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भगतसिंह ने कहा

समाज का प्रमुख अंग होते हुए भी आज मज़दूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन शोषक पूँजीपति हड़प जाते हैं। दूसरों के अन्नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मुहताज हैं…-इसके विपरीत समाज के जोंक पूँजीपति ज़रा-ज़रा सी बातों के लिए लाखों का वारा-न्यारा कर देते हैं।

उद्धरण

उद्धरण भगतसिंह ने कहा “क्रान्ति से हमारा क्या आशय है, यह स्पष्ट है। इस शताब्दी में इसका सिर्फ़ एक ही अर्थ हो सकता है-जनता के लिए जनता का राजनीतिक शक्ति…

उद्धरण

“आदमी का हृदय जब वीर कृत्यों के लिए छटपटाता हो, तो इसके लिए वह सदा अवसर भी ढूँढ लेता है। जीवन में ऐसे अवसरों की कुछ कमी नहीं है और अगर किसी को ऐसे अवसर नहीं मिलते, तो समझ लो कि वह काहिल है या फिर कायर या यह कि वह जीवन को नहीं समझता।”

“अदालत एक ढकोसला है”

कानून की पवित्रता तभी तक रखी जा सकती है जब तक वह जनता के दिल यानी भावनाओं को प्रकट करता है। जब यह शोषणकारी समूह के हाथों में एक पुर्ज़ा बन जाता है तब अपनी पवित्रता और महत्व खो बैठता है। न्याय प्रदान करने के लिए मूल बात यह है कि हर तरह लाभ या हित का ख़ात्मा होना चाहिए। ज्यों ही कानून सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना बन्द कर देता है त्यों ही जुल्म और अन्याय को बढ़ाने का हथियार बन जाता है। ऐसे कानूनों को जारी रखना सामूहिक हितों पर विशेष हितों की दम्भपूर्ण ज़बरदस्ती के सिवाय कुछ नहीं है।

भगतसिंह की वैचारिक विरासत और हमारा समय

”भगतसिंह पर ही इतना ज़ोर क्यों?” – इतिहास के एक प्रतिष्ठित विद्वान ने पिछले दिनों पूछा। उनका कहना था कि देश के हालात आज इतने बदल चुके हैं कि भगतसिंह ने जो कुछ भी लिखा-सोचा और बयान दिया, वे आज हमारे लिए मार्गदर्शक नहीं हो सकते। फिर क्या यह महज़ भावनाओं, भावुकता या उत्तेजना के सहारे इतिहास-निर्माण का प्रयास नहीं है, क्या यह भी नायक-पूजा का एक उपक्रम नहीं है?

‘इंकलाब-ज़ि‍न्दाबाद’ का अर्थ

क्रान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर ओत-प्रोत रहनी चाहिए, जिससे कि रूढ़िवादी शक्तियाँ मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने को संगठित न हो सकें। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव बदलती रहे और वह नयी व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि यह आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके। यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको हृदय में रखकर हम ‘इंक़लाब जिन्दाबाद’ का नारा बुलंद करते हैं।

उद्धरण

जब भी नैतिकता धर्मशास्त्र पर आधारित होगी, जब भी अधिकार किसी दैवी सत्ता पर निर्भर होंगे, तो सबसे अनैतिक, अन्यायपूर्ण, कुख्यात चीज़ें सही ठहरायी जा सकती हैं और स्थापित की जा सकती हैं।

भगतसिंह की स्मृति के निहितार्थ

अपने कई पत्रों, लेखों और कोर्ट में दिये गये बयानों में भगतसिंह ने यह स्पष्ट किया था कि वह और उनके साथी मात्र औपनिवेशिक दासता से मुक्ति के लिए नहीं लड़ रहे थे, बल्कि उनकी लड़ाई हर किस्म के पूँजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और एक न्यायपूर्ण, समतामूलक सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए जारी दीर्घकालिक महासमर की एक कड़ी थी। हमारे लिए भगतसिंह को याद करने का मतलब सिर्फ़ उनकी वीरता और कुर्बानी को ही नहीं बल्कि उनके लक्ष्य और विचारों को याद करना होना चाहिए।