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उद्धरण

“जिसे ‘क़ानून की रूह’ और ‘परंपरा’ कहते हैं वह सभी जड़़मतियों के भेजे में घड़ी की तरह का एक ऐसा सादा यन्त्र पैदा कर देती है जिसकी कमानी के हिलने-डुलने से ही जड़तापूर्ण विचारों के पहिये घूमने लगते हैं। हर एक जड़मति का नारा होता है- जैसा जो अब तक रहा है वैसा ही हमेशा बना रहेगा। मरी मछली की ही तरह जड़मति भी दिमाग की तरफ़ से नीचे की ओर सड़ना शुरू करते हैं।”

कविता – लेनिन जिन्दाबाद / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem – The Unconquerable Inscription / Bertolt Brecht

तब जेल के अफ़सरान ने भेजा एक राजमिस्त्री।
घण्टे-भर वह उस पूरी इबारत को
करनी से खुरचता रहा सधे हाथों।
लेकिन काम के पूरा होते ही
कोठरी की दीवार के ऊपरी हिस्से पर
और भी साफ़ नज़र आने लगी
बेदार बेनज़ीर इबारत –
लेनिन ज़िन्दाबाद!
तब उस मुक्तियोद्धा ने कहा,
अब तुम पूरी दीवार ही उड़ा दो!

उद्धरण

केवल उन किताबों को प्यार करो जो ज्ञान का स्रोत हों, क्योंकि सिर्फ़ ज्ञान ही वन्दनीय होता है; ज्ञान ही तुम्हें आत्मिक रूप से मज़बूत, ईमानदार और बुद्धिमान, मनुष्य से सच्चा प्रेम करने लायक, मानवीय श्रम के प्रति आदरभाव सिखाने वाला और मनुष्य के अथक एवं कठोर परिश्रम से बनी भव्य कृतियों को सराहने लायक बना सकता है।