पाठक मंच

प्रिय साथी,

आह्वान पत्रिका मैं लगातार एक साल से पढ़ रहा हूँ। आह्वान काफी दिलचस्प पत्रिका है। आह्वान जनवरी-फरवरी अंक के बाद लगतार लेट पहुँच रही है। मार्च-अप्रैल का अंक मई महीने में मिला और मई-जून का अंक अगस्त में मिला। मैं आह्वान के साथियों से अपील करता हूँ कि पत्रिका समय से निकाली जाये।

आज इस पूरे पूँजीवादी देश में आम जनता के हाथों से उनके सुख सुविधा के हर सामान छीने जा रहे हैं। देश में तमाम किस्म के धार्मिक कट्टरपंथी चाहे वो शिवसेना हो, आर.एस.एस. हो और गैर सरकारी संगठन ये सारे संगठन सर्वहारा वर्ग को जाति,धर्म, क्षेत्र के नाम पर बाँटकर रखते हैं और ये सभी इसी पूँजीवादी व्यवस्था में स्वर्ग ढूँढ़ते हैं। ये पार्टियाँ सर्वहारा वर्ग की मुक्ति का रास्ता कभी नहीं बतायेंगी और कभी भी इन को सपना भी नहीं आयेगा, कि लूट, शोषण, अन्याय, अत्याचार भ्रष्टाचार से सर्वहारा वर्ग मुक्त हो लेकिन सर्वहारा वर्ग को इस से मुक्ति दिलाने के लिए एक व्यापक जनाधार वाला जनसंगठन खड़ा करना होगा।

सर्वहारा वर्ग को उसके असली उद्देश्य के बारे में बताना होगा। उसके असली दुश्मन से अवगत करना होगा और बिना इन चीजों के बारे में बताये कोई भी जनसंगठन खड़ा नहीं हो सकता। मज़दूर वर्ग को बताना होगा कि असली दुश्मन पूँजीपति वर्ग है चाहे वो देशी हो या विदेशी। साथियों इतिहास बताता है कि आदिम कम्यून के ज़माने से लेकर आज तक का पूरा इतिहास वर्ग संघर्षों और क्रान्तियों का इतिहास रहा है। आज इस देश में मज़दूर वर्ग को गुमराह करने के लिए कई धार्मिक संगठन और नकली लाल झण्डे वाली कम्युनिस्ट पार्टियाँ मौजूद हैं।

एक होज़री मज़दूर की कलम से

दोस्तो! ‘तुम्हारी’ पैण्ट बनाने में या कमीज़ बनाने में
सिर्फ हमारी मेहनत ही नहीं
बहुत कुछ गलता-पिसता-घिसता-ख़त्म होता है
हाँ, ये सिर्फ तुम्हारी ही हैं
हमें तो ये सपनों में भी मयस्सर नहीं
तुमने सुना तो होगा ही
या इसे यूँ कहूँ कि
शायद तुमने सुना हो
कारख़ानों में
हमारा ख़ून जलता है
हमारी हड्डियाँ गलती हैं
तब जाकर ये बनती हैं
मैं तुम्हें बताती हूँ
कि जब हम तुम्हारी जींस की पॉकेट, बेल्ट या
लुप्पियों के लिए मार्के (निशान) लगाते हैं
तो चोक हमारी उँगलियों में घुस जाता है
हमारे हाथों में एलर्जी हो जाती है
खुजलाते रहते हैं हमारे हाथ
त्वचा फट जाती है
लेकिन मार्के लगाना बन्द नहीं करते
अगर हम कुछ कहते हैं
तो हमें हमारी औकात बतायी जाती है
और मशीन पर तो
हमारी उँगलियों की त्वचा इतनी घिस जाती है
कि शक होता है कहीं हमारी उँगलियों के निशान
तो नहीं मिट गये
यह शक तब और बढ़ जाता है
जब हाजिरी मशीन हमारी उँगलियों से
हमारी पहचान लेने से इन्कार कर देती है
तुम्हारी पैण्टें बनाते-बनाते
हम भी उनका हिस्सा हो जाते हैं
कभी सूंघ कर देखना उसे
शायद तुम्हें हमारी त्वचा
या हमारे शरीर से गिरते पसीने
या निकलते तेल
की महक आये
तुम्हें मालूम हो
कि प्रोडक्शन लेने के चक्कर में सुपरवाइज़र
हमें आधा-आधा पौना-पौना घण्टा
पानी पीने और पेशाब करने के लिए
नहीं जाने देता
कभी अपनी कमीज़ पर या पैण्ट पर
हाथ रखकर महसूस करना हमारी प्यास को
या पेट में बढ़ते पेशाब के दबाव को
या
तुम एक एक्सपेरिमेण्ट भी कर सकते हो
जब तुम्हें प्यास लगी हो तो
घण्टा भर पानी मत पीना
और जब तुम्हें पेशाब लगा हो
तो उसे भी घण्टा भर रोकना
खैर
मैं तुम्हे यह भी बताना चाहती हूँ
कपड़ों के धागे के रेशे, मशीनों का तेल और गर्दा
तमाम कारख़ानों की तमाम गन्दगियाँ
हमारे शरीरों, हमारी जिन्दगियों के भी
हिस्से बन जाते हैं
ये हमारी हवा में मिले
हमारे पानी में घुले
हमारे भोजन के हिस्सा होते हैं
रोमछिद्रों से हमारी त्वचा की मार्फत
ये हममें रचे-बसे होते हैं।

 

विशाल, लुधियाना

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-दिसम्‍बर 2012

 

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