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पूँजीवादी समाज में बेरोज़गारी

पूँजीवादी उत्पादन तकनीकों के विकास और मशीनों के व्यापक तौर पर अपनाये जाने से कई श्रम कार्य इतने आसान बन गये कि बहुत-सी औरतें और बच्चे भी भाड़े के मजदूरों की जमात में शामिल हो सकते थे। पूँजीपति उन्हें काम पर रखना पसन्द करते थे क्योंकि उनसे कम मज़दूरी पर काम कराया जा सकता था। इसके साथ ही पूँजीवादी उत्पादन के फैलाव के साथ बड़ी संख्या में छोटे माल उत्पादक और छोटे पूँजीपति दिवालिया हो जाते हैं और अपनी श्रमशक्ति बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। छोटे व्यापारी, छोटे दुकानदार आदि को पूँजी लगातार उजाड़ती रहती है।

उपन्यास ‘वन हण्ड्रेड इयर्स ऑफ़ सॉलिट्यूड’ का एक अंश – केला बागान मज़दूरों का क़त्लेआम / गाब्रियल गार्सिया मार्केस

केला बागान मज़दूरों का क़त्लेआम (गाब्रियल गार्सिया मार्केस के उपन्यास ‘वन हण्ड्रेड इयर्स ऑफ़ सॉलिट्यूड’ का एक अंश) नया औरेलियानो अभी एक वर्ष का था जब लोगों के बीच मौजूद तनाव बिना किसी पूर्वचेतावनी के फूट पड़ा। खोसे आर्केदियो सेगुन्दो और अन्य यूनियन नेता जो अभी तक भूमिगत थे, एक सप्ताहान्त को अचानक प्रकट हुए और पूरे केला क्षेत्र के कस्बों में उन्होंने प्रदर्शन आयोजित किये। पुलिस बस सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखती रही। लेकिन सोमवार की रात को यूनियन नेताओं को उनके घरों से उठा लिया गया और उनके पैरों में दो-दो पाउण्ड लोहे की बेड़ियाँ डालकर प्रान्त की राजधानी में जेल भेज दिया गया। पकड़े गये लोगों में खोसे आर्केदियो सेगुन्दो और लोरेंज़ो गाविलान भी थे। गाविलान मेक्सिको की क्रान्ति में कर्नल रहा था जिसे माकोन्दो में निर्वासित किया गया था। उसका कहना था कि वह अपने साथी आर्तेमियो क्रुज़ की बहादुरी का साक्षी रहा था। लेकिन उन्हें तीन महीने के भीतर छोड़ दिया गया क्योंकि सरकार और केला कम्पनी के बीच इस बात पर समझौता नहीं हो सका कि जेल में उन्हें खिलायेगा कौन। इस बार मज़दूरों का विरोध उनके रिहायशी इलाक़ों में साफ-सफाई की सुविधाओं की कमी, चिकित्सा सेवाओं के न होने और काम की भयंकर स्थितियों को लेकर था। इसके अलावा उनका कहना था कि उन्हें वास्तविक पैसों के रूप में नहीं बल्कि पर्चियों के रूप में भुगतान किया जाता है जिससे वे सिर्फ़ कम्पनी की दुकानों से वर्जीनिया हैम ख़रीद सकते थे।

नौजवान जब भी जागा, इतिहास ने करवट बदली है!

मिस्र के बहादुर नौजवानों ने सारी दुनिया के नौजवानों के सामने एक नज़ीर पेश की है। क्या हिन्दुस्तान के नौजवान मिस्र के युवाओं से प्रेरणा लेकर अपने देश में जारी इस लूटतन्त्र के ख़िलाफ आगे बढ़ेंगे? क्या वे अपने देश में भयानक शोषण के शिकार करोड़ों मज़दूरों और भारी ग़रीब आबादी के साथ खड़े होंगे?

प्रो. लालबहादुर वर्मा का प्रेम-चिन्तन

अगले ही पैरा में लेखक एक और ऐसी बात कहता है जिससे यह संशय होता है कि या तो मार्क्सवाद की अपनी समझ से वे प्रस्थान कर चुके हैं, या फिर मार्क्सवाद में ही वे कोई नया इज़ाफ़ा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उन्नीसवीं सदी में क्रान्ति का सिद्धान्त रचा गया और उसके आधार पर व्यवहार भी विकसित हुआ, लेकिन इसके साथ ही लैंगिक राजनीति का उस अनुपात में विकास नहीं हो सका जिससे कि नारी आश्वस्त और सन्तुष्ट हो सके। अब इस पर क्या कहा जा सकता है? मार्क्सवाद अलग से किसी भी लैंगिक राजनीति का विरोध करता है। मानव मुक्ति के पूरे प्रोजेक्ट के तमाम हिस्सों में से एक हिस्सा जेण्डर प्रश्न का समाधान है, ठीक उसी प्रकार जैसे उसका एक हिस्सा जाति प्रश्न का समाधान भी है। लेकिन अलग से लैंगिक राजनीति वास्तव में अस्मितावादी राजनीति की ओर ले जाती है। एक बात और भी स्पष्ट नहीं हो पाती है कि लैंगिक राजनीति से प्रो. वर्मा का अर्थ सेक्सुअल पॉलिटिक्स है या फिर जेण्डर पॉलिटिक्स, क्योंकि इन दोनों में फ़र्क़ है। लेकिन यह भ्रम इस पूरे लेख में लगातार मौजूद रहता है। कहीं पर लैंगिक प्रश्न जेण्डर प्रश्न का अर्थ ध्वनित कर रहा है तो कहीं पर यह सेक्सुअल निहितार्थों में प्रकट हो रहा है। बहरहाल, यहाँ पर इन दोनों ही अर्थों में लैंगिक राजनीति का समर्थन करना ग़लत है। इस प्रश्न पर भी प्रो. वर्मा को अपनी अवस्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, कि वे किस प्रकार की लैंगिक राजनीति की वकालत कर रहे हैं, जिससे कि सभी वर्गों की नारियाँ ‘आश्वस्त और सन्तुष्ट’ हो जायें।

क्रान्तिकारी कवि ज्वालामुखी नहीं रहे

‘आह्वान’ और इसके साथी संगठनों से ज्वालामुखी बहुत करीबी जुड़ाव महसूस करते थे। भारतीय समाज की सच्चाइयों और क्रान्ति की मंजिल की पहचान करने और नये रास्तों के सन्धान की हमारी कोशिशों में बहुत से मतभेदों के बावजूद वे हमारी क्रान्तिकारी भावना और जोश के भागीदार थे और हमारे बहुत से आयोजनों में उनकी मौजूदगी युवा कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणादायी होती थी। हम ‘आह्वान’ की पूरी टीम की ओर से जनसंघर्षों के इस सहयोद्धा कवि को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।