उनका यह लेख न सिर्फ सिद्धान्त के क्षेत्र में भयंकर अज्ञान को दिखलाता है, बल्कि इतिहास के क्षेत्र में भी उतने ही भयंकर अज्ञान को प्रदर्शित करता है। राष्ट्रवाद, बुण्डवाद और त्रॉत्स्कीपंथ का यह भ्रमित और अज्ञानतापूर्ण मिश्रण कम्युनिस्ट आन्दोलन के तमाम जेनुइन कार्यकर्ताओं को भी भ्रमित करता है और इसीलिए हमने विस्तार से इसकी आलोचना की आवश्यकता महसूस की। बहुत-से पहलुओं पर और भी विस्तार से लिखने की आवश्यकता है, जिसे हम पंजाब के राष्ट्रीय प्रश्न और भारत में राष्ट्रीय प्रश्न पर लिखते हुए उठाएंगे। साथ ही, इतिहास के भी कई मसलों पर हमने यहां उतनी ही बात रखी है, जितनी कि ‘ललकार-प्रतिबद्ध’ ग्रुप द्वारा पेश बुण्डवादी, राष्ट्रवादी व त्रॉत्स्कीपंथी कार्यदिशा के खण्डन के लिए अनिवार्य थी। लेकिन राष्ट्रीय प्रश्न को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए वे मुद्दे भी दिलचस्प हैं और उन पर भी हम भविष्य में लिखेंगे।
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