिका की उचित चर्चा क्यों नहीं की जाती। आप लोगों को इसका दायरा और व्यापक बनाने के बारे में सक्रिय प्रयास करने चाहिए। मुझसे जो भी सहयोग बन पड़ेगा वह मैं करने के लिए तैयार हूँ।
रमेश दासू, चाईबासा, झारखण्ड
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2014
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!