लघु कहानी
ताकत के खि़लाफ़ कार्यवाही
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
विचारक कौयनर महाशय ज्यों ही एक बड़े हॉल में काफ़ी तादाद में इकठ्ठा हुए लोगों के सामने ताकत के खि़लाफ़ बोल रहे थे, उन्होंने देखा कि लोग पीछे हट कर रास्ता पकड़ने लगे हैं। उन्होंने चारो ओर नज़़र दौड़ाई और पाया कि उनके पीछे ताकत खड़ी है।
‘क्या बोल रहे थे तुम?’ -ताकत ने उनसे पूछा।
‘मैं ताकत के पक्ष में बोल रहा था’ -कौयनर महाशय ने जवाब दिया।
कौयनर महाशय जब वापस जा रहे थे, तब उनके चेलों ने उनकी रीढ़ की हड्डी के बाबत पूछा। कौयनर महाशय ने जवाब दिया- ‘मेरे पास तुड़़वाने के लिए रीढ़ की हड्डी नहीं है। खासकर जबकि मुझे भी ताकत से ज्यादा अर्से तक ज़िंदा रहना है।’ और फिर कौयनर महाशय ने यह कहानी सुनायी-
ऐगे महाशय के घर में, जिन्होंने सिर्फ़ एक शब्द ‘नहीं’ बोलना ही सीखा था, अन्धेरगर्दी के ज़माने में एक नुमायन्दा आया। उसने एक फ़रमान दिखाया जिस पर उन तमाम लोगों के दस्तख़त थे, जो कि शहर के हाकिम थे। फ़रमान में लिखा था कि इस आदमी के पैर जिस किसी घर में दाखिल होंगे, वह इसके कब्जे में होगा और वहाँ का हर किस्म का भोजन भी। अपनी इच्छा मुताबिक वह हर उस आदमी को अपनी सेवा के लिए चुन सकता है, जिस पर उसकी नज़र पड़े।
नुमायन्दा एक कुर्सी पर बैठा, भोजन चखा, कुल्ला किया, नीचे पसरा और चेहरा दीवार पर सटाकर नींद की मौज में आने से पहले सवाल किया ‘क्या तुम मेरी ख़़ातिरदारी करोगे?’
ऐगे महाशय ने उसे एक लिहाफ ओढ़ाया, मक्खियाँ उड़ायी उसकी नींद की चौकसी की और उस दिन की तरह लगातार यह क्रम सात साल तक दोहराया। लेकिन इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी उसके लिए किया, यह अहतियात बरती कि एक भी शब्द उसके मुँह से न निकले। जब सात साल गुज़़र चुके और नुमायन्दा बेहद खाते-पीते-सोते और हुक्म देते-देते मुटा गया तो एक दिन वह मर गया। ऐगे महाशय ने तब उसकी लाश चीथड़ों में लपेटी और घसीटकर घर से बाहर फेंक दी। वह खाट जिस पर वह सोता था, साफ़ की, दीवारों पर सफ़ेदी पोती और एक गहरी साँस छोड़ते हुए जवाब दिया- ‘नहीं’।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मार्च-अप्रैल 2016
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