माँ (प्रकाशन के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर उपन्यास अंश)
मक्सिम गोर्की
“यह एक जरूरी किताब है”, लेनिन ने माँ के बारे में कहा था, “क्योंकि बहुतेरे मजदूर सहज बोध से और स्वत:स्फूर्त तरीके से क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गये हैं, और अब वे माँ पढ़ सकते हैं और इससे विशेष तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं।”
यह उपन्यास वास्तविक घटनाओं पर आधारित है जो वोल्गा के किनारे सोर्मोवो नगर में बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में घटित हुईं। लेकिन गोर्की की यह पुस्तक महज़ एक मजदूर परिवार की नियति का चित्रण करने की बजाय, समूचे सर्वहारा वर्ग के भवितव्य को विलक्षण शक्ति के साथ चित्रित करती है।
माँ सबसे पहले रूसी की बजाय अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हुई। यह 1906 की बात है। गोर्की तब जारशाही के अत्याचार के शिकार अप्रवासी के रूप में विदेश में रह रहे थे। इस पुस्तक का दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और विश्व के बड़े प्रकाशक इसे छाप चुके हैं। यह दुनिया के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है और तमाम देशों में इंसाफ और बराबरी के लिए लड़ने वाले युवा क्रान्तिकारियों की पीढ़ियाँ इस उपन्यास से ऊर्जा ग्रहण करती रही हैं और आज भी ग्रहण कर रही हैं और निस्सन्देह रूप से करती रहेंगी।
इस ऐतिहासिक कालजयी उपन्यास के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर हम यहाँ इस उपन्यास का एक अंश प्रकाशित कर रहे हैं। यह उपन्यास के नायक पावेल ब्लासोव का जारकालीन रूस की एक अदालत में दिया गया बयान है। – सम्पादक
“यह होकर रहेगा”
पावेल अपने दृढ़ स्वर में बोलता रहा और कमरे में निस्तब्धता और गहरी होती गयी, ऐसा प्रतीत होता था कि वह कमरा बड़ा होता जा रहा है और पावेल का क’द कुछ और बढ़ गया है और वह सब पर छाया हुआ है।
जज कुछ बेचैन होकर अपनी कुर्सियों पर पहलू बदल रहे थे। मार्शल ऑफ दि नोबिलिटी ने उस उदासीन सूरत वाले जज के कान में कुछ कहा और उसने सिर हिलाकर बूढ़े जज के दाहिने कान में कुछ कहा और इसी समय उस बीमार सूरत वाले जज ने उसके बाँये कान में कुछ कहा। दाहिनी बाँयी दोनों तरफ डोलने से झुंझलाकर बूढ़े जज ने उँचे स्वर में कुछ कहा, पर पावेल के भाषण के पाटदार तथा सुगम प्रवाह में उसकी आवाज डूबकर रह गयी।
“हम समाजवादी हैं। इसका मतलब है कि हम निजी सम्पत्ति के ख़िलाफ हैं” निजी सम्पत्ति की पद्धति समाज को छिन्न–भिन्न कर देती है, लोगों को एक–दूसरे का दुश्मन बना देती है, लोगों के परस्पर हितों में एक ऐसा द्वेष पैदा कर देती है जिसे मिटाया नहीं जा सकता, इस द्वेष को छुपाने या न्याय–संगत ठहराने के लिए वह झूठ का सहारा लेती है और झूठ, मक्कारी और घृणा से हर आदमी की आत्मा को दूषित कर देती है। हमारा विश्वास है कि वह समाज, जो इंसान को केवल कुछ दूसरे इंसानों को धनवान बनाने का साधन समझता है, अमानुषिक है और हमारे हितों के विरुद्ध है। हम ऐसे समाज की झूठ और मक्कारी से भरी हुई नैतिक पद्धति को स्वीकार नहीं कर सकते। व्यक्ति के प्रति उसके रवैये में जो बेहयाई और क्रूरता है उसकी हम निन्दा करते हैं। इस समाज ने व्यक्ति पर जो शारीरिक तथा नैतिक दासता थोप रखी है, हम उसके हर रूप के ख़िलाफ लड़ना चाहते हैं और लड़ेंगे कुछ लोगों के स्वार्थ और लोभ के हित में इंसानों को कुचलने के जितने साधन हैं हम उन सबके ख़िलाफ लड़ेंगे। हम मजदूर हैं; हम वे लोग हैं जिनकी मेहनत से बच्चों के खिलौनों से लेकर बड़ी–बड़़ी मशीनों तक दुनिया की हर चीज तैयार होती है; फिर भी हमें ही अपनी मानवोचित प्रतिष्ठा की रक्षा करने के अधिकार से वंचित रखा जाता है। कोई भी अपने निजी स्वार्थ के लिए हमारा शोषण कर सकता है। इस समय हम कम से कम इतनी आजादी हासिल कर लेना चाहते हैं कि आगे चलकर हम सारी सत्ता अपने हाथों में ले सकें। हमारे नारे बहुत सीधे–सीधे है: निजी सम्पत्ति का नाश हो-उत्पादन के सारे साधन जनता की सम्पत्ति हों-सत्ता जनता के हाथ में हो –हर आदमी को काम करना चाहिए। अब आप समझ गये होंगे कि हम विद्रोही नहीं हैं।’’
पावेल धीरे से मुस्कराया और धीरे–धीरे अपने बालों में उँगलियाँ फेरने लगा। उसकी नीली आँखों की चमक पहले से बहुत बढ़ गयी थी।
‘‘मैं तुमसे कहता है कि बस मतलब भर की बात कहो।’’ बूढ़े ने जोर से स्पष्ट स्वर में कहा और पावेल की ओर मुड़कर देखा। माँ की कल्पना में यह बात आयी कि उस जज की निस्तेज बाँयी आँख में लोलुपता और कुत्सा की चमक थी। तीनों जज उसके बेटे को देख रहे थे, उनकी नजरें उसके चेहरे पर जमी हुई थीं, ऐसा मालूम होता था कि वे अपनी पैनी नजरों से उसकी शक्ति चूस ले रहे हैं; वे उसके ख़ून के प्यासे लग रहे थे, मानो इससे उनके शक्तिहीन शरीर में फिर से जान आ जायेगी। परन्तु पावेल अपना लम्बा–चौड़़ा बलिष्ठ शरीर लिए साहस के भाव से सीधा तनकर खड़ा था और अपना हाथ उठाकर कह रहा था:
‘‘हम क्रान्तिकारी हैं और उस समय तक क्रान्तिकारी रहेंगे जब तक इस दुनिया में यह हालत रहेगी कि कुछ लोग सिर्फ हुक़्म देते हैं और कुछ लोग सिर्फ़ काम करते हैं। हम उस समाज के ख़िलाफ हैं जिनके हितों की रक्षा करने की आप जज लोगों को आज्ञा दी गयी है। हम उसके कट्टर दुश्मन हैं और आपके भी और जब तक इस लड़ाई में हमारी जीत न हो जाय, हमारी और आपकी कोई सुलह मुमकिन नहीं है। और हम मजदूरों की जीत यकीनी है! आपके मालिक उतने ताकतवर नहीं हैं जितना कि वे अपने आपको समझते हैं। यही सम्पत्ति जिसे बटोरने और जिसकी रक्षा करने के लिए वे अपने एक इशारे पर लाखों लोगों की जान कुर्बान कर देते हैं, वही शक्ति जिसकी बदौलत वे हमारे ऊपर शासन करते हैं, उनके बीच आपसी झगड़ों का कारण बन जाती है और उन्हें शारीरिक तथा नैतिक रूप से नष्ट कर देती हैं। सम्पत्ति की रक्षा करने के लिए उन्हें बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ती है। असल बात तो यह है कि आप सब लोग, जो हमारे मालिक बनते हैं हमसे ज़्यादा गुलाम हैं। हमारा तो सिर्फ़ शरीर गुलाम है, लेकिन आपकी आत्मायें गुलाम हैं । आपके कंधे पर आपकी आदतों और पूर्व–धारणाओं का जो जुआ रखा है उसे आप उतारकर फेंक नहीं सकते। लेकिन हमारी आत्मा पर कोई बंधन नहीं है। आप हमें जो जहर पिलाते रहते हैं वह उन जहरमार दवाओं से कहीं कमजोर होता है जो आप हमारे दिमागों में अपनी मर्जी के ख़िलाफ उँड़ेलते रहते हैं। हमारी चेतना दिन–ब–दिन बढ़ती जा रही है और सबसे अच्छे लोग, वे सभी लोग जिनकी आत्मायें शुद्ध हैं हमारी और खिंचकर आ रहे हैंय इनमें आपके वर्ग के लोग भी हैं। आप ही देखिये-आपके पास कोई ऐसा आदमी नहीं है जो आपके वर्ग के सिद्धान्तों की रक्षा कर सके; आपके वे सब तर्क खोखले हो चुके हैं जो आपको इतिहास के न्याय के घातक प्रहार से बचा सकें, आपमें नये विचारों को जन्म देने की क्षमता नहीं रह गयी है, आपकी आत्मायें निर्जन हो चुकी हैं। हमारे विचार बढ़ रहे हैं, अधिक शक्तिशाली होते जा रहे हैं, वे जन–साधारण में प्रेरणा फूँक रहे हैं और उन्हें स्वतंत्रता के संग्राम के लिए संगठित कर रहे हैं। यह जानकर कि मजदूर वर्ग की भूमिका कितनी महान है, सारी दुनिया के मजदूर एक महान शक्ति के रूप में संगठित हो रहे हैं-नया जीवन लाने की जो प्रक्रिया चल रही है उसके मुकाबले में आपके पास क्रूरता और बेहयाई के अलावा और कुछ नहीं है। परन्तु आपकी बेहयाई भोंडी है और आपकी क्रूरता से हमारा क्रोध और बढ़ता है। जो हाथ आज हमारा गला घोंटने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं वही कल साथियों की तरह हमारे हाथ थाम लेने को आगे बढ़ेंगे। आपकी शक्ति धन बढ़ाते रहने की मशीनी शक्ति है, उसने आपको ऐेसे दलों में बाँट दिया है जो एक–दूसरे को खा जाना चाहते हैं। हमारी शक्ति सारी मेहनतक़श जनता की एकता की निरन्तर बढ़ती हुई चेतना की जीवन–शक्ति में है। आप लोग जो कुछ करते हैं वह पापियों का काम है, क्योंकि वह लोगों को गुलाम बना देता है। आप लोगों के मिथ्या प्रचार और लोभ ने पिशाचों और राक्षसों की अलग एक दुनिया बना दी है जिसका काम लोगों को डराना–धमकाना है। हमारा काम जनता को इन पिशाचों से मुक्त कराना है। आप लोगों ने मनुष्य को जीवन से अलग करके नष्ट कर दिया है; समाजवाद आपके हाथों टुकड़े–टुकड़े की गयी दुनिया को जोड़कर एक महान रूप देता है और यह होकर रहेगा।”
पावेल रुका और उसने एक बार फिर ज़्यादा जोर देकर पर धीमे स्वर में कहा :
“यह होकर रहेगा।”
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2006
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