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इराक से अमेरिका की वापसी के निहितार्थ

अभिनव

31 अगस्त को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एलान किया कि इराक में अमेरिका का मिशन पूरा हो गया है। ‘मिशन इराकी फ्रीडम’ अब ख़त्म हो गया है और देश की सुरक्षा और व्यवस्था की जिम्मेदारी अब मुख्य रूप से इराकी जनता के हाथों में होगी। मीडिया में इस भाषण को इराक पर अमेरिकी कब्ज़े के अन्त के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन वास्तविकता क्या है यह तथ्यों को थोड़ा गहराई से देखने पर समझ में आता है।

31 अगस्त को ओबामा द्वारा उसके ओवल ऑफिस से की गयी घोषणा के बावजूद सच्चाई यह है कि 50,000 से ज़्यादा अमेरिकी सैनिक इस समय भी इराक में हैं और अभी काफी समय तक मौजूद रहेंगे। ये सैनिक इराक के बड़े और प्रमुख शहरों में स्थित पाँच दैत्याकार सैन्य अड्डों पर रहेंगे। बग़दाद में अमेरिका का दूतावास आश्चर्यजनक रूप से विशाल है। इसके बारे में एक अमेरिकी सैन्य अधिकारी ने ही शेख़ी बघारते हुए कहा था कि अन्तरिक्ष से पृथ्वी की जिन मानव-निर्मित संरचनाओं को देखा जा सकता है, उनमें से बग़दाद में अमेरिकी दूतावास एक है। इस दूतावास की सुरक्षा में 24 ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टर और 50 बमरोधी वाहन और हज़ारों अमेरिकी और इराकी सैनिक 24 घण्टे लगे रहते हैं।

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ओबामा ने अपने भाषण में कहा कि जो अमेरिकी सैनिक अभी भी इराक में हैं वे इराकी बलों को ‘‘सुझाव और सहायता’‘ देने के लिए हैं। लेकिन एक हफ्ता भी नहीं बीता था कि अमेरिकी सैनिकों ने इराकी विद्रोहियों पर हमला किया और उसके बाद भी इराकी जनता के प्रतिरोध को कुचलने की हर सम्भव कोशिश अमेरिकी सैन्य-शक्ति इराक में कर रही है। दरअसल, इराक में मौजूद अमेरिकी सैनिकों में से 4,500 सीधे-सीधे सैन्य कार्रवाइयों में हिस्सा लेने के लिए हैं। दरअसल, ओबामा की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद इराक में अमेरिकी सेना के प्रवक्ता ने कहा कि श्रीमान राष्ट्रपति की घोषणा के बावजूद इराक में व्यावहारिक तौर पर बहुत कुछ बदलने नहीं जा रहा है।

जितने सैनिकों को इराक से वापस बुलाया गया है, उसके भी कुछ विशेष कारण थे। एक कारण तो यह था कि इराक युद्ध अमेरिकी जनता के बीच बेहद अलोकप्रिय हो चुका था और ओबामा के सत्ता में आने का एक कारण इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका का विनाशकारी उलझाव भी था। वास्तव में ओबामा ने ख़ुद कहा था कि इराक युद्ध “मुर्खतापूर्ण’‘ है। लेकिन ज़रा सुनिये कि उन्होंने 31 अगस्त को क्या कहा! ओबामा ने कहा कि वियतनाम और इराक में अमेरिका ने जनता को मुक्त करने के लिए युद्ध किया। यह नायकत्वपूर्ण युद्ध था और अमेरिकी सैनिकों ने इसमें शानदार बहादुरी का प्रदर्शन किया। वास्तव में इराक युद्ध अमेरिका के लिए बेहद ख़र्चीला भी साबित हो रहा था और अमेरिकी संकट के तात्कालिक कारणों में से एक इराक युद्ध भी था, हालाँकि लम्बी दूरी में ऐसे सभी युद्ध साम्राज्यवाद को अपने आर्थिक संकट से निपटने में मदद करते हैं। जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ के अनुसार इराक युद्ध की लागत 3 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक हो चुकी है। इराक युद्ध के कारण 2003 में 140 डॉलर प्रति बैरल बिकने वाला कच्चा तेल अब 400 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक कीमत पर बिक रहा है, जिसकी कीमत सारी दुनिया की ग़रीब जनता चुका रही है।

लेकिन इससे भी बड़ा कारण यह था कि इराक युद्ध में अभी तक करीब 6000 अमेरिकी सैनिक मारे जा चुके हैं; हज़ारों विकलांग हो चुके हैं; मानसिक रूप से बीमार हो चुके सिपाहियों की कोई गिनती नहीं है; इराक से वापस आने वाले करीब 300 सिपाही आत्महत्या कर चुके हैं। ये सारे कारक अमेरिकी सत्ता पर भयंकर दबाव बना रहे थे और इराक युद्ध में उनका जीतना सम्भव नहीं था, यह बात अमेरिकी शासकों की समझ में आ चुकी थी। याद करें कि अमेरिका ने इराक पर हमले के समय कहा था कि वह मध्य-पूर्व का नक्शा बदल देगा। इसका अर्थ क्या था, यह भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिण्टन के एक बयान से आप समझ सकते हैं। क्लिण्टन में हाल ही में बताया कि अमेरिका की योजना इराक पर कब्ज़े के बाद सीरिया और ईरान में सत्ता परिवर्तन की थी, ताकि मध्य-पूर्व पर हर प्रकार का आर्थिक और राजनीतिक नियन्त्रण स्थापित किया जाये। लेकिन इराक में ही अमेरिका के लिए जीना मुश्किल हो गया और उसे एक तरह से वहाँ से भागना पड़ रहा है। लेकिन इसके पहले वह हर तरह से सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि इराक में उसके साम्राज्यवादी आर्थिक हित सुरक्षित रहें। इसलिए वह अपने किसी पसन्दीदा शासक को गद्दी पर बिठाने की कोशिश में लगा है। लेकिन आखि़री चुनावों में लटकी हुई संसद अस्तित्व में आयी और लम्बे इन्तज़ार के बावजूद अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है। लोग यह भी कयास लगाने लगे हैं कि कोई हल न निकलने की सूरत में अमेरिकी शह पर सेना तख़्तापलट कर सकती है और एक सैन्य तानाशाही अस्तित्व में आ सकती है।

ओबामा ने अपने भाषण में अप्रत्यक्ष रूप से बुश की प्रशंसा भी की और कहा कि बुश द्वारा इराक में किये गये ‘‘सैन्य उभार’‘ ने इराकी प्रतिरोध को कम किया और इराक को स्थिर किया। लेकिन यह किस प्रकार हुआ यह देखना दिलचस्प होगा। इराक युद्ध के बाद पुनर्निर्माण के नाम पर करोड़ों डॉलर के ठेके अमेरिकी कम्पनियों को दिये गये जिसमें डिक चेनी की कम्पनी भी शामिल थी, जो कि बुश का सहयोगी और उपराष्ट्रपति था। इसके अलावा, इराक की तेल सम्पदा की अमेरिकियों ने ज़बर्दस्त लूट मचायी। अमेरिका अभी भी करीब 8.7 अरब डॉलर के इराकी तेल का कोई हिसाब नहीं दे पाया है। यह अमेरिका के लोकतन्त्र की स्थापना का अपना ‘स्टाइल’ है!

आश्चर्य की बात नहीं है कि ओबामा ने अपने भाषण में एक जगह भी इराकियों के दुख-दर्द के बारे में कुछ नहीं कहा। इसके लिए इराकियों से कभी माफी नहीं माँगी गयी कि इराकी जनता के 10 लाख से भी अधिक लोगों की इस साम्राज्यवादी युद्ध में हत्या कर दी गयी; इराक की पूरी अवसंरचना को नष्ट कर दिया गया; इराकी अर्थव्यवस्था की कमर टूट गयी, जो वास्तव में दुनिया के सबसे समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं में से हुआ करती थी; आज इराक के बड़े हिस्सों में बिजली और पीने का पानी तक मयस्सर नहीं है; बेरोज़गारी आसमान छू रही है और जनता के पास शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं हैं। आज के इराक को देखकर कोई अन्धा भी बता सकता है कि सद्दाम हुसैन के शासन के अन्तर्गत वह कहीं बेहतर स्थिति में था।

सद्दाम हुसैन निश्चित रूप से एक तानाशाह था और उसके शासन में कुर्दों, शियाओं और कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी ताकतों पर अकथनीय अत्याचार किये गये। लेकिन कौन इस बात को भूल सकता है कि यह वह दौर था जब सद्दाम हुसैन ईरान के खि़लाफ अमेरिका का मित्र हुआ करता था? कौन भूल सकता है कि ईरान के साथ दस वर्ष के युद्ध के दौरान इराक को हथियारों की आपूर्ति अमेरिका से हो रही थी? कौन भूल सकता है कि कुर्दों और शियाओं पर सद्दाम के आदेश पर चलने वाली गोलियाँ वास्तव में अमेरिकी थीं? उस समय भी सद्दाम हुसैन अमेरिका के दोस्त थे। यह सच है कि सद्दाम हुसैन की बाथ पार्टी ने इराक में धार्मिक कट्टरपन्थ पर हमला किया, इराक का आधुनिकीकरण किया और कई अन्य प्रगतिशील कार्य किये। लेकिन सद्दाम ने जो कुछ भी प्रगतिशील किया उसमें कुछ भी अमेरिकी नहीं था, और जो कुछ भी तानाशाहीपूर्ण किया उसमें लगभग सबकुछ अमेरिकी था।

सद्दाम हुसैन के शासन के तहत कम से कम इराकियों को राशनिंग व्यवस्था के जरिये बुनियादी खाद्य सामग्री; सुलभ उपलब्ध शिक्षा और चिकित्सा; बिजली और पानी उपलब्ध था। स्त्रियाँ बाथ पार्टी के शासन को सबसे अधिक याद करती हैं क्योंकि इस दौरान उन्हें हर वह अधिकार प्राप्त था जो पश्चिम में महिलाओं को हासिल है। अमेरिकी कब्ज़े के बाद साम्राज्यवाद की कठपुतलियों ने स्त्रियों को इस्लामी शासन के अधीन कर दिया है। 1996 में सामान्य इराकी जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष थी जो 2007 में घटकर 67 वर्ष रह गयी; अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार करीब 5 लाख इराकी बच्चे युद्ध से सदमे में हैं; युद्ध शुरू होने के बाद करीब 40 लाख इराकी विस्थापित हो चुके हैं जिनमें से करीब आधे इराक छोड़ने को मजबूर हो गये हैं; इराक पर अमेरिकी कब्ज़े के दौरान सुन्नियों, शियाओं और कुर्दों के बीच टकराव लगातार बढ़ता गया है और धार्मिक कट्टरपन्थ में तीव्र बढ़ोत्तरी हुई है; हर महीने औसतन 300 इराकी मारे जाते हैं।

यह साम्राज्यवादी अन्धेरगर्दी, लफ्फाज़ी और बेशर्मी की इन्तहाँ है कि अमेरिका का राष्ट्रपति मंच से बोलता है कि इराकी जनता को मुक्त कर दिया गया है और वहाँ लोकतन्त्र की बहाली कर दी गयी है। यह अपना गन्दा और घायल चेहरा छिपाने के लिए दिया गया कथन मालूम पड़ता है। इराकी जनता ने भारी कुर्बानियों के बावजूद साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक नायकत्वपूर्ण संघर्ष किया और अमेरिकी सैन्य शक्तिमत्ता के सामने घुटने नहीं टेके। और अन्ततः उन्होंने अमेरिकियों को अपने नापाक इरादे पूरे किये बग़ैर अपने देश से भगाने में सफलता हासिल करनी भी शुरू कर दी है। यह सच है कि इस थोपे गये साम्राज्यवादी युद्ध ने इराक को तबाह करके रख दिया है। इराक आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से बिखरी हुई स्थिति में है। लेकिन इराकी जनता ने यह साबित कर दिया है कि साम्राज्यवादी शक्ति के समक्ष कोई क्रान्तिकारी विकल्प न होने की सूरत में अगर जनता जीत नहीं सकती तो वह साम्राज्यवादी शक्तियों से हार भी नहीं मानती है।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अक्‍टूबर 2010

 

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