जहां तक ऐतिहासिक अर्थों में पूंजीवादी विकास के प्रगतिशील होने का प्रश्न है, तो निश्चित तौर पर वह ऐतिहासिक तौर पर प्रगतिशील ही होता है। पूंजीवादी उत्पादन सम्बन्धों के प्रमुख उत्पादन सम्बन्ध बन जाने के बाद भी उत्तरोत्तर पूंजीवादी विकास ऐतिहासिक तौर पर प्रगतिशील ही होता है क्योंकि इसका अर्थ होता है, उत्पादन व श्रम का और बड़े पैमाने पर समाजीकरण और समाजवाद की ज़मीन का तैयार होना। ऐसा कहने में हम कुछ नया भी नहीं कह रहे हैं, बल्कि केवल मार्क्स, एंगेल्स व लेनिन को ही दुहरा रहे हैं। क्या पीआरसी का लेखक यह कहना चाहता है कि ऐतिहासिक तौर पर पूंजीवादी सम्बन्धों का उत्तरोत्तर विकास प्रगतिशील नहीं है? तब फिर उसे लेनिन की आलोचना लिखने का कार्यभार भी अपने हाथों में ले ही लेना चाहिए! ऐसी सोच अन्तत: टुटपुंजिया आर्थिक रूमानीवाद और छोटी पूंजी के रक्षावाद की ओर ले जाती है।
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