“केवल वे आकांक्षाएँ ही वास्तव में महत्वपूर्ण हैं जो वास्तविकता पर आधारित होती हैं, केवल वे आशाएँ ही फ़लवती होती हैं जिन्हे वास्तविकता जन्म देती है और केवल तभी जब उनकी पूर्ति के लिए उन शक्तियों और परिस्थितियों का सहारा लिया जाता है जिन्हें वास्तविकता प्रस्तुत करती है।”
चेर्नीशेव्स्की
‘‘कोई झूठ तात्कालिक रूप से उपयोगी हो सकता है लेकिन दूरगामी रूप से वह अनिवार्यतः हानिकर होता है, इसके विपरीत, सच्चाई दूरगामी रूप से अनिवार्यतः भला ही करती है चाहे तात्कालिक रूप से वह हानिकर ही क्यों न हो। इससे मै यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य हूँ कि जीनियस व्यक्ति जो एक प्रचलित भूल को उजागर करता है या जो एक महान सत्य को स्थापित करता है, हमारी श्रद्धा के योग्य है। हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति पूर्वाग्रहों और कानून का शिकार बन जाये, लेकिन कानून भी दो तरह के होते हैं। कुछ निरपेक्ष रूप से समतावादी और सार्वभौमिक होते हैं और दूसरे प्रकार के कानून मनमाने होते हैं जिनका प्राधिकार केवल अन्धता या परिस्थितियों की शक्ति पर निर्भर होता है। ये दूसरे प्रकार के कानून इनका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति का केवल क्षणिक निरादर करते हैं, एक ऐसा निरादर जिसे समय उलटकर न्यायधीशों और राष्ट्रों के ही ऊपर हमेशा के लिए थोप देता है। आज कौन निरादर का शिकार है, सुकरात या वह जज जिसने उसे ज़हर पीने का आदेश दिया था?’’
देनी दिदेरो (प्रबोधनकाल के महान फ्रांसीसी दार्शनिक)
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2013
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