एक बातबदलू बौद्धिक बौने की बदहवास, बददिमाग़, बदज़ुबान बौखलाहट, बेवकूफियां और बड़बड़ाहट
मास्टरजी ने धनी किसान आंदोलन की पूंछ पकड़ने के लिए पहले जो (कु)तर्क दिए थे अब वे उनकी गले की फांस बन गए हैं, जो ना तो उनसे निगलते बन रहे हैं और न उगलते। यही कारण है कि अब उन (कु)तर्कों को सही साबित करने के लिए झूठ बोलने, अंतहीन कुतर्क करने, इतिहास का विकृतिकरण करने से लेकर गाली-गलौच और कुत्साप्रचार करने तक वे हर चाल अपना रहे हैं। केवल मार्क्सवादी विश्लेषण ही उनके लेख में दिखलाई नहीं देता है। हमारी सलाह होगी कि बदहवासी और बौखलाहट में इधर-उधर भागने और उछल-कूद मचाने से बेहतर है कि मास्टरजी ईमानदारी से नंगे शब्दों में धनी किसानों-कुलकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर कर दें या ईमानदारी से अपने छात्रों के सामने अपनी प्रचण्ड मूर्खताओं पर अपनी आत्मालोचना पेश कर दें। ऐसा करने से उन्हें यक़ीनन कम तक़लीफ़ होगी!
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