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बेर्टोल्ट ब्रेष्ट के 114वें जन्मदिवस (10 फरवरी) के अवसर पर
कौयनर महाशय की कहानियाँ
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
ताकत के खिलाफ कार्यवाही
विचारक कौयनर महाशय ज्यों ही एक बड़े हाल में काफी तादाद में इकट्ठा हुए लोगों के सामने ताकत के खिलाफ बोल रहे थे, उन्होंने देखा कि लोग पीछे हट कर रास्ता पकड़ने लगे हैं। उन्होंने चारों ओर नजर दौड़ाई और पाया कि उनके पीछे ताकत खड़ी है।
‘‘क्या बोल रहे थे तुम?’’-ताकत ने उनसे पूछा।
‘‘मैं ताकत के पक्ष में बोल रहा था’’-कौयनर महाशय ने जवाब दिया।
कौयनर महाशय जब वापस जा रहे थे, तब उनके चेलों ने उनकी रीढ़ की हड्डी के बाबत पूछा। कौयनर महाशय ने जवाब दिया-‘‘मेरे पास तुड़वाने के लिए रीढ़ की हड्डी नहीं है। खासकर जब कि मुझे भी ताकत से ज्यादा अर्से तक जिंदा रहना है।’’ और फिर कौयनर महाशय ने यह कहानी सुनायी-
ऐगे महाशय के घर में, जिन्होंने सिर्फ एक शब्द ‘नहीं’ बोलना ही सीखा था, अंधेरगर्दी के जमाने में एक नुमायंदा आया। उसने एक फरमान दिखाया जिस पर उन तमाम लोगों के दस्तखत थे, जो कि शहर के हाकिम थे। फरमान में लिखा था कि इस आदमी के पैर जिस किसी घर में दाखिल होंगे, वह इसके कब्जे में होगा और वहां का हर किस्म का भोजन भी। अपनी इच्छा मुताबिक वह हर उस आदमी को अपनी सेवा के लिए चुन सकता है, जिस पर उसकी नजर पड़े।
नुमायन्दा एक कुर्सी पर बैठा, भोजन छका, कुल्ला किया, नीचे पसरा और चेहरा दीवार पर सटा कर नींद की मौज में आने से पहले सवाल किया-‘क्या तुम मेरी खातिरदारी करोगे?’
ऐगे महाशय ने उसे एक लिहाफ ओढ़ाया, मक्खियां उड़ाईं, उसकी नींद की चैकसी की और उस दिन की तरह लगातार यह क्रम सात साल तक दोहराया। लेकिन इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी उसके लिये किया, यह एहतियात बरता कि एक भी शब्द मुंह से न निकले। जब सात साल गुजर चुके और नुमायंदा बेहद खाते-पीते-सोते और हुक्म देते-देते मुटा गया तो एक दिन वह मर गया। ऐगे महाशय ने तब उसकी लाश चीथड़ों में लपेटी और घसीट कर घर से बाहर फेंक दी। वह खाट जिस पर वह सोता था, साफ की, दीवारों पर सफेदी पोती और एक गहरी सांस छोड़ते हुए जवाब दिया-‘नहीं’।
‘क’ महाशय का मनपसन्द जानवर
महाशय ‘क’ से जब पूछा गया कि उनका मनपसन्द जानवर कौन है, तो उन्होंने हाथी का नाम लिया और उसकी उपयोगिता सिद्ध करते हुए कहा-हाथी में ताकत और चतुराई शामिल है। ऐसी दयनीय किस्म की चतुराई नहीं जो किसी अत्याचार से बचने या भोजन छीनने के लिए ही काफी हो, बल्कि ऐसी चतुराई जिसके जरिये वह बड़ा से बड़ा काम करने में समर्थ है। जहां कहीं यह जानवर पाया जाता है, वहां अपने पैरों की भारी छाप छोड़ जाता है। इसके अलावा यह भले स्वभाव का और विनोदी भी है। जितना अच्छा दोस्त है, उतना ही अच्छा दुश्मन भी। भारी भरकम शरीर का होते हुए भी खासा तेज है। उसकी सूंड इतने भारी शरीर को छोटी से छोटी चीज खाने के लिए पहुंचा देती है-बादाम तक भी। उसके कानों की यह खूबी है कि केवल वही सुनते हैं, जो उसे भाता है। लम्बी उम्र जीता है। मिलनसार है और महज हाथियों तक ही नहीं। सभी उसे प्यार करते हैं, लेकिन उतना ही डरते भी हैं। अचरज की बात यह है कि उसकी पूजा भी होती है। इतनी मोटी चमड़ी का है कि उसमें चाकू भी टूट जाये, लेकिन उसकी भावनाएं बहुत कोमल हैं। वह उदास हो सकता है और गुस्सा भी। मस्ती से नाचता है और मरना बीहड़ों में पसन्द करता है। बच्चों तथा दूसरे छोटे जानवरों को वह खूब प्यार करता है। दिखने में भूरा है, लेकिन अपने मांसल शरीर से दूसरों का ध्यान बरबस खींच लेता है। खाये जाने के काबिल यह नहीं है। काम अच्छा कर सकता है।
मस्ती से पीता है और मस्त रहता है। कला के लिए भी थोड़ा बहुत करता है-हाथी दांत यही देता है।
मतलबपरस्त
‘क’ महाशय ने नीचे लिखे सवालों को पेश किया-
रोज सुबह मेरा पड़ोसी ग्रामोफोन पर संगीत सुनता है। उसे संगीत की जरूरत क्यों पड़ी? इसलिए कि वह कसरत करता है, ऐसा मैंने सुना। वह कसरत क्यों करता है? मैंने सुना है कि उसे ताकत की जरूरत है। ताकत की जरूरत उसे क्यों पड़ी? इसलिए कि शहर में उसे अपने दुश्मनों का सफाया करना है। अपने दुश्मनों को वह क्यों खत्म करना चाहता है? क्योंकि वह भोजन चाहता है, मैंने सुना।
इतना सुनने के बाद कि उनका पड़ोसी कसरत के लिए संगीत सुनता है, ताकतवर होने के लिए कसरत करता है, ताकतवर अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए बनना चाहता है और दुश्मनों को इसलिए खत्म करता है कि वह खा सके। ‘क’ महाशय ने फिर सवाल उठाया-‘क्यों खाता है वह?’
बातचीत
‘अब हम आपस में कतई बातचीत नहीं कर सकते,’ महाशय ‘क’ ने एक आदमी से कहा।
‘क्यों’? उसने चैंकते हुए पूछा।
‘मैं अपनी तर्कसंगत बात अब तुम्हारे आगे नहीं रख सकता।’ महाशय ‘क’ ने लाचारी जाहिर की।
‘लेकिन इस बात से मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता।’ दूसरे ने तसल्ली जाहिर की।
‘मुझे पता है,’ महाशय ‘क’ ने खीझते हुए कहा-‘लेकिन मुझ पर इसका असर पड़ता है।’
मुलाकात
एक आदमी जिसने ‘क’ महाशय को काफी लम्बे अरसे से नहीं देखा था, मिलने पर उनसे कहा-‘आप तो बिल्कुल भी नहीं बदले।’
‘अच्छा’। महाशय ‘क’ ने कहा और पीले पड़ गये।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2012
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