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मिस्र में जनता सैन्य तानाशाही के खि़लाफ़ सड़कों पर

सैन्य शासकों को यह लग रहा है कि किसी भी किस्म के सांगठनिक प्रतिरोध की कमी के कारण वह स्वतःस्फूर्त प्रदर्शनों को कुचल सकते हैं। एक हद तक यह प्रक्रिया कुछ समय के लिए वाकई चल सकती है। लेकिन मिस्र के क्रान्तिकारी भी इस बीच एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं और आन्दोलन का नेतृत्व अपने हाथों में लेने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन फिलहाल राजनीतिक और विचारधारात्मक कमज़ोरियों के कारण यह सम्भव नहीं हो पा रहा है। इस ख़ाली जगह को फिलहाल धार्मिक कट्टरपंथी और उदार पूँजीवाद के पक्षधर भर रहे हैं।

गद्दाफ़ी की मौत के बाद अरब जनउभार: किस ओर?

पूरा अरब जनउभार वास्तव में उस घड़ी से आगे जा चुका है जिसे क्रान्तिकारी घड़ी कहा जा सकता था। मिस्र ही इस बार भी अग्रिम कतार में था और वहाँ कोई भी जनक्रान्ति पूरे अरब विश्व में एक ‘चेन रिएक्शन’ शुरू कर सकती थी। लेकिन किसी विकल्प, विचारधारा, संगठन और क्रान्तिकारी नेतृत्व की ग़ैर-मौजूदगी में यह घड़ी बीत गयी है। यह आने वाले समय के सभी जनान्दोलनों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक दे गया है। स्वतःस्फूर्त जनान्दोलन और पूँजीवाद-विरोध पर्याप्त नहीं है। विकल्प का स्पष्ट ढाँचा और उसे लागू कर सकने के लिए सही विचारधारात्मक समझ वाला नेतृत्व और संगठन अपरिहार्य है, यदि वास्तव में हम एक बेहतर समय में प्रवेश करना चाहते हैं।

नौजवान जब भी जागा, इतिहास ने करवट बदली है!

मिस्र के बहादुर नौजवानों ने सारी दुनिया के नौजवानों के सामने एक नज़ीर पेश की है। क्या हिन्दुस्तान के नौजवान मिस्र के युवाओं से प्रेरणा लेकर अपने देश में जारी इस लूटतन्त्र के ख़िलाफ आगे बढ़ेंगे? क्या वे अपने देश में भयानक शोषण के शिकार करोड़ों मज़दूरों और भारी ग़रीब आबादी के साथ खड़े होंगे?

अरब जनउभार के मायने

मौजूद अरब जनउभार अरब जनता के लिए सीखने की एक पाठशाला साबित होगा। इसलिए यह जनविद्रोह हर इंसाफपसन्द और साम्राज्यवाद से नफ़रत करने वाले इंसान के लिए ख़ुशी का सबब है। इसमें आम नौजवानों और स्त्रियों की ज़बरदस्त भागीदारी ख़ासतौर पर उम्मीद का संचार करती है। यह भविष्य के बारे में काफ़ी-कुछ बताता है। निकट भविष्य में शायद साम्राज्यवाद इस अरब जनउभार से बस सिहरकर रह जाये, लेकिन वह भविष्य भी कोई शताब्दी दूर नहीं जब अरब एशिया, अफ़्रीका और लातिनी अमेरिका के साथ उन ज़मीनों में से एक बनेगा जहाँ जनता के बहादुर बेटे-बेटियाँ साम्राज्यवाद और पूँजीवाद की कब्रें खोदेंगे। भारत के नौजवानों को भी मिस्र के नौजवानों से सीखने की ज़रूरत है। उन्हें भी अपने अन्दर अन्याय, अत्याचार, शोषण और उत्पीड़न के ख़िलाफ अपने दिलों में बग़ावत की ऐसी ही आग को जलाना होगा। कहीं ऐसा न हो कि जब निर्णय की घड़ी आये तो हम पीछे छूट जायें!