चिनुआ अचेबे को श्रृद्धांजलि

Chinua-Achebeअफ्रीकी साहित्य में नये यथार्थवाद की अभिव्यक्ति और लेखन में एक नये चलन की शुरुआत करनेवाले जनपक्षधर साहित्यकार चिनुआ अचेबे का निधन गत वर्ष 21 मार्च 2013 को हो गया था। इस वर्ष उनकी पहली पुण्यतिथि पर हम उन्हें याद कर रहे हैं। चिनुआ अचेबे का जन्म पूर्वी नाइजीरिया में 16 नवम्बर 1930 को एक चर्च के प्रचारक परिवार में हुआ। अपने लेखन के ज़रिये उन्होंने साम्राज्यवाद का विरोध किया और अफ्रीकी जनता की संस्कृति को अभिव्यक्ति दी।

1940 के दशक के अन्तिम वर्षों में साहित्य और कला के छात्र के रूप में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य का गहन अध्ययन किया। उन्होंने अपनी मातृभाषा इगबो में साहित्य रचना करने की बजाय अंग्रेज़ी को चुना और पश्चिमी लेखन-शैली का प्रयोग किया। भाषा के प्रश्न पर उनका मानना था कि साम्राज्यवाद ने जिस तरह दो सभ्यताओं की टकराहट पैदा कर दी है, उसे कलात्मक अभिव्यक्ति देने के लिए अंग्रेज़ी में लिखा जाना चाहिए। अन्य अफ्रीकी लेखकों जैसे न्गुगी वा थ्योंगो का कहना था कि इससे वे सिर्फ़ एक ख़ास पाठक समुदाय तक ही पहुँच सके हैं। एक बड़ी आबादी जो मेहनत-मशक्कत से गुज़र-बसर करती है, उसकी पहुँच चिनुआ अचेबे तक नहीं है। चिनुआ अचेबे का पहला उपन्यास ‘थिंग्स फ़ॉल अपार्ट’ 1958 में प्रकाशित हुआ। उनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं – नो लांगर ऐट इज़, ऐरो ऑफ़ गॉड, अ मैन ऑफ़ द पिपुल, गर्ल्स ऑन वॉर एण्ड अदर शॉर्ट स्टोरीज। उन्हें मैन बुकर पुरस्कार 2007 में दिया गया।

बकौल चिनुआ अचेबे उन्होंने अपने लेखन के ज़रिये अफ्रीका की सांस्कृतिक विभिन्नताओं को इसलिए चित्रित किया, क्योंकि उसकी मौजूदगी को विदेशी साम्राज्यवादी शक्तियों के बरक्स दिखाया जा सके। अपने एक निबन्ध ‘द रोल ऑफ़ ए राइटर इन न्यू नेशन’ में उन्होंने ज़ोर दिया कि दुनिया को इस बात का एहसास दिलाना ज़रूरी है कि अफ्रीकियों के पास भी अपनी सभ्यता-संस्कृति है। हालाँकि उनके लेखन में और विचारों में कई जगह विरोधाभास मिलते हैं, लेकिन सत्तावाद और निरंकुशता का विरोध और जनपक्षधरता उनकी विशेषता रही। आह्वान की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि!

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-अप्रैल 2014

 

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