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हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था राम भरोसे!

शिक्षा के क्षेत्र में एनजीओ तो सक्रिय हैं ही, पीपीपी (पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप) के नाम पर इसे कम्पनियों को सौंपने की तैयारी भी हो रही है। योजना के तहत हरियाणा में पिछले 20 वर्षों में प्राइवेट स्कूलों की बाढ़-सी आयी है। सरकारी स्कूल तो लगातार खस्ता होते जा रहे हैं तो दूसरी ओर बड़े-बड़े फाइव-स्टारनुमा स्कूल राज्य के नेता-मंत्री या बड़े रसूखदार लोग खोलकर बैठे हैं। प्राइवेट स्कूल माफिया का सरकारों पर पूरा शिकंजा कसा हुआ है। हद तो तब हो गयी जब सरकार द्वारा तय 10 फीसदी ग़रीब बच्चों का कोटा तक इस गिरोह ने भरने से साफ मना कर दिया! यानी देश की जनता को भ्रम देने के लिए अमीर स्कूलों में ग़रीब बच्चों के लिए जो मज़ाकिया कोटा निर्धारित किया गया था, उसे भरना भी अब शिक्षा के माफ़ि‍या को नागवार गुज़र रहा है। शिक्षा को पूरी तरह बाज़ार के हवाले कर दिया गया है। ज़ाहिर-सी बात है कि देश की 77 फीसदी आबादी जो 20 रुपये प्रतिदिन से नीचे गुज़र-बसर करती हो उसके लिए तो शिक्षा के दरवाज़े बन्द हैं फिर चाहे संविधान को कितना ही भारी-भरकम बना दिया जाय, जो वास्तव में पहले ही तमाम लफ्फाजियों का मोटा पुलिन्दा है। पूँजीवादी व्यवस्था में हर चीज़ बिकने के लिए पैदा होती है। शिक्षा को भी पूरी तरह एक बिकाऊ माल बना दिया गया है तो कोई आश्चर्य नहीं।

पाखण्ड का नया नमूना रामपाल: आखि़र क्यों पैदा होते हैं ऐसे ढोंगी बाबा

समाज में धर्म के नाम पर लागों को आत्मसुधार का पाठ पढ़ाने वाले ये पाखण्डी ख़ुद अय्याशियों भरा जीवन जीते हैं। लोगों को परलोक सुधारने का लालच देकर इनकी तो सात पुश्तों तक का इहलोक सुधर जाता है। ये पण्डे-पुजारी, मुल्ले-मौलवी और साधु-सन्त लोगों को यह कभी नहीं बताते कि मेहनतकश जनता की बदहाली का कारण पूँजीपतियों की लूट है। ऐसा बताकर ये पूँजीपति वर्ग के हितों के खि़लाफ़ नहीं जा सकते और स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार सकते, क्योंकि तमाम बड़े-बड़े बाबाओं के ख़ुद के पैसे व संसाधनों के बड़े-बड़े अम्बार लगे होते हैं। पूँजीवादी व्यवस्था का धर्म द्वारा सीधा वैधीकरण तो नहीं होता, लेकिन धर्म का पूँजीवादीकरण ज़रूर हो जाता है।