जनता का इतिहास लेखक : हावर्ड ज़िन

इतिहास का निर्माण जनता करती है लेकिन स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में पढ़ायी जाने वाली इतिहास की किताबों में जनता की भूमिका प्राय: नदारद रहती है। शासक वर्ग हमेशा अपने नज़रिये से इतिहास लिखवाने की कोशिश करते हैं और उसे ही प्रचलित और स्वीकार्य बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। जनता के पक्ष से लिखी गयी इतिहास की पुस्तकें अक्सर एक छोटे दायरे तक सीमित रह जाती हैं। लेकिन कुछ इतिहासकार इस दायरे को तोड़कर इतिहास की जनपरक व्याख्या को पाठकों के बहुत बड़े समुदाय तक ले जाने में सफल रहे हैं। हावर्ड ज़िन, जिनका इसी वर्ष 27 जनवरी को निधन हो गया, इन्हीं में से एक थे।

Howard_Zinn

हावर्ड ज़िन की किताब ‘ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स’ (अमेरिका का जन इतिहास) को दुनियाभर में दसियों लाख लोगों ने पढ़ा और इसने ज़बर्दस्त राजनीतिक और बौद्धिक असर छोड़ा।

हावर्ड ज़िन महज़ एक इतिहासकार ही नहीं बल्कि प्रबल जनपक्षधर लेखक, नाटककार, फिल्मकार और एक्टिविस्ट भी थे। उनका लेखन और पूँजीवाद तथा साम्राज्यवाद के प्रति उनका आजीवन सक्रिय विरोध दुनियाभर में बुद्धिजीवियों तथा मानव मुक्ति के संघर्ष में लगे लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

उनका जन्म अमेरिका के ब्रुकलिन में 1922 में हुआ था। उनके माता–पिता दोनों ही कारखानों में काम करने वाले मज़दूर थे। जिस दौर में उन्होंने किशोरवस्था में कदम रखा वह महामन्दी और व्यापक मज़दूर आन्दोलन का दौर था। एक मज़दूर रैली में पड़ी पुलिस की लाठी की चोट और उनके पिता द्वारा भेंट की गयी चार्ल्स डिकेंस की किताबों ने उन पर गहरा असर डाला। दूसरे विश्वयुद्ध में ज़िन ने बमवर्षक विमान के पायलट के तौर पर हिस्सा लिया। युद्ध के अन्तिम दिनों में उनके विमान ने फ्रांस के एक शहर पर नापाम बम गिराया। यह इस घातक रसायन का पहला सैन्य इस्तेमाल था। अमेरिका विश्वयुद्ध के बहाने इस नये हथियार को परखना चाहता था। बम से बहुत से जर्मन सैनिक और करीब 1000 फ्रांसीसी नागरिक मारे गये। इस घटना ने उनके दिलो–दिमाग को झकझोरकर रख दिया और उन्हें साम्राज्यवादी युद्ध का कट्टर विरोधी बना दिया। वियतनाम युद्ध का उन्होंने पुरज़ोर विरोध किया और इराक पर अमेरिकी हमले के खिलाफ लिखने और बोलने के साथ–साथ सड़कों पर उतरे।

नागरिक अधिकार आन्दोलन के मुखर समर्थन के चलते ज़िन को अपनी पहली अकादमिक नौकरी से हाथ धोना पड़ा। 1963 में उन्हें अश्वेत लड़कियों के स्कूल में शिक्षक की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में वे बोस्टन युनिवर्सिटी से जुड़े और 1988 में रिटायर होने तक वहाँ पढ़ाते रहे।

इतिहासकार के रूप में हावर्ड ज़िन ने पाँच दशकों के दौरान अनेक पुस्तकें, निबन्ध और लेख लिखे। लेकिन उन्हें सबसे अधिक प्रसिद्धि मिली 1980 में प्रकाशित ‘ए पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स’ से। अब तक इस किताब की 20 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इस किताब में ज़िन ने सीधी–सादी और आम लोगों के दिलों को छूने वाली भाषा में अमेरिका के इतिहास के उन पहलुओं को लाखों पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जो उस आधिकारिक इतिहास में कभी बताये नहीं जाते, जिसमें अमेरिका की राजनीतिक और आर्थिक सत्ता पर काबिज़ अभिजात वर्गों की कोई आलोचना नहीं होती।

ज़िन ने अमेरिका के सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा मुनाफे के लिए मचायी गयी लूट और बर्बरता का पर्दाफाश किया और अमेरिकी इतिहास में उत्पीड़ित वर्गों – मज़दूरों, ग़रीबों, मूल निवासियों, काले लोगों, स्त्रियों और प्रवासी मेहनतकशों के राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों को किताब के पन्नों पर जीवन्त कर दिया। उन्होंने उत्पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति को छिपाया नहीं। वे कहते थे, ‘‘टकरावों से भरी ऐसी दुनिया में, शिकार होने वालों और वधिकों की दुनिया में, सोचने वाले लोगों का फर्ज़ है कि वे, अल्बेयर कामू के शब्दों में, वधिकों के पक्ष में न खड़े हों।’’

उनकी किताब की शुरुआत 1492 में क्रिस्टोफर कोलम्बस के अमेरिका में आगमन और मूल निवासियों के बर्बर जनसंहार से होती है। अगले अध्यायों में ज़िन विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों से गुज़रते हुए अमेरिकी इतिहास का ब्योरा प्रस्तुत करते हैं। पुस्तक के अन्तिम अध्याय में वे भविष्यवाणी करते हैं कि अन्तत: मज़दूरों की बग़ावत शासक वर्गों की जकड़बन्दी को उखाड़ फेंकेगी। वे बताते हैं कि अमेरिका और दुनियाभर के प्राकृतिक संसाधनों तथा श्रमशक्ति की लूट की बदौलत समाज के एक हिस्से को छोटे–छोटे टुकड़े फेंककर शासक वर्गों ने अपने प्रति वफादार एक बड़ा वर्ग पैदा कर लिया है। सैनिक और पुलिस, शिक्षक और पत्रकार, प्रशासक और सामाजिक कार्यकर्ता, तकनीकी और वैज्ञानिक कर्मचारी, डॉक्टर, वकील, कारखानों के मज़दूरों की अच्छी तनख्वाह पाने वाली आबादी आदि एक बहुत बड़ी जमात ऐसे लोगों की है जो इस व्यवस्था को टिकाये रखने में मदद करते हैं और उपरी जमातों तथा सबसे उत्पीड़ित निचले वर्गों के बीच बफर का काम करते हैं।

हावर्ड ज़िन के इतिहास लेखन की अपनी कमज़ोरियाँ भी हैं। प्राय: वे इतिहास लेखन की वैज्ञानिक भौतिकवादी पद्धति के बजाय अनुभववादी पद्धति का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान यह है कि वे अमेरिकी शासक वर्गों के अपराधों का पर्दाफाश करते हैं, उत्पीड़ित वर्गों के प्रतिरोध का ब्योरा देते हैं और इतिहास को आगे ले जाने वाली शक्ति के रूप में मज़दूर वर्ग की सही–सही शिनाख़्त करते हैं।

आह्वान’ के पाठकों के लिए हम यहाँ उनके एक अप्रकाशित साक्षात्कार के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहे हैं।

सम्पादक

‘‘शिक्षा सबसे समृद्ध और सजीव तब होती है जब वह विश्व के नैतिक संघर्ष की वास्तविकता का सामना करती है’’

हावर्ड ज़िन का एक अप्रकाशित साक्षात्कार
अनुवादः जयपुष्प

अपनी आने वाली किताब ‘पोलिटिकल अवेकनिंग्सः कन्वर्सेशन्स विद ट्वेंटी ऑफ द वर्ल्ड्स मोस्ट इन्फ्लुएंशियल राइटर्स, पॉलिटिशियन्स एंड एक्टिविस्ट्स’ (राजनीतिक तौर पर जागृत होना: विश्व के बीस सबसे प्रभावशाली लेखकों, राजनीतिज्ञों, और कार्यकर्ताओं से बातचीत) के लिए हैरी क्राइस्लर ने इतिहासकार हावर्ड जिन के साथ यह बातचीत की थी। 2001 में किये गये एक साक्षात्कार के इन अंशों में जिन एक रैडिकल चिन्तक के रूप में अपने विकास के बारे में बताते हैं।

हैरी क्राइस्लर: कॉलेज जाने से पहले, आप गोदी में काम करते थे और टाइम्स स्क्वेयर पर होने वाले एक विरोध प्रदर्शन में आप शामिल हुए थे जिस पर पुलिस ने आक्रमण कर दिया था। जिन घटनाओं ने आपकी सोच बदल दी, यह उनमें से एक थी। अपने इतिहास लेखन में आप कई बार इस तर्क का इस्तेमाल करते हैं कि लोगों के साथ होने वाली घटनाएँ उन्हें बदल सकती हैं और तदनुरूप व्यवहार करने के लिए मजबूर कर सकती हैं।

हावर्ड जिन: यह सही है। कई बार कोई एक बेहद जीवन्त अनुभव ही काफ़ी होता है। बेशक इसके पीछे कभी भी केवल एक ही जीवन्त अनुभव नहीं होता, बल्कि वह एक ऐसा अनुभव होता है जो पहले से बनी अर्द्धसचेत समझदारी के बाद घटित होता है और उस घटना के कारण वह समझदारी ठोस शक्ल ले लेती है। मुझे लगता है मेरे साथ ऐसा ही हुआ जब मैं सत्रह साल का था, जब एक पुलिसवाले ने मुझे लाठी मारकर बेहोश कर दिया था। मैं सुबह उठकर सोचता था कि भगवान यह अमेरिका है, जहाँ बेशक बुरे लोग भी हैं और अच्छे लोग भी हैं, लेकिन सरकार निष्पक्ष है। पर जब मैंने यह देखा, कि नहीं, पुलिस निष्पक्ष नहीं है, सरकार निष्पक्ष नहीं है, तो इस विचार ने मेरी सोच को बदलकर रख दिया।

हैरी: युद्धविरोधी आन्दोलन से आपका जुड़ाव कुछ हद तक एक सैनिक के रूप में आपके अनुभव के कारण था। युद्ध में बम गिराने के अन्तिम अभियानों में से एक में, आप एक बमवर्षक विमान के पायलट थे जिसको रोयान नाम के एक निर्दोष फ्रांसीसी गाँव पर नापाम बम के सबसे शुरुआती इस्तेमाल की जिम्मेदारी दी गयी थी। हमें उस अनुभव के बारे में बताएँ और उससे आपने क्या सीखा, और किस प्रकार उसने युद्धविरोधी आन्दोलन में आपकी सक्रियता और युद्ध के बारे में आपके सामान्य दृष्टिकोण को प्रभावित किया।

हावर्ड: मैं वायु सेना में भर्ती हुआ था। मैंने स्वेच्छा से ऐसा किया। मैं उत्साही बमवर्षक था। मेरे लिए यह बहुत सीधी-सी बात थी: यह फासीवाद के खिलाफ युद्ध था। वे बुरे लोग थे; हम अच्छे लोग थे। एक चीज जो मैंने उस अनुभव से सीखी वह यह थी कि जब आप शुरू में ही उन्हें बुरे लोग और स्वयं को अच्छे लोग मान लेते हैं, तो अगर आप सेना में हैं तो एक बार कोई निर्णय करने के बाद, आपको और अधिक नहीं सोचना पड़ता। उसके बाद सबकुछ जायज़ होता है। उसके बाद आप कुछ भी कर सकते हैं यहाँ तक कि अत्याचार भी। सिर्फ इसलिए क्योंकि आपने बहुत पहले यह निर्णय कर लिया था कि आपका पक्ष सही है। आप बार-बार प्रश्न नहीं पूछते रहते। आप प्रश्न पूछने वाले योसारियन (जोसेफ़ हेलर के उपन्यास ‘कैच-22’ का एक पात्र जोसेफ योसारियन जो बमवर्षक पायलट है और युद्ध तथा सैनिक के जीवन को लेकर सवाल उठाता है। – सं.) की तरह नहीं होते।

तो मैं एक उत्साही बमवर्षक था। युद्ध अब समाप्त होने वाला था, ऐसा लग रहा था – समाप्त होने के कुछ सप्ताह पहले। सभी जानते थे कि यूरोप में युद्ध खत्म होने वाला था। हमें नहीं लगता था कि हम बमबारी करने के लिए और मिशन पर जायेंगे। उसका कोई कारण नहीं था। हम पूरा फ्रांस पार करके जर्मनी में प्रवेश कर चुके थे। रूसी और अमेरिकी सेनाएँ एल्ब नदी पर मिल चुकी थीं। बस कुछ हफ्तों की बात थी। और ऐसे में एक दिन तड़के हमें जगाया गया और कहा गया कि हमें एक मिशन पर जाना है। तथाकथित इण्टेलिजेंस के लोग, जो जहाज में जाने से पहले हमें चीजों के बारे में बताते हैं, उन्होंने बताया कि हमें फ्रांस के अटलाण्टिक तट पर बोर्दो के निकट एक छोटे से कस्बे रोयान पर बम गिराने हैं क्योंकि वहाँ कई हज़ार जर्मन सैनिक मौजूद हैं। वे कुछ कर नहीं रहे हैं। किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न नहीं कर रहे हैं। वे युद्ध के समाप्त होने का इन्तज़ार कर रहे हैं। और हम उन पर बम गिराने जा रहे हैं।

बाद में जब मैं इसके बारे में सोचता था तो जो चीज मुझे बहुत दिलचस्प लगी वह यह थी कि ब्रीफिंग कक्ष में मैंने यह क्यों नहीं कहा, ‘’हम ये क्या कर रहे हैं? हम ये क्यों कर रहे हैं? युद्ध समाप्त होने वाला है, और इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।’‘ मुझे यह सूझा ही नहीं। आज, मैं समझता हूँ कि अत्याचार किस तरह किये जाते हैं। मिलिटरी वालों का दिमाग किस तरह काम करता है। आपको बस यह सिखाया जाता है कि आप बतायी गयी प्रक्रियाओं का यान्त्रिक ढंग से पालन करें। इसलिए, हम रोयान पर बमबारी करने निकल पड़े और हमें बताया गया कि इस बार हम एक अलग प्रकार का बम गिरायेंगे। सामान्य विध्वंसक बमों की जगह हमें तीन हज़ार पौंड के गैसोलीन की जेली के कनस्टर गिराने थे जिनमें नापाम भरा था। यूरोपीय युद्ध में यह नापाम का पहला इस्तेमाल था। हमने अपना काम किया। हमने जर्मन सैनिकों को मार डाला और साथ ही फ्रांसीसी शहर रोयान को भी तबाह कर दिया। ‘’दोस्ताना गोलीबारी।’‘ (जैसा कि आजकल कहा जाता है।) बमबारी यही करती है।

आज तक, जब भी मैं देश के नेताओं को यह कहते सुनता हूं, ‘’हाँ, यह सटीक बमबारी है और हम बहुत अधिक सावधानी बरत रहे हैं, हम केवल मिलिटरी पर बम गिरा रहे हैं’‘ – यह बकवास है। बम गिराने की तकनीक कितनी ही परिष्कृत क्यों न हो, ऐसा कोई तरीका नहीं है कि बम गिराते समय आम लोगों को हताहत होने से बचाया जा सके। युद्ध के बाद ही मैंने इस घटना पर वापस विचार किया। वास्तव में, हिरोशिमा और नागासाकी के बाद ही मैंने उसपर विचार करना शुरू किया। क्योंकि हिरोशिमा और नागासाकी के बाद, जिसका उस समय तमाम लोगों की तरह मैंने भी पहले स्वागत किया था – ‘’अरे हाँ, अब तो युद्ध समाप्त हो जायेगा’‘ – और फिर मैंने जॉन हर्शी की किताब हिरोशिमा पढ़ी, और पहली बार बम गिराने के मानवीय दुष्परिणामों का मुझे अहसास हुआ और इस तरह हुआ जैसा मैंने कभी सोचा नहीं था। जब आप 30,000 फीट की ऊँचाई से बम गिराते हैं तो आपको लोगों की चीख-पुकार नहीं सुनाई देती। आपको खून नहीं दिखाई देता।

हैरी: इतिहास और शिक्षा के महत्व के सवाल पर आपने लिखा है, ‘’स्‍पेलमैन में बिताए दिनों से मैंने जो सीखा था उसने इस बात की पुष्टि की कि शिक्षा सबसे समृद्ध और सजीव तब होती है जब वह विश्व के नैतिक संघर्ष की वास्तविकता का सामना करती है।’‘

हावर्ड: स्पेलमैन कॉलेज में मेरा अनुभव शिक्षा और सक्रियता के बीच अन्तरक्रिया का एक उदाहरण है। जब मेरे विद्यार्थी धरना देने, प्रदर्शन करने, और 1960 के वसन्त में गिरफ्रतार होने के लिए पहली बार शहर जाते थे, तो स्पेलमैन, मोरहाउस, एटलाण्टा विश्वविद्यालय – काले कॉलेजों का समूह – के मेरे सहकर्मी कहते थे, ‘’यह ठीक नहीं है। वे अपनी पढ़ाई का नुकसान कर रहे हैं।’‘ एक ने एटलाण्टा कॉन्स्टीट्यूशन को यह कहते हुए पत्र लिखा कि ‘’मुझे दुख है कि मेरे विद्यार्थी क्या-क्या कर रहे हैं; वे कक्षाएँ छोड़ रहे हैं; वे अपनी पढ़ाई छोड़ रहे हैं।’‘ और मैं सोचता था कि यह शिक्षा का कितना दयनीय, संकीर्ण और संकुचित नजरिया है। यह सोचना कि वे किताबों में जो पढ़ेंगे उसकी तुलना दुनिया के बारे में, वास्तविकता के बारे में उनके ज्ञान से की जा सकती है। जब वे शहर से लौटेंगे, हवालात से लौटेंगे और उसके बाद जब वे लाइब्रेरी में जायेंगे, तो वे पूरे उत्साह और उत्सुकता के साथ जायेंगे जैसा पहले उनमें नहीं था।

हैरी: आप उस प्रकार के व्यक्ति हैं जो अपने मूल्यों के बारे में और अन्याय के बारे में अपनी भावनाओं को सीधे व्यक्त कर देता है। मैं चाहता हूँ कि आप बताएँ कि आपके मूल्यों और आपकी भावनाओं दोनों से जुड़ी ये ईमानदारियाँ आपके लेखन को किस प्रकार प्रभावित करती हैं। क्या ऐसी चीज़ें लिखने में इससे मदद मिलती हैं?

हावर्ड: मैं जानता हूँ कि ऐसी पारम्परिक समझदारी, या जिसे मैं पारम्परिक मूर्खता कहता हूँ, मौजूद है जो यह कहती है कि यदि आप किसी चीज़ को लेकर बहुत भावुक हैं तो आप उसके बारे में ठीक ढंग से नहीं लिख सकते। कलाओं के बारे में हम मानते हैं कि भावोद्रेक उन्हें सजीव बना देता है। लेकिन हम शिक्षा में इसे सही नहीं मानते, और इसलिए हम कला और शिक्षा के बीच एक गलत विभाजन कर देते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि ईमानदार रहने के लिए ज़रूरी है कि शिक्षा सम्बन्धी कामों के प्रति गहरी और उत्कट भावना, इतिहास के प्रति गहरी और उत्कट भावना को अभिव्यक्ति किया जाना चाहिए। मेरा मानना है कि अपनी भावनाओं के बारे में ईमानदार होने से ज़्यादा महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं है। वर्ना आप कुछ ऐसा प्रस्तुत कर रहे होते हैं जो दरअसल आप होते ही नहीं।

इसके साथ एक दूसरी चीज़ भी जुड़ी हुई है, और वह यह कि किसी चीज़ के बारे में गहरी और उत्कट भावना रखने से आप अपने लेखन को धारदार बनाते हैं, जिससे इसकी क्षमता बहुत बढ़ जाती है। एक तरीके से आप इस तथ्य की भरपाई करते हैं कि अन्य चीजों के बारे में लिखने वाले लोग विचारधारात्मक परिदृश्य पर हावी हैं। चूँकि आप अल्पमत की आवाज़ हैं, इसलिए आपको ज़ोर से बोलना होगा, अधिक जीवन्त ढंग से, अधिक भावोद्रेक के साथ।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2010

 

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