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शेयर बाज़ार का गोरखधन्धा

शेयर बाज़ार वित्तीय बाज़ार का एक अंग है जो एक मायावी जंजाल प्रतीत होता है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे शैतान की खाला भी नहीं समझ सकती। सभी बड़े अखबारों का एक पन्ना वित्तीय बाज़ार की कारगुजारियों को ही समर्पित रहता है। समाचार चैनलों पर भी शेयरों के दामों की गतिविधियाँ मिनट-मिनट में अपडेट होती रहती हैं। निवेशकों की सेहत वित्तीय बाज़ार की सेहत से एकरूप होती है। शेयरों के बाज़ार भावों के चढ़ने-गिरने का उनकी सेहत पर भी सीधा असर पड़ता है। बिना हाथ-पैर चलाये तुरन्त अमीर बन जाने की चाहत में लोग शेयर बाज़ार में पैसा लगाते हैं और आये दिन बर्बाद होते रहते हैं। ऐसा नहीं है कि हर कोई कंगाल-बर्बाद ही होता है, कुछ बड़े खिलाड़ी भी रहते हैं जो मोटा पैसा ले उड़ते हैं। यह सब कुछ कैसे घटित होता है और कैसे चन्द मिनटों में ही बाज़ार से अरबों रुपये की पूँजी छूमन्तर हो जाती है और लोग सड़कों पर आ जाते हैं, यह जानना काफ़ी दिलचस्प है।

अब चीन की मन्दी से बेहाल विश्व पूँजीवाद

आज चीन की आर्थिक व्यवस्था डाँवाडोल है। विश्व आर्थिक व्यवस्था में पुएर्तो रिको, ब्राज़ील, पुर्तगाल, आइसलैण्ड, इटली, यूनान, स्पेन व अन्य देश अभी भी मन्दी से उबर नहीं पाए हैं, वहीं चीन वैश्विक व्यवस्था को एक और बड़े संकट की तरफ खींच कर ले जा रहा है जो दुनिया भर के पूँजीपतियों के लिए चिन्ता का सबब है। अगर हम चीन के राजनीतिक इतिहास पर एक नज़र डाल लें तो इस विषय में गहराई में उतरने में आसानी रहेगी। आज चीन में “बाज़ार समाजवाद” का जुमला नंगा हो चुका है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी एक सामाजिक फासीवादी पार्टी है। माओ की मृत्यु के बाद देंग सियाओ पिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी पर बुर्जुआ वर्ग का नियंत्रण पक्का किया। चीन ने 1976 से पूँजीवाद में संक्रमण किया था और आज पूर्ण रूप से वित्तीय पूँजी के विकराल भूमण्डलीय तंत्र का एक अभिन्‍न हिस्सा है। अमरीका की सबसे बड़ी आईटी कम्पनियों को सस्ता श्रम और ज़मीन देकर चीन की अर्थव्यवस्था विस्तारित हुई है। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए ‘बाज़ार समाजवाद’ कई दौर से होकर गुज़रा। कम्यून और क्रान्तिकारी कमिटियों को भंग करने के बाद 1990 के दशक में बड़े स्तर पर राज्य द्वारा संचालित कम्पनियों का निजीकरण शुरू हुआ और 21वीं शताब्दी में प्रवेश के दौरान कई विदेशी कम्पनियों ने चीन में प्रवेश किया। चीनी राज्य ने मज़दूरों को मिलने वाली स्वास्थ्य, शिक्षा सुविधाओं से भी अपने हाथ खींच लिए। आज के चीन की बात करें तो चीन में अमीर-ग़रीब की खाई पिछले 10 सालों में बेहद अधिक बढ़ी है। चीन की नामधारी कम्युनिस्ट पार्टी के खरबपति “कॅामरेड” और उनकी ऐय्याश सन्तानों का गिरोह व निजी पूँजीपति चीन की सारी सम्पत्ति का दोहन कर रहे हैं। चीन के सिर्फ़ 0.4 फीसदी घरानों का 70 फीसदी सम्पत्ति पर कब्ज़ा है। यह सब राज्य ने मज़दूरों के सस्ते श्रम को लूट कर हासिल किया है।