सुबह का रंग भूरा

फ्रांक पावलोफ़
अनुवाद : शिवप्रसाद जोशी
‘समयान्तर’ से साभार

पेशे से मनोविज्ञानी और बाल अधिकारों के विशेषज्ञ फ्रांसीसी लेखक पावलोफ़ ने यह कहानी 1988 में फ्रांस की राजनीति में धुर दक्षिणपंथी ताक़तों के बढ़ते असर के दौर में लिखी थी।

एक सर्वसत्तावादी समाज किस तरह से सोचविचार के तरीकों से लेकर रहनसहन और जीवनशैलियों की स्वाभाविकता में ख़लल और आख़िरकार डकैती डालकर उन्हें गिरवी बना लेता है, यह कहानी (मूल नाममातिन ब्रून’) इसका दस्तावेज़ है। स्वेच्छाचारी, निरकुंश और फ़ासिस्ट चरित्र वाला राज्य किस तरह हर सोच, हर पसन्द, जीने की हर शैली को एक ही रंग में ढाल देना चाहता है, यह छोटीसी कहानी इसे बेहद मारक ढंग से हमारे सामने रखती है। शीर्षक नाज़ी पार्टी की पोशाकब्राउन शर्ट्सकी याद दिलाता है।  – सम्पादक

चार्ली और मैं धूप में बैठे थे। हम दोनों में से कोई ज़्यादा बात नहीं कर रहा था। बस दिमाग़ में आ रहे ऊलजलूल ख़यालों के बारे में परस्पर बतिया रहे थे। ईमानदारी से कहूँ, तो मैं उसकी बात पर बहुत ध्यान नहीं दे रहा था। हम कॉफ़ी की चुस्कियाँ ले रहे थे और समय सुखद गति से व्यतीत हो रहा था। हम दुनिया की गतिशीलता को निहार रहे थे। वह मुझे अपने कुत्ते के बारे में कुछ बता रहा था। किसी इंजेक्शन के बारे में जो उसे कुत्ते को देना पड़ा था। लेकिन तब भी मैंने वाकई ज़्यादा गौर नहीं किया।

बेचारे जानवर की तकलीफ़ दुखद थी। हालाँकि ईमानदारी से कहें तो उसकी उम्र पन्द्रह साल थी, जो कुत्ते के लिए एक भरी-पूरी आयु है, इसलिए आप सेाच सकते थे कि वह इस बात से वाकिफ़ है कि कुत्ते को किसी दिन जाना ही है।

‘देखो,’ चार्ली ने कहा, ‘मैं उसे भूरे रंग का तो नहीं बता सकता था।’

‘हाँ, ज़ाहिर है। आख़िर वह लेब्राडोर था, काला लेब्राडोर ही तो था न ? खैर छोड़ो, उसे हुआ क्या था ?’

‘कुछ भी नहीं। बस यही कि वो भूरा कुत्ता नहीं था। बस इतना ही।’

‘क्या ? तो उन्होंने अब कुत्तों पर भी शुरू कर दिया है।’

‘हाँ।’

पिछले महीने बिल्लियों के साथ ऐसा हुआ था। मैं बिल्लियों के बारे में जानता था। मेरे पास भी एक थी। एक आवारा बिल्ली जिसे मैंने पाला था। काले और सफ़ेद रंग की एक नन्हीं सी गन्दी-सी बिल्ली। मैं उसे पसंद करता था। लेकिन मुझे उससे छुटकारा लेना पड़ा।

मेरे कहने का मतलब है कि उनके पास भी तर्क हैं। बिल्लियों की आबादी बेकाबू हो रही थी। और जैसा कि सरकारी वैज्ञानिक कह रहे थे कि मुख्य चीज़ है भूरी बिल्लियों को ही पालना। ताज़ा प्रयोगों के मुताबिक भूरे पालतू जानवर दूसरों के मुकाबले हमारी आधुनिक शहरी ज़िन्दगी के लिहाज़ से ज़्यादा अनुकूल है। वे कम गन्दगी करते हैं और खाते भी बहुत कम हैं। किसी भी हालत में, बिल्ली आख़िर बिल्ली है और भूरे रंग से इतर रंग वाली बिल्लियों से छुटकारा पाकर एक बार में ही समस्या का निदान कर लेना ही समझदारी की बात है।

सैनिक पुलिस आर्सेनिक की गोलियाँ मुफ़्त दे रही थी। आपको यह करना होता था कि उनके खाने में गोलियां मिला दो और कहानी ख़त्म। एकबारगी मेरा दिल टूट गया। लेकिन मै जल्द ही इससे उबर गया।

मुझे यह बात मान लेनी चाहिए कि इस ख़बर ने मुझे थोड़ा सा झिझोंड़ दिया था। मुझे नहीं पता था कि क्यों। शायद इसलिए कि, कुत्ते अपेक्षाकृत बड़े होते हैं। या शायद इसलिए कि, वे मनुष्य के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं, जैसा कि कहा जाता है।

खैर, चार्ली ने इस मामले में कदम बढ़ा ही दिये थे, और ये सही भी था। आख़िरकार इन चीज़ों के बारे में ज़्यादा माथापच्ची करने से कुछ होना-हवाना नहीं था। और जहाँ तक भूरे कुत्तों की बात है कि वे औरों से बेहतर हैं, मैं समझता हूँ ये बात सही ही होगी।

हम दोनों के बीच ज़्यादा कुछ बात करने लायक नहीं बचा तो थोड़ी देर बाद हमने अपनी-अपनी राह ली। लेकिन दिमाग़ के एक कोने में मुझे लग रहा था कि कुछ अनकहा रह गया है। बाकी का दिन इसी सन्देह के साये में गुज़रा।

इस घटना को ज़्यादा दिन भी नहीं हुए थे कि चार्ली को ब्रेकिंग न्यूज़ देने की मेरी बारी आ गयी। मैंने उसे बताया कि ‘डेली’ अब कभी नहीं छपेगा। ‘द डेली’, जिसे वह कॉफ़ी पीते हुए हर सुबह पढ़ता था।

‘तुम कहना क्या चाह्ते हो? क्या वे हड़ताल पर हैं? क्या वे दिवालिया हो गये हैं या कुछ और?’

‘नहीं, नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसका सम्बन्ध कुत्तों वाले मामले से है।’

‘क्या भूरे वाले?’

‘बिल्कुल सही। एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रा जब उन्होंने उस नये क़ानून के बारे में अख़बार में चर्चा न की हो। बात यहाँ तक आ पहुँची कि उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। मेरे कहने का मतलब ये कि पाठकों को पता ही नहीं था कि वे और क्या सोचें। उनमें से कुछ ने अपने कुत्ते छिपाने शुरू कर दिये थे।’

‘लेकिन ये तो संकट को बुलावा है।’

‘हां, बिल्कुल, और इसीलिए अब अख़बार पर पाबन्दी लगा दी गयी है।’

‘तुम मज़ाक कर रहे हो। रेसिंग का क्या होगा?’

‘हूँ, मेरे दोस्त, अब तुम्हें उस बारे में टिप्स आने वाले दिनों में ‘ब्राउन न्यूज़’ से लेनी शुरू करनी होगी। नहीं लोगे क्या। और कुछ भी नहीं है यहाँ। ख़ैर घुड़दौड़ का उनका सेक्शन ऊपरी तौर पर इतना बुरा भी नहीं है।’

‘दूसरे बहुत आगे निकल गये हैं। लेकिन आख़िरकार तुम्हें किसी तरह का अख़बार तो मिल ही रहा है । यानी क्या चल रहा है ये जानने का तुम्हारे पास कोई ज़रिया तो रहेगा ही। क्यों?’

मैं चला था कि चार्ली के साथ इत्मीनान से कॉफ़ी पिऊँगा, और यहां मैं ‘ब्राउन न्यूज़’ का एक पाठक बनने की चर्चा में ही उलझा हुआ था। कैफ़े में मेरे पास बैठे और लोग अपने में व्यस्त थे जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो। मैं जाहिरा तौर पर ख़ामख़्वाह हलक़ान हुए जा रहा था।

उसके बाद बारी थी लाइब्रेरी की किताबों की। इस बारे में कुछ ऐसा था जो सही नहीं था। ‘द डेली’ सरीखे संगठनों से जुड़े प्रकाशन संस्थानों को अदालत में घसीटा गया था और उनकी किताबें, पुस्तकालयों और किताबों की दुकानों से हटा ली गयी थीं। लेकिन फिर दोबारा उनकी प्रकाशित हर चीज़ में कुत्ता या बिल्ली शब्दों का उल्लेख होता महसूस होता था। हमेशा ‘भूरे’ शब्द के साथ न भी हो, तब भी। तो उनकी मंशा ज़ाहिर थी।

‘ये तो बिल्कुल बेवकूफ़ी की बात है,’ चार्ली ने कहा। ‘क़ानून, क़ानून है। उसके साथ चूहे-बिल्ली का खेल करने का कोई मतलब नहीं।’

‘भूरा,’ उसने जोड़ा, अपने आसपास देखते हुए कि कहीं कोई हमारी बातचीत सुन तो नहीं रहा है था। ‘भूरा चूहा।’

सुरक्षा के लिहाज़ से हमने वाक्याशों, या दूसरे खास शब्दों के पीछे ‘भूरा’ जोड़ना शुरू कर दिया था। हम ब्राउन पेस्ट्री के बारे में दरयाफ़्त करते, शुरू में ये थोड़ा अटपटा लगा लेकिन स्लैंग तो यूं भी हमेशा बदलता रहा है, इसलिए हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि हम अपनी बात के आख़िर में ‘भूरा’ जोड़े या कहें, भाड़ में जाओ। जो कि हम आमतौर पर कहते ही थे। कम से कम इस तरह हमने कोई मुसीबत मोल नहीं ली थी, और यही तरीक़ा हमें अच्छा लगता था।

यहाँ तक कि हमें घोड़ों पर भी जीत नसीब हुई। मेरा मतलब, ये कोई जैकपॉट या और कुछ नहीं था। लेकिन ये थी तो जीत ही। हमारी पहली भूरी विजय। और इस तरह बाक़ी हर चीज़ ठीक लगने लगी।

चार्ली के साथ बिताया एक दिन मैं हमेशा याद रखूँगा। मैंने उसे कप का फ़ाइनल देखने के लिए अपने घर बुलाया था। और जैसे ही एक दूसरे से मिले, हम हँस पड़े। उसने नया कुत्ता लिया था। वह एक विशाल भारी जानवर था। पूँछ की नोक से लेकर थूथन तक भूरा का भूरा। उसकी आँखें भी भूरी थीं।

‘है न ग़ज़ब का, ये मेरे पुराने कुत्ते से ज़्यादा दोस्ती वाला है। ज़्यादा स्वामिभक्त भी। मैं भी उस काले लेब्राडोर के बारे में क्या बातें लेकर बैठ गया था।’

जैसे ही उसने यह कहा, उसके नये कुत्ते ने सोफे के नीचे छलाँग मारी और भौंकना शुरू कर दिया। और हर भूँक में मानो वह कहता था, ‘मैं भूरा हूँ! मैं भूरा हूँ! और कोई मुझे नहीं बताता कि मुझे क्या करना है!’

हमने उसे हैरत से देखा।

‘तुम भी?’ चार्ली ने कहा।

‘मैं डर गया हूँ।’

आप देखिए, उसी वक़्त मेरी नई बिल्ली कमरे में कूदी और आलमारी के ऊपर छिपने के लिए पर्दे पर जा चढ़ी। भूरे फर वाली बिल्ली। और वे भूरी आँखें जो लगता था, आप जहाँ-जहाँ जाते हैं, वे आपका पीछा करती रहती हैं। और इसलिए हम दोनों हँस पड़े थे। संयोग के भी क्या कहने!

‘मैं भी बिल्ली वाला आदमी हूँ वैसे। देखो कितनी प्यारी है, है न?’

‘सुन्दर,’ उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा।

फिर हम टीवी की ओर मुख़ातिब हुए। हमारे दोनों भूरे जानवर अपनी आँखों के कोनों से एक दूसरे को होशियारी से घूर रहे थे।

मैं आपको नहीं बता सकता कि इतना सब होने के बाद आख़िर उस दिन फ़ाइनल किसने जीता। मैं उस दिन को वास्तविक हँसी के दिन की तरह याद रखता हूँ। हमने वाकई महसूस किया कि शहर भर में जो बदलाव किये जा रहे थे उनके बारे में आख़िरकार चिन्तित होने की कोई वज़ह नहीं थी। मतलब, आप वही करते थे जो आपसे अपेक्षित था। और आप सुरक्षित थे। शायद नये निर्देशों ने हरेक की ज़िन्दगी आसान बना दी थी।

ज़ाहिर है, मैंने उस छोटे बच्चे को भी अपने ख़्यालों में जगह दी थी जो उस दिन सुबह मुझे दिखा था। वह् सड़क के दूसरे किनारे पर घुटनों के बल बैठा रो रहा था। उसके सामने ज़मीन पर एक नन्हा-सा सफ़ेद कुत्ता मरा पड़ा था। मैं जानता था कि वह जल्द ही इस हादसे से उबर जायेगा। आख़िरकार ऐसा नहीं था कि कुत्तों की मनाही कर दी गयी थी। उसे करना यह था कि भूरा कुत्ता लाना चाहिए था। आपको ठीक वैसा ही गोद में खिलाया जाने वाला पूडल मिल सकता था, जो वहाँ उस बच्चे के पास था। तब वह भी हमारी तरह होता। ये जानकर अच्छा लगता है कि आप क़ानून का सही पालन करते हैं।

और फिर कल, ठीक ऐसे वक़्त जब मुझे लगता था कि सब कुछ सही है, मैं बाल-बाल बचा वरना सेना पुलिस ने मुझे घेर लिया होता। भूरी पोशाक़ वाले लोग। वे कभी भी आपको यूँ ही नहीं जाने देते। ख़ुशकिस्मती से उन्होंने मुझे नहीं पहचाना क्योंकि वे इलाके में नये थे और हर किसी को अभी नहीं जानते थे। मैं चार्ली के घर जा रहा था। इतवार का दिन था, और मैं उसके घर ताश खेलने जा रहा था। मैं अपने साथ बीयर की कुछ बोतलें भी ले जा रहा था। आपको ताश के मज़ेदार खेल तो जब-तब खेलते ही रहने होंगे। मेज़ पर ताल बजाते हुए और कुछ चना-चबैना करते हुए दो-एक घण्टे बिताने की ही बात थी।

जैसे ही मैं सीढ़ियों पर चढ़ा, मुझे अपनी ज़िन्दगी का पहला धक्का लगा। उसके घर का दरवाज़ा खुला पड़ा था और सैनिक पुलिस के दो अफ़सर दरवाज़े के सामने खड़े थे। वे लोगों से चलते रहने को कह रहे थे। मैंने ऐसे ज़ाहिर किया जैसे कि मैं ऊपर की मंज़िल के किसी फ़्लैट में जा रहा हूँ और सीढ़ियों पर चढ़ गया। ऊपर से मैं लिफ़्ट के ज़रिए नीचे उतर आया। बाहर सड़क पर फुसफुसाहटें शुरू हो चुकी थीं।

‘लेकिन उसके पास तो भूरा कुत्ता है। हम सबने देखा है।’

‘ठीक है, हाँ, लेकिन वे कह रहे हैं कि पहले तो उसके पास काला था।’

‘पहले?’

‘हाँ, पहले। आपके पास पहले से ही कोई भूरा कुत्ता न होना भी एक जुर्म है। और इस बात की जानकारी मिलना मुश्किल नहीं है। वे कुछ नहीं करेंगे सिर्फ़ पड़ोसियों से पूछ लेंगे, बस।’

मैं फ़ौरन चला आया। मेरी गर्दन के पीछे पसीने की ठण्डी धार रेंगती हुई चली गयी।

अगर पहले आपके पास किसी और रंग का जानवर होना अपराध है तो सैनिक पुलिस किसी भी वक़्त मेरे भी पीछे लग जायेगी। मेरे ब्लॉक में सब जानते थे कि पहले मेरे पास एक काली-सफ़ेद बिल्ली थी। पहले! मैंने इस बारे में तो कभी सोचा ही नहीं था।

आज सुबह, ब्राउन रेडियो ने समाचार की पुष्टि कर दी। गिरफ़्तार किये पाँच सौ लोगों में चार्ली भी था। अधिकारियों का कहना था कि भले ही उन लोगों ने हाल में भूरा जानवर ख़रीद लिया हो लेकिन इसका ये अर्थ नहीं था कि उन्होंने वास्तव में अपने सोचने का तरीका भी बदल लिया हो।

‘किसी पुराने समय में ऐसे कुत्ते या बिल्ली का स्वामी होना जो क़ानून के मुताबिक नहीं है, एक अपराध है,’ उदघोषक ने ऐलान किया। फिर उसने जोड़ा, ‘ये राज्य के विरुद्ध अपराध है।’

उसके बाद जो हुआ वह और भी बुरा था। अगर आपने ख़ुद कभी कुत्ते या बिल्ली ना रखे हों लेकिन अगर आपके परिवार में किसी ने, आपके पिता या भाई या रिश्तेदार ने, अपनी ज़िन्दगी में कभी भी ऐसे कुत्ते-बिल्ली पाले हों जो भूरे न रहे हों, तो ऐसी स्थितियों में भी आप दोषी हैं। आप हर हाल में दोषी हैं।

मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने चार्ली के साथ क्या किया।

ये पूरा मामला हाथ से निकल रहा था। दुनिया बौरा गयी थी और मैं अब तक सोच रहा था कि मैं अपनी नयी भूरी बिल्ली के साथ सुरक्षित हूँ।

ज़ाहिर है, अगर वे पहले पाले गये जानवर के रंग को आधार बनायें तो जिसे चाहें उसे गिरफ़्तार कर सकते हैं।

मैं उस रात पलक तक नहीं झपका सका। मुझे शुरू से ही ‘ब्राउन्स’ पर सन्देह होना चाहिए था। जानवरों के बारे में उनका पहला क़ानून। मुझे उस समय कुछ कहना चाहिए था। आख़िरकार, वह मेरी बिल्ली थी, और कुत्ता चार्ली का था। हमें सिर्फ़ ये कहना चाहिए था: नहीं। उनके सामने खड़ा हो जाना चाहिए था। लेकिन हम क्या कर सकते थे? मतलब सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ। और फिर कामकाज भी था और दुनिया भर की दूसरी चिन्ताएँ। और यूँ भी हम कोई अकेले तो थे नहीं। हर किसी ने ऐसा किया था। अपने सिर झुकाए रखे। हम महज़ थोड़ी-सी शान्ति और तसल्ली चाहते थे।

कोई दरवाज़ा खटखटा रहा है। ये तो सुबह का वक़्त है। बहुत सुबह। इस समय तो कोई राउण्ड पर नहीं आता। अभी तो उजाला भी नहीं फूटा है। अभी तो सुबह का रंग भूरा है।

ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटना बन्द करो। मैं आ रहा हूँ…

Brown Morning 

Franck Pavloff
Translated from the French by Chris Mulhern

Franck Pavloff is a psychologist and a specialist in children’s rights. He spent ten years working with community development projects throughout Africa and Asia and another twenty years supporting associations to combat delinquency and drug abuse.

His published work includes novels for adults and children as well as two volumes of poetry. Of Bulgarian and French extraction,he lives in Grenoble, France.

PUBLICATION HISTORY OF MATIN BRUN (BROWN MORNING)

Written for a conference on fascism in 1998 at a time when the Rhone-Alps region of France became involved with politics of the extreme right, Matin Brun, a little book of twelve pages, was published by Cheyne, a small French publisher specialising in poetry.

In three years, Matin Brun had sold 20,000 copies, mainly through word of mouth. Then, in 2002, Jean Marie Le Pen got through to the second round of the French presidential elections and France was shocked into an awareness of the dangerous route it was pursuing. Vincent Josse, a broadcaster with radio France-Inter, spoke about the book and its message just before interviewing Le Pen. That day, as soon as the bookshops opened, the telephone and fax at the publishers began to ring, and they haven’t stopped since.

Matin Brun has been continuously in the French bestseller list since then and latest estimates are that it has sold over 500,000 copies. It has also translated into several languages.

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Charlie and I were sitting in the sunshine. Neither of us was talking that much. Just sharing the odd thought as it came into our heads. To be honest, I hadn’t really been paying much attention to what he was saying. Time was drifting by pleasantly as we sipped at our coffees and watched the world pass by. He’d been telling me something about his dog. About some injection he’d had to give it. But even then I didn’t really take too much notice.

It was sad to think of the poor animal suffering, although to be honest it was fifteen, which is pretty old for a dog after all, so you’d have thought he’d have got used to the idea that it had to die some day.

‘You see,’ said Charlie. ‘I couldn’t really pass him off as a brown one.’

‘Well, of course not. I mean he was a Labrador, wasn’t he? A black Labrador. Anyway, what was wrong with him?’

‘Nothing. He just wasn’t a brown dog, that’s all.’

‘What? So they’ve started on the dogs now?’

‘Yeah.’

Last month it had been the cats. I knew about the cats. Had one myself. A stray I’d picked up. A scruffy little black and white thing. I was fond of the little fellow. But I had to get rid of him.

I mean they had a point, the cat population was getting way out of hand, and as the State scientists kept saying, the main thing was to look after the brown ones. According to the latest experiments, brown pets are better suited to our modern

urban way of life than the others. They produce smaller litters and they eat a lot less too. In any case, at the end of the day, a cat’s a cat and it made sense to solve the problem once and for all by getting rid of the ones that weren’t brown.

The Military Police gave out free arsenic pellets. All you had to do was mix them in with their food and that was the end of that.

I was heartbroken at first. But I soon got over it.

I must admit the news about the dogs did rattle me a bit, though. I don’t know why, particularly. Perhaps it’s just because they’re bigger. Or maybe it’s because of them being ‘man’s best friend’ as they say. Anyway, Charlie seemed to have taken it in his stride, which was the right thing to do. After all, it doesn’t do to get too worked up about these things. And as for brown dogs being superior to the others,

well I suppose it must be true.

There didn’t seem to be much else to talk about, so after a while we went our separate ways. But at the back of my mind was a feeling that something had been left unsaid. A lingering doubt that somehow cast a shadow over the rest of the day.

Not long after that, it was my turn to break the news to Charlie that the Daily would no longer be appearing.

The Daily — the paper that he read every morning while having his coffee!

‘What do you mean? Are they on strike? Have they gone bankrupt or something?’

‘No, no. Nothing like that. It’s to do with that business with the dogs.’

‘What, the brown ones?’

‘Exactly. Hardly a day went by without them going on about that new law. It got to the point where they were even beginning to question scientific facts. I mean the readers didn’t know what to think anymore. Some of them had even started hiding their dogs!’

‘But that’s asking for trouble!’

‘Of course it is, and so now the paper’s been banned.’

‘You’re joking! What about the racing?’

‘Well, my old friend, you’ll just have to start getting your tips from the Brown News in future won’t you? There’s nothing else out there. Anyway, their racing section’s not too bad, apparently.’

The others had all gone too far. But at the end of the day you’ve still got to have some kind of paper. I mean you’ve got to have some way of finding out what’s going on, haven’t you?

I’d started out having a quiet coffee with Charlie and here I was getting all worked up about becoming a reader of the Brown News. And all around me the other people in the café were carrying on as if nothing had happened. I was obviously just worrying about nothing.

After that it was the library books. There was something not quite right about that either. The publishing houses which had belonged to the same group as The Daily were taken to court and their books ended up being banned from the shelves of the libraries and bookshops. But then again everything they published did seem to mention the words ‘dog’ or ‘cat’, and not always alongside the word ‘brown’. So it was obvious what they were up to.

‘That’s just taking the mick,’ said Charlie. ‘The law’s the law. There’s no point playing cat and mouse with it.’

‘Brown,’ he added, looking around him, in case anyone had been listening to our conversation. ‘Brown mouse.’

Just to be on the safe side, we’d started adding ‘brown’ at the end of phrases, or after certain words. We began by asking for a brown pastis, which sounded a bit funny at first, but the slang is always changing anyway, so for us it was no different to add ‘brown’ at the end of a phrase than it was to add ‘bloody hell’ — like we usually did. At least that way we didn’t attract any undue attention. And that was the way we liked it.

We even had a win on the horses. I mean it wasn’t the jackpot or anything. But it was a win all the same. Our first brown win! And that made everything else seem ok.

There is one day with Charlie that I’ll always remember. I’d invited him to come over to my place to watch the Cup Final. And as soon as we saw each other we fell about laughing. He’d got this new dog. It was an enormous great beast. Brown from the tip of its tail to the end of its snout. Had brown eyes, too.

‘Isn’t he great! He’s far more friendly than my last one. More obedient, too. And to think of all that fuss I made about that black Labrador.’

As soon as he said that, his new dog dived under the sofa, and started barking its head off. And with each bark it seemed to be saying ‘I’m brown! I’m brown! And no one tells me what to do!’

We both looked at it in amazement. And then the penny dropped.

“You too?’ said Charlie.

‘I’m afraid so.’

You see, just then my new cat had bolted into the room and shot up the curtains to hide on top of the wardrobe. A cat with brown fur, and those brown eyes that seem to follow you wherever you went. And that was why the two of us fell about laughing. Talk about coincidence!

‘I’ve always been more of a cat person, myself … isn’t he lovely?’

‘Beautiful,’ he said, shaking his head.

Then we turned on the telly, while our brown animals watched each other warily out of the corners of their eyes.

I couldn’t even tell you who won the Final after all that. I just remember that day as being a real laugh. We really felt that the changes that had been going on in the city were nothing to worry about after all. I mean you did what you were supposed to do and you were safe. Perhaps the new regulations would make life simpler for everyone.

Of course, I did spare a thought for a little boy I’d seen earlier that day. He was kneeling on the other side of the street, sobbing away to himself. On the ground in front of him, a small white poodle was lying dead. But I knew he’d soon get over it. After all, it wasn’t as if dogs were forbidden. All he had to do was look for a brown one. You can even get little ones like he had. Then he’d be just like us. It’s good to know you’re on the right side of the law.

And then yesterday, just when I thought everything was OK, I almost got myself collared by the Military Police. The guys in the brown uniforms. They never let you get away with anything,that lot. Fortunately they didn’t recognise me because they were new to the area and hadn’t got to know everyone yet. I was on my way over to Charlie’s. It was a Sunday, and I was going over to his place for a game of cards. I’d brought a few beers along for the occasion. You’ve got to have a good game of cards now and again. A couple of hours slapping the deck and munching away at something.

As I came up the stairs I got the shock of my life. The door of his flat had been kicked in and two Military Police were standing in front of it telling people to keep moving. I pretended I was on my way to the flat upstairs and went up the staircase to the next floor where I took the lift back down. Outside in the street, the whispers had already started.

‘But he had a brown dog! We’ve all seen it!’

‘Well, yes, but what they’re saying is that previously he had a black one.’

‘Previously?’

‘Yes, previously. It’s now an offence to have had one that wasn’t brown in the first place. And that’s not hard to find out. All they have to do is ask one of the neighbours.’

I hurried away, a cold sweat breaking out on the back of my neck.

If it was an offence to have had one previously it was only a matter of time before the Military Police would be after me too. Everyone in my block knew that I’d had a black and white cat. Previously! I’d never even thought of that.

This morning, Brown Radio confirmed the news. Charlie was one of five hundred people who had been arrested. The official line was that even though they had recently bought a brown animal that did not mean they had in fact changed their way of thinking.

‘To have been the owner of a dog or a cat that did not conform at some previous time, is an offence,’ the speaker announced. Then he added: ‘An offence against the State.’

What came next was even worse. Even if you had never actually owned a dog or a cat, but someone in your family — your father or brother or a cousin, for example — if any one of them had at some point in their life owned a dog or a cat that was not brown, then you were guilty. You were all guilty.

I had no idea what they’d done with Charlie.

This was all getting out of hand. The world was going mad. And there I was thinking I was safe with my new brown cat.

Of course, if they took into account what colour pet you’d had previously, they could arrest anyone they liked.

I couldn’t sleep a wink that night. I should have been suspicious of the Browns from the start. That first law of theirs about the pets. I should have said something then. After all, it was my cat. And Charlie’s dog. We should just have said: No. Should have stood up to them. But what could we do? I mean, everything happened so quickly. And then there was work and all the everyday stuff to worry about. Anyway, we weren’t the only ones. Everyone did the same thing. Kept their heads down. All we wanted was a bit of peace and quiet.

Someone is knocking at the door. It’s early. Too early. No one comes round at this time. It’s not even daylight yet. It’s still brown.

Stop knocking so loudly. I’m coming …

I’m afraid.

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