एंगेल्‍स की प्रसिद्ध पुस्तिका ‘समाजवाद: काल्‍पनिक तथा वैज्ञानिक’ का परिचय

आनन्‍द सिंह

समाजवाद की वैज्ञानिक धारा से अपरिचित लोग समाजवाद को एक अव्‍यवहारिक और आदर्शवादी विचार मानते हैं। ऐसे लोग अक्‍सर यह कहते हुए पाये जाते हैं कि समाजवाद जिस तरह की व्‍यवस्‍था की बात करता है वह कल्‍पना जगत में तो बहुत अच्‍छी लगती है, परन्‍तु वास्‍तविक जगत में ऐसी व्‍यवस्‍था संभव नहीं है क्‍योंकि मनुष्‍य अपने स्‍वभाव से ही लालची और स्‍वार्थी होता है। ऐसे लोगों को यह नहीं पता होता कि समाजवाद की उनकी समझ दरअसल काल्‍पनिक समाजवाद (Utopian Socialism) की धारा द्वारा प्रतिपादित विचारों के प्रभाव में आकर बनी है जिसके अनगिनत संस्‍करण दुनिया के विभिन्‍न हिस्‍सों में पाये जाते हैं। ऐसे लोग इस बात से भी अनभिज्ञ होते हैं कि काल्‍पनिक समाजवाद की इस धारा के बरक्‍स मार्क्‍स और एंगेल्‍स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की भी एक धारा है जो दरअसल काल्‍पनिक समाजवाद की धारा के साथ आलोचनात्‍मक संबन्‍ध रखते हुए और उसे कल्‍पना की दुनिया से वास्‍तविक और व्‍यवहारिक दुनिया में लाने की प्रक्रिया में विकसित हुई है। काल्‍पनिक समाजवाद से वैज्ञानिक समाजवाद की इस विकासयात्रा को समझने के लिए शायद सबसे बेहतर रचना एंगेल्‍स की प्रसिद्ध पुस्तिका ‘समाजवाद: काल्‍पनिक तथा वैज्ञानिक’है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध मार्क्‍सवादी मॉरिस काॅर्नफ़ोर्थ ने इस पुस्तिका के बारे में लिखा है: ”मार्क्‍स और एंगेल्‍स की सभी कृतियों में से, शुरुआती पाठक के लिए यह शायद सर्वश्रेष्‍ठ है। यह बेहद स्‍पष्‍ट और सरल शैली में लिखी गयी है और वैज्ञानिक समाजवाद के बुनियादी विचारों से पाठक को परि‍चित कराती है।”

Samajwad-kalpnik-tatha-Vaigyanik‘समाजवाद: काल्‍पनिक तथा वैज्ञानिक’ मूलत: एक वृहत्‍तर ग्रन्‍थ ड्यूहरिंग मत-खण्‍डन का अंग थी जिसे एंगेल्‍स ने यूजीन ड्यूहरिंग नामक एक जर्मन प्रोफ़ेसर द्वारा प्रतिपादि‍त समाजवाद के एक विचित्र सिद्धान्‍त की आलोचना के उद्देश्‍य से लिखा था। फ्रांसीसी मार्क्‍सवादी पॉल लफ़ार्ग के अनुरोध पर एंगेल्‍स ने इस पुस्तिका के तीन अध्‍यायों को एक पैम्‍फ़लेट की शक्‍़ल दी थी। देखते ही देखते यह पैम्‍फ़लेट काफ़ी लोकप्रिय हो गया और इसका विश्‍व की तमाम भाषाओं में अनुवाद किया गया।

इस पुस्तिका के पहले अध्‍याय की शुरुआत में एंगेल्‍स महान फ्रांसीसी क्रान्ति के बाद के यूरोप के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्‍य की चर्चा करते हुए बताते हैं कि किस प्रकार पूँजीवाद के अस्तित्‍व में अाने के बाद ”सम्‍पत्ति की स्‍वतंत्रता” छोटे उत्‍पादकों और किसानों के लिए ”सम्‍पत्ति से वंचित होने की स्वतंत्रता” बन गयी और सामन्‍ती बुराइयों की जगह पूँजीवादी बुराइयों के लेने से व्‍यापार अधिकाधिक धोखा और फ़रेब बनता गया। ”बन्‍धुत्‍व” के क्रान्तिकारी आदर्श का स्‍थान व्‍यापारिक होड़ के छल-कपट और ईर्ष्‍या-द्वेष ने ले लिया। ज़ोर-ज़ुल्‍म-ज़बर्दस्‍ती की जगह भ्रष्‍टाचार ने ले ली और सामाजिक शक्ति का मुख्‍य अस्‍त्र तलवार की जगह रुपया हो गया। वेश्‍यावृत्ति इतनी बढ़ गयी कि पहले कभी ऐसा सुना भी नहीं गया था। विवाह पहले की ही तरह वेश्‍यावृत्ति को ढँक रखने का एक आवरण, उसका एक क़ानून द्वारा स्‍वीकृत रूप रहा, और साथ ही साथ व्‍यभिचार भी खू़ब होता रहा। ये वो परिस्‍िथतियां थीं जिनमें कल्‍पनावादी समाजवादियों (फ्रांस के सेंट सीमों एवं फ़ूरिये तथा इंग्‍लैण्‍ड के राॅबर्ट ओवेन) ने समाजवाद के अपने सिद्धान्‍त प्रस्‍तुत किये। परन्‍तु ”पूँजीवादी उत्‍पादन की तथा वर्ग-सम्‍बन्‍धों की अपरिपक्‍व अवस्‍था के अनुरूप ही अपरिपक्‍व सिद्धान्‍त निकले। सामाजिक समस्‍याओं का समाधान अभी तक अविकसित आर्थिक अवस्‍थाओं के गर्भ में छिपा हुआ था, किन्‍तु इन कल्‍पनावादियों ने उसे मानव-मस्तिष्‍क में से ढूँढ़ निकालने की कोशिश की। समाज में अन्‍याय ही अन्‍याय थे, मनुष्‍य के विवेक का यह काम था कि उन्‍हें दूर करे। यह आवश्‍यक था कि एक नयी और अधिक निर्दोष समाज-व्‍यवस्‍था का आविष्‍कार किया जाये, और उसे बाहर से, प्रचार द्वारा, या जहां सम्‍भव हो, आदर्श प्रयोगों के उदाहरण द्वारा, समाज के ऊपर लाद दिया जाये।” काल्‍पनिक समाजवाद के ये तीनों ही प्रवर्तक यह नहीं बता सके कि जिस आदर्श समाज की वे कल्‍पना करते हैं वह वास्‍तव में अस्तित्‍व में कैसे आयेगा। वे समाज के विकास के नियमों की काेई वैज्ञानिक समझ नहीं स्‍थापित कर सके और पूँजीवादी समाज के अन्‍तरविरोधों की शिनाख्‍़त न कर सके।

इसके बाद एंगेल्‍स यह दिखलाते हैं कि मार्क्‍स ने किस प्रकार समाजवाद को महज़ एक कल्‍पना से विज्ञान में तब्‍दील किया। पुस्तिका के दूसरे अध्‍याय में वैज्ञानिक समाजवाद के दार्शनिक आधार यानी द्वंद्वात्‍मक भौतिकवाद की चर्चा की गयी है। इस अध्‍याय में एंगेल्‍स तथाकथित अधिभूतवादी तर्क प्रणाली के ऊपर हेगेल की द्वंद्वात्‍मक तर्क प्रणाली की श्रेष्‍ठता दिखाते हुए बताते हैं कि द्वंद्वात्‍मक प्रणाली में ”यह पूरा जगत – प्राकृतिक, ऐतिहासिक तथा मानसिक जगत, पहली बार एक प्रक्रिया के रूप में, अर्थात् सतत् प्रवाह, गति, परिवर्तन तथा विकास की अवस्‍था में चित्रित किया गया है, और साथ ही उस आन्‍तरिक सम्‍बन्‍ध को, उस सूत्र को पकड़ने की कोशिश की गयी है, जिससे इस समस्‍त गति और विकास को एक क्रमबद्ध व्‍यवस्‍था का रूप मिल सके।” दूसरी ओर अधिभूतवादी प्रणाली चीज़ों को स्थिर रूप में और एक दूसरे से अलग-थलग करके देखती है। इसके साथ ही एंगेल्‍स हेगेल के द्वंद्ववाद की कमी बताते हुए कहते हैं कि ”हेगेल आदर्शवादी थे। उनके निकट मानव मस्तिष्‍क के विचार वास्‍तविक वस्‍तुओं और क्रियाओं के न्‍यूनाधिक निराकार प्रतिबिम्‍ब न थे, उल्‍टे यह वस्‍तुएं और उनका विकास किसी ”विचार” का व्‍यक्‍त, मूर्त और प्रतिफलित रूप था, और इस ”विचार” का संसार के पहले से ही, अनादि काल से अस्तित्‍व रहा है। इस चिन्‍तन प्रणाली ने हर चीज़ को सिर के बल उलट दिया और संसार में वस्‍तुओं के यथार्थ सम्‍बन्‍ध को बिल्‍कुल उलट डाला।” मार्क्‍स का योगदान यह रहा कि उन्‍होंने हेगेल के द्वंद्ववाद को उसके पैरों पर खड़ा किया और मनुष्‍य की चेतना को उसकी सत्‍ता का आधार मानने की बजाय मनुष्‍य की सत्‍ता को उसकी चेतना का आधार प्रमाणित किया। एंगेल्‍स कहते हैं: ”पुराने समाजवादी, पूँजीवाद के अन्‍तर्गत अनिवार्य, मज़दूर-वर्ग के शोषण की जितनी ही तीव्र निन्‍दा करते थे, उतना ही वे यह समझाने में, स्‍पष्‍ट रूप से यह दिखलाने में असमर्थ रहते थे कि यह शोषण किस बात में है और कैसे उत्‍पन्‍न होता है। इसके लिए यह आवश्‍यक था कि एक ओर, पूँजीवादी उत्‍पादन-प्रणाली के ऐतिहासिक अन्‍तरसम्‍बन्‍धों को दर्शाया, और यह दिखलाया जाये कि एक विशेष ऐतिहासिक युग में उसका उत्‍पन्‍न होना अनिवार्य था, और इसलिए उसका पतन भी अवश्‍यंभावी है; और दूसरी ओर, पूँजीवादी उत्‍पादन-प्रणाली के मौलिक स्‍वरूप को, जो अभी भी एक रहस्‍य बना हुआ था, प्रकट किया जाये। अतिरिक्‍त मूल्‍य की खोज ने यह काम कर दिया। यह दिखलाया गया कि पूँजीवादी उत्‍पादन-प्रणाली और उसके अन्‍तर्गत होनेवाले मज़दूर के शोषण का आधार यह है कि मज़दूर की मुफ़्त की मेहनत से जिस मूल्‍य की सृष्टि होती है, मालिक उसे हड़प लेता है।…”

पुस्तिका के तीसरे अध्‍याय में इतिहास की भौतिकवादी धारणा के बारे में बताते हुए एंगेल्‍स कहते हैं: ”…मानव-जीवन के पोषण के लिए आवश्‍यक साधनों का उत्‍पादन, और उत्‍पादन के बाद, उत्‍पादित वस्‍तुओं का विनिमय प्रत्‍येक समाज-व्‍यवस्‍था का आधार है; इतिहास में अब तक जितनी समाज व्‍यवस्‍थायें हुई हैं, उनमें जिस प्रकार धन का वितरण हुआ है, और समाज का वर्गों अथवा श्रेणियों में बँटवारा हुआ है वह इस बात पर निर्भर रहा है कि उस समाज में क्‍या उत्‍पादन हुआ है, और कैसे हुआ है, और फिर उत्‍पत्ति का वि‍निमय कैसे हुआ है। इस दृष्टिकोण के अनुसार सभी सामाजिक परिवर्तनों और राजनीतिक क्रान्तियों के अन्तिम कारण मनुष्‍य के मस्तिष्‍क में नहीं हैं और न शाश्‍वत सत्‍य तथा न्‍याय के विषय में उसकी गहनतर अन्‍तरदृष्टि में ही, वे उत्‍पादन तथा विनिमय-प्रणाली में होने वाले परिवर्तनों में निहित हैं। उनका पता लगाना है, तो वे हमें प्रत्‍येक युग के दर्शन में नहीं, अर्थव्‍यवस्‍था में मिलेंगे।…” इस अध्‍याय में पूँजीवाद के मूलभूत अन्‍तरविरोध के बारे में बताते हुए एंगेल्‍स कहते हैं कि यह इस बात में निहित है कि पूँजीवाद में उत्‍पादन सामाजिक रूप से होता है जबकि उसका निजी रूप से हस्‍तगतीगरण कर लिया जाता है। यही वह अन्‍तरविरोध है जि‍समें आज की सभी सामाजिक समस्‍याओं के बीज निहित हैं। पूँजी के उद्धरण के ज़रिये एंगेल्‍स यह दिखाते हैं किस प्रकार पूँजीवाद समाज के एक छोर पर धन का संचय और उसी अनुपात में दूसरे छोर पर दुख, श्रम की यंत्रणा, दासता, अज्ञानता, क्रूरता तथा मानसिक पतन का संचय करता है।

तीसरे अध्‍याय में एंगेल्‍स यह भी दिखलाते हैं कि किस प्रकार पूँजीवादी व्‍यवस्‍था द्वारा सामाजिक उत्‍पादन के क्षेत्र में फैली अराजकता नियमित आर्थिक संकटों का कारण बनती हैं। एंगेल्‍स यह भी दर्शाते हैं कि कालान्‍तर में पूँजीवादी होड़ की स्‍वतंत्रता ठीक उल्‍टी चीज़ यानी एकाधिकार में तब्‍दील हो जाती है और बड़े-बड़े ट्रस्‍टों और ज्‍वाॅइण्‍ट स्‍टॉक कम्‍पनियों का उदय होता है। एंगेल्‍स कहते हैं: ”अगर इन संकटों ने यह दिखला दिया है कि पूँजीपति वर्ग आधुनिक उत्‍पादक शक्तियों का नियन्‍त्रण करने में अब और समर्थ नहीं है, तो उत्‍पादन और परिवहन के बड़े-बड़े संगठनों के, ज्‍वॉइण्‍ट स्‍टाॅक कम्‍पनी, ट्रस्‍ट और राजकीय सम्‍पत्ति के रूप में बदले जाने से यह जाहिर हो जाता है कि इस काम के लिए पूँजीपति वर्ग की ज़रूरत भी नहीं है। पूँजीपतियों के सभी सामाजिक कर्तव्‍य आज वेतनभोगी कर्मचारियों द्वारा सम्‍पन्‍न होते हैं। अब पूँजीपतियों की सामाजिक भूमिका इस बात में रह गयी है कि वे नफ़े की रक़म से अपनी जेबें भरें, चेक काटें और शेयर बाज़ार में, जहां एक पूँजीपति दूसरे पूँजीपति की पूँजी पर हाथ साफ़ करता है, जुआ खेलें। पहले, उत्‍पादन की पूँजीवादी प्रणाली मज़दूरों को बेकार बना देती है। अब वह मज़दूरों की तरह पूँजीपतियों को भी बेकार बना देती है, उन्‍हें एकदम औद्योगिक रिज़र्व सेना में तो नहीं, लेकिन फ़ाजिल जनसंख्‍या की श्रेणी में अवश्‍य डाल देती है। ”  पूँजीवाद के अन्‍त‍रविरोधों की तार्किक परिणति के रूप में सर्वहारा क्रान्ति की अवश्‍यंभाविता को स्‍पष्‍ट करते हुए एंगेल्‍स कहते हैं: ” जब पूँजीवादी उत्‍पादन-प्रणाली अधिकांश जनसंख्‍या को अधिकाधिक पूर्ण रूप में सर्वहारा बना देती है, तो वह इस शक्ति को भी उत्‍पन्‍न करती है, जिसे अनिवार्य रूप से यह क्रान्ति पूरी करनी है, और नहीं तो मिट जाना है। जब यह प्रणाली उत्‍पादन के विराट साधनों को, जो पहले से ही सामाजिक रूप ग्रहण कर चुके हैं, अधिकाधिक राजकीय सम्‍पत्ति में बदल देती है, तो वह स्‍वयं इस क्रान्ति को पूरा करने का रास्‍ता दिखा देती है। सर्वहारा वर्ग राजनीतिक सत्‍ता पर अधिकार करता है, और उत्‍पादन के साधनों को राजकीय साधनों में बदल देता है। …  इतिहास में पूँजीवादी उत्‍पादन-प्रणाली के आविर्भाव के बाद से, कुछ व्‍यक्तियों ने और सम्‍प्रदायों ने भी अक्‍सर भविष्‍य के एक आदर्श के रूप में उत्‍पादन के सभी साधनों पर समाज के आधिकार की न्‍यूनाधिक अस्‍पष्‍ट कल्‍पना की है। परन्‍तु यह तभी सम्‍भव हो सकता था, ऐतिहासिक रूप से अनिवार्य तभी हो सकता था, जब उसकी प्राप्ति के लिए वास्‍तविक परिस्थितियां मौजूद हों।”

अन्‍त में एंगेल्‍स यह दिखलाते हैं कि समाजवाद के स्‍थापित होने से सामाजिक उत्‍पादन में फैली अराजकता योजनाबद्ध संगठन की ओर बढ़ती है। नतीजतन आर्थिक शक्ति की दया पर निर्भर रहने की बजाय मनुष्‍य सचेतन रूप से अपनी ज़‍िन्‍दगी की योजना बनायेगा और अपना इतिहास खुद रचेगा। यह ”आवश्‍यकता के राज से स्‍वतन्‍त्रता के राज में मनुष्‍य की छलांग है।”

इस पुस्तिका की शुरुआत में दिये गये परचिय में एंगेल्‍स यूरोप में भौतिकवादी दर्शन के विकास के विभिन्‍न चरणों को विस्‍तार से बताते हैं। मार्क्‍सवाद के आरंभिक पाठकों के लिए यह परिचय थोड़ा जटिल लग सकता है। ऐसे में इस परिचय को पहले पढ़ने की बजाय इस पुस्तिका के तीनों अध्‍यायों को पहले पढ़ा जा सकता है।

ज़ाहिरा तौर पर 21वीं सदी में पूँजीवाद के तौर-तरीकों में 19वीं सदी के मुका़बले काफ़ी बदलाव हो चुके हैं। परन्‍तु यह भी सच है कि मार्क्‍सवादी दृष्टिकोण से पूँजीवाद की बुनियादी समझ बनाये बिना आज के दौर के पूँजीवाद को नहीं समझा जा सकता और प्रति‍रोध की कोई कारगर रणनीति नहीं विकसित की जा सकती है। इस बुनियादी समझ को बनाने के लिए एंगेल्‍स द्वारा रचित ‘समाजवाद: काल्‍पनिक तथा वैज्ञानिक’ एक अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण रचना है।

यह पुस्तिका जनचेतना पर उपलब्‍ध है। इसे डाक द्वारा मंगाने के लिए फोन, ईमेल अथवा फे़सबुक से सम्‍पर्क करें:
फोन नं: 08853093555
ईमेल: info@janchetnabooks.org
फ़ेसबुक: facebook.com/janchetnabooks

 

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-अप्रैल 2015

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।